अगर छिद्रान्वेषण की दृष्टि से अवलोकन करें तो मोदी की राजनीति और राजनैतिक कृत्य अन्य राजनैतिक दलों से सर्वथा अलग नजर आते हैं। वे चुनावी सभाओं के अतिरिक्त कभी अपने राजनैतिक विरोधी को ललकारते नजर नहीं आते और विरोधपक्ष की गालियों और अपशब्दों का जबाव भी यदाकदा संसद में देने के अतिरिक्त कहीं और नहीं देते। इसे उनकी सबसे हटकर अलग चलने की नीति कहा जाय या सही समय पर सही जबावदेही की अद्भुत कला, इस पर भिन्न भिन्न मत हो सकते हैं। लेकिन यह सच है कि मोदी किसी का अहसान और उन्हें नुकसान पंहुचाने के कृत्य को कभी भूलते नहीं हैं और उचित समय पर दोनों का हिसाब बराबर कर ही देते हैं।
देश की राजनीति के पिछले 30-40 वर्षों की राजनीति का इतिहास उठाकर देख लें, मोदी और मोदी के हनुमान कहे जाने वाले अमित शाह से भिड़ने वालों के कैरियर ख़त्म हो चुके हैं। यह दोनों लीक से हटकर अज़ीब तरह से राजनीति करते हैं, एकदम ग़ैर पारंपरिक, आत्म विश्वास से परिपूर्ण सच्ची नियत के साथ और सटीक।
इस सन्दर्भ में अगर गुजरात पर नजर डालें तो गुजरात में केशुभाई पटेल राजनैतिक हैवीवेट राजनीतिबाज थे। उनकी गुजरात में तूती बोलती थी, बीजेपी में आडवाणी सर्वेसर्वा थे। फायरब्रांड नेता थे। संजय जोशी खुद में एक बड़ा नाम थे, सुषमा स्वराज दिल्ली लॉबी की स्थापित नेता थीं, गड़करी की संघ में मोदी से अधिक मज़बूत स्थिति थी। इतने बड़े बड़े धुरंधरों को साइड कर उनसे आगे निकलना असंभव ही था। कोई भी आम राजनेता ऐसा नहीं कर पायेगा। यह सब सच्चाई के आधार पर आत्म नियन्त्रण के कारनामें नहीं हैं? तो क्या हैं?। शायद ईश्वरीय सत्ता भी चाहती है कि 21 वीं सदी भारत की हो। भारत विश्व गुरु पद पर पदासीन हो। भारतीय सनातन संस्कृति का डंका विश्व में बजे। शायद इसलिए यह सब असंभव कारनामे होते चले जा रहे हैं।
राष्ट्रीय राजनीति की ओर नजर डालें तो इस बार का झगड़ा ठाकरे परिवार के लिए सामान्य झगड़ा नहीं है। राजनीतिक गोटियाँ बिछी हुयी हैं। राजनीतिक और कूटनीतिक चालें दोनों पक्षों से चली जा चुकी हैं। उद्धव ठाकरे का साम्राज्य छिन्न भिन्न हो चुका है। जो लोग बीजेपी की कार्य-पद्यति को जानते हैं। महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ न जाकर उद्धव ठाकरे ने बीजेपी और मोदी शाह की जो घनघोर मुखर बेइज्जती की थी। मोदी और शाह शायद उसके गहरे घाव लिए बैठे हैं। वे झुक सकते थे, संघ के बीच बचाव करने से सरकार बन भी सकती थी। लेकिन इस बार मोदी शाह ने खुद को शिवसेना से दूर करना ही समयोचित समझा।
आने वाले दिनों में ठाकरे परिवार की कमर टूटने वाली है, यह निश्चित ही है। उद्धव जानते हैं कि उन्होंने आग में हाथ दे दिया है। वे चाहते हैं कोई समाधान हो मगर संजय राउत और ठाकरे जूनियर अपने बेलगाम वक्तव्यों से सब गुड़गोबर कर देते हैं। इसलिए अब वे विकल्प के रूप में धर्मनिरपेक्षता की बातें कर रहे हैं।
मोदी व शाह की यह जोड़ी इन चालों में कुशल है। सनातन संस्कृति व हिंदुत्व इन दोनों की नस नस में कूट कूट कर भरा है। जिसे वे छिपाते भी नहीं है। शायद इसीलिए अदृश्य सत्ता ने अदम्य जीजीविषा और अतुलनीय धैर्य देकर इन दोनों महारथियों को भारत की राजनीति में, इन्हें विधर्मियों व सेक्युलर गैंग के सामने उतार दिया है। एक अबूझ राजनीतिक समझ अभेद्य वैचारिक तैयारी के साथ।
