विकास, राष्ट्रवाद को संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से देखा जाना चाहिए : उपराष्ट्रपति

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नयी दिल्ली, 16 दिसंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि विकास, राष्ट्रवाद, सुरक्षा, लोगों का कल्याण और सकारात्मक सरकारी योजनाओं को सिर्फ संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से देखा जाना चाहिए।

सातवें रक्षा संपदा दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में अपने संबोधन में उन्होंने मंच पर अपनी स्थिति का भी उल्लेख किया, जहां उनके दाहिनी ओर रक्षा संपदा के महानिदेशक और बाईं ओर पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के सचिव बैठे थे।

उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं यहां (मंच पर) मध्य में सीट पर बैठा तो मुझे राज्यसभा के सभापति के रूप में अपनी स्थिति की याद आई। जब मैं (राज्यसभा में) कुर्सी पर बैठता हूं तो मेरे दाईं ओर सत्ता पक्ष और बाईं ओर विपक्ष के सदस्य होते हैं।’’

यहां, दाईं ओर रक्षा संपदा के महानिदेशक हैं, ‘‘मुझे भरोसा है कि मुझे उनसे कोई समस्या नहीं है’’। उपराष्ट्रपति ने विपक्ष के स्पष्ट संदर्भ में कहा, ‘‘सौभाग्य से, मेरे बाईं ओर’’ पूर्व सैनिक कल्याण विभाग के सचिव हैं जो ‘‘रचनात्मक, मार्गदर्शक, प्रेरक, हमेशा मददगार’’ रहे हैं।

धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं आज संसद के उच्च सदन में यह संदेश लेकर जा रहा हूं जहां हम संविधान पर बहस कर रहे हैं। हम 26 नवंबर 1949 को भारत के संविधान को अपनाने की 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस कार्यक्रम में आकर वह वास्तव में उन लोगों के ‘‘ऋणी’’ हैं, जिन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनका दिन ‘‘आशा और आशावाद’’ के साथ शुरू हो।

उन्होंने कहा, ‘‘हम ऐसे राष्ट्र में हैं जो उम्मीद और संभावनाओं से भरा है। एक ऐसा राष्ट्र जिसमें संभावनाएं हैं। एक ऐसा राष्ट्र जो विकास की ओर अग्रसर है, एक ऐसा राष्ट्र जिसे अब रोका नहीं जा सकता। शासन के हर पहलू में यह उन्नति देखी गई है, चाहे वह समुद्र हो, जमीन हो, आकाश हो या अंतरिक्ष हो।’’

धनखड़ ने कहा, ‘‘मैं कहूंगा कि ‘यही समय, सही समय है’, हालांकि लोग इसमें राजनीति भी देख सकते हैं। मैं आप सभी से अपील करना चाहता हूं कि विकास, राष्ट्रवाद, सुरक्षा, आम लोगों का कल्याण, सकारात्मक सरकारी योजनाएं, इन सभी को सिर्फ एक ही नजरिए से देखा जाना चाहिए और वो है हमारे संविधान की प्रस्तावना के नजरिए से।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाज को इसकी सराहना करनी चाहिए।

उन्होंने चंद्रयान-3 मिशन की सफलता का हवाला देते हुए कहा, ‘‘अगर हम नहीं करेंगे तो और कौन देश पर गर्व करेगा। लेकिन, कभी-कभी कैसी विडंबना होती है कि कुछ लोग अलग ही रास्ता अपनाते हैं और मैं कहूंगा कि वे ऐसा अज्ञानता के कारण करते हैं। लेकिन, एक बात तो तय है कि हमारी प्रगति की गति निरंतर बढ़ रही है।’’

अपने संबोधन में धनखड़ ने यह भी सुझाव दिया कि रक्षा सम्पदाओं को पारंपरिक परिसंपत्ति से आगे बढ़कर ‘‘विकसित’’ होना चाहिए। उन्होंने कहा कि इन्हें ‘‘आत्मनिर्भर तंत्र’’ के रूप में विकसित करना होगा और सैन्य तत्परता, सामुदायिक कल्याण, पोषण सुरक्षा को बढ़ाना होगा।

उन्होंने हर्बल उद्यानों का विचार भी सुझाया और कहा, ‘‘इन क्षेत्रों को स्वास्थ्य केन्द्रों में परिवर्तित करने के लिए इससे बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता।’’

उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘‘2047 तक विकसित भारत’ की दिशा में सटीक भूमि प्रबंधन और उत्पादन के लिहाज से उनका रचनात्मक उपयोग सर्वोपरि है।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसलिए मैं आपसे अपील करता हूं कि आप अपने भूमि बैंक का अधिकतम उपयोग करें, जो समग्र और अभिनव होना चाहिए।’’

अपने संबोधन में धनखड़ ने जलवायु परिवर्तन पर भी बात की।

उन्होंने कहा कि ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान एक ‘जन आंदोलन’ बन गया है। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) जैसी एजेंसियों के साथ सहयोग बढ़ाने का भी सुझाव दिया, जिसके बारे में उनका मानना ​​है कि यह ‘‘एक वैश्विक मानक स्थापित कर सकता है।’’

रक्षा संपदा से संबंधित विवाद समाधान पर उन्होंने कहा, ‘‘जिस तरह बीमारी में इलाज से अधिक हमें रोकथाम और एहतियात का ध्यान रखना चाहिए, उसी तरह विवाद के लिए भी हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसे बाहरी हस्तक्षेप के बिना सुलझाया जाए।’’

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