कला किसी राष्ट्रगान, एक ध्वज, एक नारे की तरह है: जावेद अख्तर

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नयी दिल्ली, 13 दिसंबर (भाषा) वरिष्ठ गीतकार एवं पटकथा लेखक जावेद अख्तर का मानना ​​है कि कला में समाज के विचारों को आकार देने की शक्ति होती है।

अख्तर ने कहा कि कला में समाज की समग्र भावना समाहित होती है और वह समाज के असंतोष, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित करती है।

जावेद अख्तर ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि कला एक राष्ट्रगान, एक ध्वज, एक नारे की तरह है। इसकी शुरुआत समाज से होती है और बाद में यह दो-तरफा यात्रा बन जाती है। एक निश्चित असंतोष, इच्छा, समाज में लोकप्रिय होने के लिए महत्वाकांक्षा होनी चाहिए और फिर यह कला के विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त होती है।’’

अपनी बात को समझाने के लिए उन्होंने लोकप्रिय नारे ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का उदाहरण दिया और कहा कि जब कला जनता की भावनाओं से जुड़ती है तो वह अभिव्यक्ति का एक शक्तिशाली माध्यम बन जाती है।

उन्होंने कहा कि अगर समाज में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ असंतोष नहीं होता तो ‘इंकलाब जिंदाबाद’ जैसा नारा भी नहीं होता।

उन्होंने कहा, ‘‘ जब आपको यह नारा मिला, तो यह लोकप्रिय हो गया क्योंकि लोगों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक तरीका मिल गया। इसलिए कला अमूर्त को मूर्त बनाती है और फिर इसे आपको लौटा देती है लेकिन इसकी भावना समाज से आनी चाहिए…।’’

अख्तर ने यह बात बृहस्पतिवार को गैर-लाभकारी संगठन खुशी की ओर से आयोजित ‘आर्ट डिजाइन कल्चर कलेक्टिव’ के उद्घाटन समारोह में कही।

उनके साथ उनकी पत्नी शबाना आजमी भी मौजूद थीं। शबाना आजमी ने आज के डिजिटल युग में रंगमंच जगत के सामने पेश आने वाली चुनौतियों के बारे में विचार साझा किए।

आजमी (74) ने कहा कि सोशल मीडिया और अन्य मंचों के बढ़ते प्रभुत्व के कारण युवा दर्शक थिएटर की ओर कम आकर्षित हो रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि आप बच्चे को इससे परिचित कराएं, क्योंकि जब बच्चा रंगमंच में रुचि विकसित करेगा तभी वह रंगमंच की ओर आकर्षित होगा।’’

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