प्रयाग नाम का महत्व्

मत्स्य पुराण में उल्लिखित है कि सृष्टि रचना के उपरांत ब्रह्मा जी ने धरती पर प्रथम यज्ञ प्रयागराज में किया था।


प्रथम यज्ञ से ही ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ से ही प्रयाग शब्द की उत्पत्ति हुई जो कि प्रयागराज का प्राचीन नाम है।


ब्रह्मा जी ने यज्ञ की त्रिस्तरीय वेदी बनाई
बहिर्वेदी, मध्यवेदी और अन्तर्वेदी।
बहिर्वेदी में झूसी, मध्यवेदी में अरैल एवं अन्तर्वेदी में दारागंज के क्षेत्रा आते हैं।
संगम की असुरों से रक्षा हेतु ब्रम्हा जी के आह्वाहन पर भगवान विष्णु स्वयं इन वेदियों में 12 स्थानों पर विराजमान हुए।


प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा एवं द्वादश माधव मंदिर।
तीर्थराज प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान विष्णु स्वयं हैं।भगवान विष्णु यहाँ वेंणीमाधव के रूप में विराजमान हैं।


भगवान के यहाँ पर 12 स्वरूप विद्यमान हैं जिन्हें ‘द्वादश माधव’ कहा जाता है। पुराणों में प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा का अत्यधिक महत्व है।
प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में द्वादश माधव एवं प्रयाग के समस्त तीर्थ,कुंड,ऋषियोँ, सिद्धियों एव नागों के दर्शन किये जाते हैं।


प्रयागराज के द्वादश माधव कहाँ कहाँ स्थित हैं-


1.वेणीमाधव-
दारागंज स्थित त्रिवेणी(संगम) तट पर प्रयाग शहर के अधिष्ठाता के रूप में स्वयं भगवान विष्णु वेणीमाधव के रूप में विराजमान हैं।
वेणीमाधव को प्रयाग का देवता कहा जाता है।


2.अक्षयवट माधव-
अक्षयवट माधव पावन गंगा- यमुना के मध्य में विराजमान हैं।


3.अनंत माधव-
अंनत माधव दारागंज में एक प्राचीन मंदिर में विराजमान हैं।


4.असि माधव-
दारागंज के समीप नागवासुकि मंदिर के पास ही असि माधव का वास है।


5.मनोहर माधव
शहर के जानसेनगंज में स्थित द्रव्येश्वरनाथ मंदिर में लक्ष्मीयुक्त मनोहर माधव विराजमान हैं।


6.बिंदु माधव-
द्रौपदी घाट के पास बिंदुमाधव का निवास है


7.श्री आदि माधव
संगम के मध्य जल के रूप में आदि माधव विराजमान हैं।


8.चक्र माधव-
अरैल क्षेत्रा में प्रसिद्ध सोमेश्वर मंदिर के निकट ही चक्र माधव विराजमान हैं।


9.श्री गदा माधव-
यमुना पार स्थित छिवकी रेलवे स्टेशन के समीप गदा माधव विराजमान हैं। जहां पर उनका अत्यंत प्राचीन मंदिर है।


10. पद्म माधव-
यमुना नदी के पार भीटा मार्ग पर वीकर देवरिया ग्राम में पद्म माधव का मंदिर स्थित हैं।


11.संकटहर माधव-
झूंसी में गंगा जी के तट पर एक वटवृक्ष में संकटहर माधव का वास है।


12.शंख माधव-
झूंसी क्षेत्रा के छतनाग में मुंशी के बगीचे में शंख माधव वास करते हैं।
पुराणों में वर्णित है कि इस पंचकोसी यात्रा में मनुष्य जितने पग चलता है उसे उतने ही अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।


प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा में पूर्वी दिशा में पांच कोस पर दुर्वासा ऋषि(कंकरा गांव में) का निवास।


पश्चिम दिशा में पांच कोस पर बरखण्डी महादेव का निवास।
दक्षिण दिशा में 5 कोस पर पर्णार्श मुनि (पनाशा गांव के समीप) का निवास।
अक्षयवट से उत्तर दिशा में पांच कोस पर मंडलेश्वरनाथ विराजमान है जो वर्तमान में पडिला महादेव के नाम से विख्यात हैं।


यही प्रयागराज की पंचकोसी परिक्रमा की सीमा है।