हमारे देश में हर वर्ष कैंसर से मरने वालों की संख्या में बड़ी तेजी से इजाफा हो रहा है, फिर भी जवां मर्दो को फर्क नहीं पड़ रहा।
तंबाकू का सेवन चाहे वह धूम्रपान के जरिए हो या किसी और तरीके से, सेहत के लिए बेहद हानिकारक है। हम जितने ज्यादा समय तक और जितनी मात्रा में तंबाकू को प्रयोग में लाते हैं, विभिन्न जानलेवा बीमारियों से हमारे पीड़ित होने का खतरा भी उसी अनुपात में बढ़ता जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मुख कैंसर के मामले में भारत दुनियां में सबसे आगे है। दुनियां में मुख कैंसर के लगभग 20 लाख रोगी हैं जिनमें से 40 फीसदी सिर्फ भारत में हैं। देश में मुख कैंसर के डेढ़ लाख नये मामले हर साल आ रहे हैं।
गौरतलब है कि जिस रफ्तार से मुख कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं, उसी रफ्तार से बीड़ी, सिगरेट, गुटका, खर्रा की बिक्री भी बढ़ रही है। स्कूली उम्र के बच्चे भी बड़े चाव से माणिकचंद, विमल, राजश्री, गोआ, पान पराग जैसे गुटका खर्रा फांक रहे हैं। कॉलेज पहुंचते पहुंचते धूम्रपान भी शुरू कर देते हैं।
तंबाकू की लत वाले लोगों पर किये गए अध्ययन से दो बातें उभर कर सामने आयी। तंबाकू का सेवन मानसिक एवं शारीरिक होता है। मानसिक इस प्रकार कि हर समय मुंह में कुछ डाले रखने और चबाने की आदत बन जाती है जो धीरे-धीरे एक मानसिक क्रिया बन जाती है।
दूसरे, निकोटिन के लगातार सेवन से शरीर को निरंतर इसकी जरूरत महसूस होने लगती है, अतः तंबाकू को छोड़ने के लिए मानसिक और शारीरिक जरूरतों को पूरा करना होगा। व्यसनी व्यक्ति को स्वयं पहल करनी होगी। स्वेच्छा से शुरू किये गये शौक को स्वेच्छा से ही समाप्त किया जा सकता है।
सिगरेट, बीड़ी एवं हुक्के के धुएं में पाए जाने वाले बेन्जो पाइरीन एवं नाइट्रोर्सोनी कोटीन नामक पदार्थ फेफड़े के कैंसर के लिए मुख्यरूप से दोषी हैं,
फैशन का कुप्रभाव ही कहना पड़ेगा कि पढ़े लिखे लोग ही तंबाकू के काफी करीब हैं। झुग्गी-झोंपड़ियों, झाड़ियों के इर्द गिर्द, रेलवे स्टेशन से जुड़ी स्लम बस्तियों से लेकर विद्यापीठ परिसर तक आपको हर जगह धुआं उड़ाते लोग आसानी से नजर आ जायेंगे। झुंड में चिलम सुलगाने वालों को भी रेस्टोरेट में हुक्का गुड़गुड़ाने वाला युवा वर्ग मात दे रहा है।
पान की दुकान से पान से ज्यादा तो गुटका, खर्रा बिक रहा है। आजकल तो पार्टियों में भी गुटका, खर्रा की पूरी व्यवस्था की जाती है। क्या लॉन्स, होटल, रेस्टारेंट सार्वजनिक स्थल नहीं है। जन-जागृति पर करोड़ों फूंके जा चुके हैं किंतु जन-जागृति को मिल रहा प्रतिसाद चिंता बढ़ा रहा है। आखिर कब तक सरकार राजस्व की चिंता में राष्ट्र के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करती रहेगी। जिन्हें पसंद नहीं, वे धूम्रपान करने वालों से परेशान हैं। ड्रग एडिक्ट बढ़ रहे हैं। नपुंसकों की संख्या भी बढ़ रही है।