उदार ,उदात्त अध्ययनशील ,स्वप्नदृष्टा,कविहृदय राजनेता थे अटलजी

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अटल जी के बारे में लिखते हुए न जाने क्यों ऐसा लगता है कि मैं अपने परिवार के किसी बुजुर्ग के बारे में लिख रहा हूँ ।  अटल जी को मैंने तब से देखा और जाना है जबसे मैं ग्वालियर आया। बात 1972  की है,जब मैंने पहली बार अटल जी को देखा और सुना था। बाद के दिनों में वे देश के विदेशमंत्री भी बने और प्रधानमंत्री भी ,लेकिन वे हमेशा ही हमारे अपने अटल जी बने रहे।  अटल जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक  संघ से दीक्षित कार्यकर्ता थे। अटल जी यदि जीवित होते तो आज हम सब उनका शताब्दी समारोह मना रहे होते ।   
      अटल जी ने 1957  में पहली बार लोकसभा में कदम रखा था ।  उन्होंने देश के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया लेकिन वे हमेशा लोकसभा में नायक बने रहे। संसद हो,सड़क हो,राजनीतिक मंच हो या कवि सम्मेलन अटल जी को सुनना एक अनूठा अनुभव होता था। उनके भाषणों में पांडित्य साफ़ झलकता था। उनकी भाव मुद्राएं अनुपम थीं। उनके व्यंग्य में हास्य भी ऐसा होता था कि  विरोधी भी खिलखिलाकर हंस देते थे।
ग्वालियरवासी होने के नाते मुझे पत्रकार और एक साहित्यसेवी के रूप में उनके निकट रहने और उनसे संवाद करने के अनेकानेक अवसर मिले,इसलिए मैं अधिकारपूर्वक   कह सकता हूँ  कि उनके जैसा अध्येता ,प्रवाचक और दूर दृष्टा नेता भाजपा में कोई दूसरा है ही नहीं। अटल जी केवल और केवल नायक हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी अपनी गरीबी का रोना नहीं रोया। वे कभी भी एक विपक्ष के  नेता के रूप में ,एक प्रधानमंत्री  के रूप में स्थापित लक्ष्मण रेखाओं के पार नहीं गए। वे जब तक जीवित रहे ,सक्रिय रहे (अंतिम कुछ दिनों को छोड़कर)। मुझे अटल जी जितने एक राजनेता के रूप में प्रिय थे उससे ज्यादा एक कवि के रूप में प्रिय थे। चूंकि मै राजनीति में नहीं रहा इसलिए उनके साथ काम करने का अधिक अवसर मुझे नहीं मिला लेकिन एक कवि के रूप में मुझे अटल जी को सुनने और अपनी कविताएं सुनाने के अवसर अनेक मिले। अटल जी की पढंत सबसे अलग थी। उनकी पढ़न्त की छाप उनके धुर विरोधी विचारधारा के ग्वालियर के मूर्धन्य कवि स्वर्गीय मुकुट बिहारी सरोज से लेकर जयंती अग्रवाल तक थी।  लोग अटल जी को केवल राजनीति में ही नहीं बल्कि एक साहित्यकार के रूप में भी फॉलो करते थे।
अटल जी ने हमेशा जोड़ने की बात की।  वे हमेशा सबको साथ लेकर चलते  रहे । अटल जी ने पड़ोसियों से रिश्ते सुधारने की हर सम्भव कोशिश की । उन्हें इस कोशिश में भारत के पुश्तैनी शत्रु पकिस्तान से धोखा भी मिला जिसकी परिणति कारगिल युद्ध के रूप में हुई। अटलजी अपने राजनीतिक जीवन में अनेक बार टूटे लेकिन बिखरे कभी नही। वे तब टूटे जब उनकी पहली सरकार 13  दिन में गिरी । वे तब भी टूटे जब उन्हें 13  महीने में गद्दी छोड़ना पड़ी लेकिन  वे सबसे ज्यादा तब टूटे जब उन्हें अपने ही शहर ग्वालियर में लोकसभा चुनाव में 1984  में पराजय का सामना करना पड़ा।
ग्वालियर वासी होने के नाते मुझे हमेशा ये शिकायत रही कि उन्होंने जितना अपनी कर्मभूमि लखनऊ के लिए किया उतना अपनी जन्मभूमि ग्वालियर के लिए नहीं किया।  ग्वालियर से मिली हार को वे आजीवन पचा नहीं पाए।  एक प्रधानमंत्री के रूप में पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटल जी ही थे।  श्रीमती  इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता भी बेमिसाल थी ,लेकिन अटल जी जैसी नहीं थी। अटल जी ने एक प्रधानमंत्री के रूप में देश को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने श्रीमती इंदिरा गाँधी के अधूरे काम को आगे बढ़ाया। 
अटल जी को विरोधियों द्वारा आरएसएस का मुखौटा कहा जाता था ,क्योंकि वे संघ के स्वयं सेवक होते हुए भी उदारता की झीनी चादर ओढ़कर सियासत में सक्रिय रहे।  अटल जी के भीतर झांकें तो वहां आपको एक समावेशी व्यक्तित्व मिल  जाएगा जो गंगा-जमुनी संस्कृति का अर्थ और महत्व जानते थे।  वे अक्सर कहते थे कि भारत को लेकर मेरी एक दृष्टि है- ऐसा भारत जो भूख, भय, निरक्षरता और अभाव से मुक्त हो। वे कहते थे कि “क्रान्तिकारियों के साथ हमने न्याय नहीं किया, देशवासी महान क्रान्तिकारियों को भूल रहे हैं, आजादी के बाद अहिंसा के अतिरेक के कारण यह सब हुआ।”अपनी रचनाधर्मिता को लेकर उनका हमेशा कहना रहा कि “मेरी कविता जंग का ऐलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं। वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय-संकल्प है। वह निराशा का स्वर नहीं, आत्मविश्वास का जयघोष है।
मैं अटल जी को एक हीरो के रूप में देखता हूँ जबकि उनकी और उनकी पार्टी की विचारधारा से मेरा विरोध सनातन रहा। उन्हें ग्वालियर के मेले में बिना सघन सुरक्षा के घूमते हुए, मूंगफलियां खाते हुए ,विनोद करते हुए याद करते हुए मेरा मन आज भी पुलकित होता है।मुझे उनकी हथेलियों की कोमलता और स्निग्ध मुस्कान आज भी याद है। वे अपनी शादी के बारे में पूछे जाने पर कैसे शर्माते थे मैं भूला नहीं हूँ ।  आप अटल सरकार की उपलब्धियों के बारे में गूगल सर्च कर सकते हैं लेकिन उनके मानवीय गुणों के बारे में जो मैं लिख रहा हूं वो आपको शायद ही कहीं और पढ़ने को मिले। अटल जी की जन्मशती के मौके पर मैं उन्हें  विनम्रता पूर्वक याद करते हुए कामना करता हूँ कि  देश को अटल जी जैसे एक नहीं हजारों नेता और मिले।

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