वाजपेयी जन्मशती: कवि-राजनेता जिनके ओजस्वी शब्दों में था जादू

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नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) करिश्माई नेता अटल बिहारी वाजपेयी की बुधवार को 100वीं जयंती है। राजनीति में वाजपेयी की कुशलता किसी से छिपी नहीं लेकिन शायद जिस बात ने उन्हें अपने साथी राजनेताओं और आम आदमी के बीच अधिक लोकप्रिय बनाया, वह था उनका काव्यात्मक पक्ष जो अक्सर उनके जोशीले भाषणों में झलकता था।

पूर्व प्रधानमंत्री ने संसद में बोलते समय अपने वाक् कला और चुटीली टिप्पणियों के कारण विपक्ष के सदस्यों से भी प्रशंसा प्राप्त की तथा काव्य से भरपूर उनके सार्वजनिक भाषणों ने भीड़ की भी जमकर तालियां बटोरीं।

वाजपेयी का 93 साल की उम्र में लंबी बीमारी के बाद 16 अगस्त 2018 को निधन हो गया था। वाजपेयी ने वास्तव में अपनी कविता ‘अपने मन से कुछ बोलें’ में मानव शरीर की भंगुरता को रेखांकित किया था। इसके एक छंद में उन्होंने लिखा था– ‘पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, ​​जीवन एक अनंत कहानी; पर तन की अपनी सीमाएं; यद्यपि सौ शरदों की वाणी, इतना काफी है अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें’।

उन्होंने एक बार अपने भाषण में यह भी कहा था कि ‘मनुष्य सौ साल जिए ये आशीर्वाद है, लेकिन तन की सीमा है।’

ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को जन्मे भारत रत्न से सम्मानित वाजपेयी अंग्रेजी में निपुण थे। हालांकि, संसद के अंदर या बाहर जब भी वह हिंदी में बोलते थे, उनकी तीखी टिप्पणियों के साथ-साथ समयानुकूल व्यंग्य भी उनके वाक् कौशल को चार चांद लगाता था।

एक अनुभवी राजनीतिज्ञ के रूप में उन्होंने संदेश को स्पष्ट करने के लिए सावधानीपूर्वक शब्दों का चयन किया तथा अपने व्यंग्य में भी गरिमामयी अंदाज बनाए रखा।

वाजयेपी अपने भाषणों में शब्दों का चयन इतनी कुशलता से करते कि उन्हें सुनने के लिये लोग लालायित रहते और उन्हें ‘शब्दों का जादूगर’ जैसी उपाधियां देते। उनके अधिकांश भाषणों में देश के प्रति उनका प्रेम और लोकतंत्र में आस्था, एक मजबूत भारत के निर्माण के उनके दृष्टिकोण के अनुरूप प्रतिध्वनित होती थी।

अपनी 13 दिन की अल्पमत सरकार के विश्वास मत से पहले 27 मई, 1996 को संसद में अपने जोरदार और प्रेरक भाषण में वाजपेयी ने प्रसिद्ध टिप्पणी की थी, “सत्ता का तो खेल चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी; पार्टियां बनेंगी, बिगाड़ेगी; मगर ये देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए”। वाजपेयी की सरकार गिर गयी थी।

वह एक प्रखर कवि थे, उन्होंने कई रचनाएं लिखीं, जिनमें ‘कैदी कविराय की कुंडलियां’ (आपातकाल के दौरान जेल में लिखी गई कविताओं का संग्रह) और ‘अमर आग है’ तथा ‘मेरी इक्यवान कविताएं’, दोनों कविता संग्रह शामिल हैं। उन्हें अक्सर ऐसा महसूस होता था कि राजनीति के कारण उन्हें कविता के लिए समय नहीं मिल पाता।

एक सार्वजनिक कार्यक्रम में, वाजपेयी ने एक बार टिप्पणी की थी “लेकिन राजनीति के रेगिस्तान में ये कविता की धारा सूख गई”। भले ही उन्हें नई कविताएं लिखने के लिए समय नहीं मिल पाया, लेकिन उन्होंने इसकी भरपाई यह सुनिश्चित करके की कि उनका कविता कौशल राजनीतिक क्षेत्र में भी छाप छोड़े।

अपनी हास्य बोध के लिए समान रूप से विख्यात वाजपेयी ने एक बार कहा था, “मैं राजनीति छोड़ना चाहता हूं पर राजनीति मुझे नहीं छोड़ती।”

उन्होंने कहा था, “लेकिन, चूंकि मैं राजनीति में आया और इसमें फंस गया, मेरी इच्छा थी और अब भी है कि मैं इसे बेदाग छोड़ूं और मेरी मृत्यु के बाद लोग कहें कि वह एक अच्छे मनुष्य थे, जिन्होंने अपने देश और दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाने का प्रयास किया।”

और, वाजपेयी को शायद इसी तरह याद किया जाएगा।

विनम्र वाजपेयी ने एक बार कहा था कि कविता के क्षेत्र में उनका योगदान “लगभग शून्य” है।

उन्होंने कहा, “अगर मैं राजनीति में नहीं आता तो कविताएं पढ़ता और सुनता, मुशायरों और कवि सम्मेलनों में जाता, लिखने का मन करता और कवि की भावनाएं व्यक्त होती रहतीं।”

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