ध्वनि प्रदूषण और बहरे होते हुए लोग

मनुष्य की सभी ज्ञानेन्द्रियों में कान एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं। ध्वनि को ग्रहण करने में इनका प्रमुख योगदान है। ध्वनि ग्रहण करना एवं उसे मस्तिष्क तक पहुंचाना, यह कान का एक विशेष क्रियाकलाप है। ध्वनि मनुष्य जीवन की एक सामान्य विशेषता है। इस प्रकार ध्वनि, मस्तिष्क को मनोरंजन देती है, उसे सतर्क करती है और अन्य क्रियाओं में भी मानव की मदद करती है।


ध्वनि का यदि वांछित स्तर तक प्रयोग किया जाये तो यह मानव को लाभ ही पहुंचायेगी किंतु ध्वनि का प्रयोग अवांछित स्तर पर पहुंच जाये तो स्वास्थ्य को बहुत बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। मनुष्य की सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होते हुए लगभग समाप्त भी हो सकती है यानी पूर्णतः बहरापन।


अत्यंत तीव्र ध्वनि से तंत्रिका तंत्रा में तीव्र उत्तेजना पैदा होती है। इससे शरीर की विभिन्न क्रियाओं में भी अस्त-व्यस्तता आ जाती है। इससे पेट की क्रियाओं में परिवर्तन आता है। मांसपेशियों में तनाव बढ़ जाता है। आंतों के क्रियाकलापों में तीव्रता बढ़ जाती है। मस्तिष्क के चारों ओर सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड का दबाव बढ़ जाता है। रक्त परिसंचरण तंत्रा में दबाव बढ़ने से हृदय रोग हो जाते हैं।


निद्रा ठीक तरह से आये, इसके लिए 25 डेसीबल तक की ध्वनि ही पर्याप्त है। इससे अधिक ध्वनि नींद में बाधा उत्पन्न करती है।


ग्रामीण परिवेश शांत होता है जबकि शहर में शोरगुल करने के विभिन्न तरीके इस्तेमाल में लाये जा रहे हैं। उदाहरण के लिए टेपरिकार्डर से यदि धीमे स्वर में संगीत का आनंद लिया जाये तो यह स्वास्थ्यकर होगा लेकिन लोग इसका प्रयोग स्वास्थ्य हानि के लिए कर रहे हैं। वे इसे 120 डेसीबल के ध्वनि स्तर पर बजाते हैं जिससे वे स्थायी बहरेपन का शिकार हो जाते हैं।


आज के परिवेश में यदि हम विज्ञान के आदर्शों को मानकर चलें तो हम शोरगुल से होने वाली हानियों से बच सकते है। अपना देश एक बहुत बड़ा देश है लेकिन यहां की जनसंख्या भी उसी अनुपात में बहुत अधिक है। शहरी वातावरण में जनसंख्या अधिक होती है, साथ ही वहां शोर गुल भी अधिक होता है।


 इसके लिये यही उत्तम होगा कि शहरों में निवास करने वाले लोगों को गांवों के महत्त्व को समझना चाहिए और शोरगुल से दूर शांत, सौम्य गांवों में अपना निवास स्थान बनवाना चाहिए। ग्रामीणों को भी चाहिए कि वे शहरों की ओर पलायन न करें। गांव में ही शोरगुल से दूर शांत जीवन जियें जिससे मानव स्वास्थ्य ही नहीं, पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में भी मदद मिलेगी।