श्रीकृष्ण के कालजयी अष्टमंत्र : जो हर चुनौती में विजेता बना दें

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जब भी हम भारतीय दर्शन में जीवन जीने की कला की चर्चा करते हैं, श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व हमारे मन में सर्वप्रथम अंकित होता है। उनके चरित्र में हास्य-विनोद, गंभीरता, प्रेम, युद्धनीति और लोकमंगल का ऐसा अनुपम समन्वय है, जिसकी मिसाल इतिहास में दुर्लभ है। श्रीकृष्ण न केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक थे, बल्कि एक व्यवहारिक नायक भी थे, जिन्होंने हर परिस्थिति में जीवन को कैसे जिया जाए, यह सिखाया।

यहां उनके जीवन से ऐसे आठ सिद्धांतों का संकलन किया गया है, जो हमें प्रेरित करते हैं कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें अपने उद्देश्य, अपने धर्म और अपने आनंद से विमुख नहीं होना चाहिए।

 

मुस्कान में अदम्य शक्ति छुपी होती है

कृष्ण का संदेश : विपरीत परिस्थितियों में भी हंसना न भूलो।

कृष्ण जन्म लेते ही कालकोठरी के अंधकार में पले-बढ़े। उनके सिर पर कंस का भय, समाज में अनेक विघ्न, लेकिन उनके मुखमंडल पर सदैव मुस्कान रही। यह स्मित उनके आत्मविश्वास और परम आंतरिक आनंद का प्रतीक था। उन्होंने हमें सिखाया कि हमारी मुस्कान दुखों को छोटा बना देती है और दूसरों में भी साहस का संचार करती है।

 

प्रेम में संकोच मत करो

कृष्ण का संदेश : सच्चा प्रेम न शर्त मांगता है, न स्वीकृति।

वृंदावन की गलियों में गोपियों के संग उनकी रासलीला महज प्रेम-लीला नहीं थी, बल्कि यह जीवन के प्रति उत्कट अनुराग की प्रतीक थी। उन्होंने प्रेम को एक पवित्र उत्सव बनाया, जिसमें किसी भी प्रकार की हीनता या लज्जा नहीं थी। आज के युग में यह सिखाता है कि मन में श्रद्धा और शुद्धता हो, तो प्रेम सबसे बड़ा साधन बन जाता है।

 

मित्रता में निष्ठा सर्वोपरि है

कृष्ण का संदेश : मित्रता कोई सौदा नहीं, आत्मा का बंधन है।

कृष्ण ने सुदामा जैसे निर्धन मित्र से लेकर अर्जुन जैसे वीर साथी तक, हर किसी के लिए अपने कर्तव्य निभाए। जब सुदामा उनके द्वार पर आए, कृष्ण ने दरिद्रता को तिरोहित कर मित्रवत आदर दिया। महाभारत में अर्जुन का सारथी बनकर उन्होंने सखा-धर्म को नई ऊंचाई दी। यह हमें याद दिलाता है कि मित्रता में न तो भेदभाव होना चाहिए, न ही स्वार्थ।

 

कठिनाई में भी सहज रहो

कृष्ण का संदेश : संकट चाहे कितना भी गहरा हो, आत्मबल कभी मत खोओ।

कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ, बाल्यकाल में असुरों का आक्रमण झेला, लेकिन उनके मन में भय या हीनता ने घर नहीं किया। चाहे पूतना वध हो या कालिया नाग का दमन, हर परीक्षा में उन्होंने सहज रहकर साहस दिखाया। यह शिक्षा है कि जो आंतरिक धैर्य रखता है, वही अंततः विजयी होता है।

 

दुष्टता के आगे चुप मत रहो

कृष्ण का संदेश : अन्याय के प्रतिकार में भी संकोच मत करो।

कृष्ण ने बाल्यावस्था में ही अत्याचार को चुनौती देना शुरू किया। कंस के अत्याचार को समाप्त करने के लिए उन्होंने निडर होकर युद्धभूमि में प्रवेश किया। गोवर्धन पर्वत उठाकर इंद्र के अहंकार को तोड़ा। यह प्रेरणा देता है कि अन्याय को मौन रहकर सहना भी एक अपराध है।

 

सहनशील बनो, लेकिन कायर नहीं

कृष्ण का संदेश : क्षमाशीलता का अर्थ कमजोरी नहीं होता।

उन्होंने शिशुपाल के सौ अपराध क्षमा किए, पर जब सीमा का अतिक्रमण हुआ, तब उचित दंड भी दिया। इससे यह स्पष्ट होता है कि सहिष्णुता और कायरता में अंतर होता है। जीवन में यदि कोई आपके धैर्य की परीक्षा ले, तो मर्यादा की सीमा पार होते ही कठोर निर्णय लेने से न डरें।

 

यशस्वी विजय के लिए योजना अनिवार्य है

कृष्ण का संदेश : संकल्प और रणनीति दोनों से ही सफलता सुनिश्चित होती है।

महाभारत युद्ध में उनकी नीतियां निर्णायक बनीं। कौरवों की अपार सेना के सामने उन्होंने पांडवों को कुशल योजनाएं दीं। अर्जुन के रथ का सारथ्य लेकर उन्होंने युद्ध की दिशा पलट दी। यह सिद्धांत आज भी जीवन में कामयाबी की नींव है – कठिन परिश्रम के साथ योजनाबद्धता।

 

जीवन के रंग को अपनाओ, पर आसक्ति मत पालो

कृष्ण का संदेश : कर्तव्य निभाओ, लेकिन फल की आसक्ति छोड़ो।

गीता का उपदेश इसी का सार है – निष्काम कर्म। कृष्ण स्वयं जीवन के हर रस में रमे, लेकिन किसी भी अवस्था से बंधे नहीं। रास में भी वही तन्मयता, रण में भी वही निस्संगता। यह दर्शन सिखाता है कि हमें कर्म करना चाहिए, लेकिन मोह और भोग में जकड़ना नहीं चाहिए।

 

श्रीकृष्ण का जीवन एक विशाल सागर की तरह है, जिसमें आनंद की लहरें, संघर्ष की धाराएं, और गहराई में तत्वज्ञान समाया है। उनकी मुस्कान हमें आत्मविश्वास देती है, उनका प्रेम हमें कोमलता सिखाता है, उनकी वीरता हमें अन्याय से लड़ना सिखाती है, और उनका उपदेश हमें जीवन की सार्थकता का अनुभव कराता है।

यदि हम उनके इन आठ सिद्धांतों को अपने जीवन में उतार लें, तो न कोई दुख हमें हरा सकेगा, न कोई संकट हमें तोड़ पाएगा। यही श्रीकृष्ण का अमर संदेश है – “जियो पूरी शक्ति से, प्रेम करो पूरी पवित्रता से, और संघर्ष करो पूरी निडरता से।”