पास न फटकने दें आलस्य को

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व्यक्ति का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। कहीं का नहीं छोड़ता।
आलस्य हमारी आर्थिक स्थिति को भी तहस-नहस कर देता है। शरीर को पुन: सक्रिय करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।
महा रोग- वैद्य, चिकित्सक भले ही आलस्य को रोग नहीं मानें, किंतु वास्तव में यह बहुत बड़ा रोग है। यह तो कई रोगों का जन्मदाता है।
* आलसी व्यक्ति कभी व्यायाम करता ही नहीं। न ही वह अच्छी प्रकार से शरीर तथा आसपास की सफाई रख सकता है। अत: वह रोगी तो होगा ही। इस महारोग से बचना कठिन भी नहीं। हां निरंतर तथा गंभीर प्रयत्न जरूरी है।
क्यों आता है आलस्य?- बहुत ज्यादा सुख, आराम, उपलब्ध होने पर, कमाने की आवश्यकता ही न होने पर, नौकर-चाकर तथा परिवार के सदस्यों पर ही निर्भर रहने पर, किसी बड़े रोग के हो जाने पर, अपने कार्यों में, शिक्षा में बार-बार असफलता मिलने पर, किसी भी कारण से गहरी नींद न आ सकने पर, दिनभर शरीर टूटा रहने पर आलस्य बना रहता है। हां, परिवार में सदा उपेक्षित रहने पर या मन में हीन भावना होने पर भी आलस्य व्यक्ति को घेरता है।
उपचार- व्यक्ति स्वयं अपने आलस्य का कारण ढूंढ़े। निम्नलिखित एक या एक से अधिक कारणों को जीवन से हटा दें।
* सदा तेज कदमों से चलना शुरू करें। कदम ढीले ढाले नहीं उठाएं।* जब भी सांस लें, गहरी सांस लें। सांस रोकें। फिर नि:श्वास लें। * अच्छा साहित्य पढ़ा करें, वीर, साहसी, महान, क्रांतिकारी,आदर्श, त्यागी महापुरुषों की जीवनियां पढ़ें। * ऐसे अपंग, विकलांग लोगों का साहित्य भी पढ़ें, जिन्होंने कुछ कमाल किये हैं। * दूध में एक बड़ी इलायची, दो लौंग, चार काली मिर्च, आधा चम्मच सौंठ, तेजपात व दालचीनी डालकर उबालें। यह विशेष दूध पीना शुरू करें। आलस्य नहीं रहेगा। * प्रतिदिन कुछ मात्रा में सूखे मेवे खूब चबा-चबाकर खाएं। * ताजा फलों तथा फलों के रस का प्रयोग करें। * हरी सब्जियां सलाद जरूर खाएं। * शहद, नीबू अवश्य लें। * दिन में एक या दो कप चाय पीना भी शरीर चुस्त करता है।
* मूंगफली भी खाएं। भुने हुए चने भी खाएं। संभव हो तो गर्म पानी की बजाय ठंडे पानी से नहाया करें। यदि ठंडे पानी से नहीं नहाते हैं तो अब आदत डालें। इन्हें अपनाएं और आलस्य भगाएं।