सोनिया, राहुल, प्रियंका, अखिलेश, लालू, ममता, केजरीवाल, मुलायम, मायावती, शरद पवार और सभी शातिर और टूलकिटयुक्त वामपंथी राजनीति के कुशल खिलाड़ी भी इन दोनों की चालों से मात खाने से न बच सके। गत लोकसभा चुनाव में इनके हर चक्रव्यूह को इस जोड़ी ने कभी अंदर घुसकर और कभी बाहर से ही तार तार कर दिया था। पूरा का पूरा तानाबाना ही बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया। आज के समय में उपर्युक्त नेताओं में कई अपने अस्तित्व को ही बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। कई राजनीतिक दल समाप्ति के कगार पर खड़े हैं। उनका राजनीतिक वजूद ही खत्म होता चला जा रहा है। इन जातिवादियों व परिवारवादी पार्टियों पर अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है। सबसे आश्चर्यजनक तो यह था जब इनकी कुशल रणनीति ने सपा बसपा के मजबूत गठबन्धन के किले को उप्र में बुरी तरह ध्वस्त कर नेस्तनाबूद कर दिया था।
कश्मीर, तीन तलाक़, एनआरसी, राममंदिर आदि मसलों के बारे में कोई सोच भी सकता था कि ये हल हो सकते हैं। सारे के सारे असम्भव मुद्दे थे, मोदी ने सारे मनचाहे तरीक़े से धैर्य के साथ हल कर लिए। राम मन्दिर की पूरी जमीन हिंदुओं को दिलवा दी। अयोध्या के अंदर सुई की नोंक के बराबर भी भूमि बाबरी समर्थक न ले पाए। धारा 370 व 35A तो जड़ से ही उखाड़ फेंकी।
तमाम राजनीतिक घृणाओं के बावज़ूद विपक्षी नेताओं को इन दोनों से सीखना तो चाहिए कि देखते ही देखते आख़िर कैसे पूरे सिस्टम को अपनी तरफ़ झुका लिया जाता है। स्पष्ट है कि मोदी साम, दाम, दंड, भेद सब नीतियों में निपुण हैं। और वर्तमान में इनके बगैर सशक्त राष्ट्र निर्माण की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
अगर अंतराष्ट्रीय राजनीति की बात करें तो पाकिस्तान को बरबादी के कगार पर खड़ा कर देना। मलेशिया और तुर्की को पक्षहीन स्थिति तक पंहुचा देना। मुस्लिम अरब देशों का झुकाव पाकिस्तान से हटा कर भारत के पक्ष में करवा देना। जी-20 में सर्वसम्मत घोषणापत्र जारी करवा देना। अफ्रीका संध को इतनी आसानी से जी-20 की स्थायी सदस्यता दिलवा देना। कोई इतने आसान काम नहीं थे जो मोदी ने करके दिखा दिए।
कश्मीर को लगभग आतंकवादियों से विहीन करना, पाकिस्तान को आतंक के मुद्दे पर बैक फुट पर लाने के बाद खालिस्तानी आतंकी निज्झर की हत्या के मुद्दे पर कनाडा को तुर्की ब तुर्की जबाव देना भी कोई आसान काम नहीं था और कनाडा के पक्ष में खड़े होने पर अमेरिका तक को हड़का देना तो बिल्कुल आसान काम नहीं था। जिन्हें किया गया। इसी तरह पंजाब में खालिस्तानियों के समर्थकों पर हाथ डालना और आतंकवादियों की सम्पत्ति की जप्ती की कार्यवाही कोई सरल कार्यवाही नहीं थी। जिसे मोदी ने इतनी आसानी से कर दिया कि पत्ता तक नहीं हिला।
इसी तरह कोरोना के सारे आर्थिक झटके सहते हुए भी मोदी सरकार ने जिस तरह सेना के तीनों अंगों को अत्याधुनिक शस्त्रों से लैस किया। उसकी मिसाल नहीं है। आपदा को अवसर में बदलते हुए भारतीय रेलवे का कायाकल्प आसान काम नहीं था। देश में और विशेषरूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में सडकों का जाल बिछा देना भी एक उपलब्धि के रूप में लिया जा सकता है। सच बात है, मोदी है तो मुमकिन है।