मुंबई, 27 नवंबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने कहा है कि भारत को 2047 तक विकसित देश बनने की आकांक्षा को पूरा करने के लिए वित्तीय संस्थानों के पैमाने और आकार के मामले में लंबी छलांग लगाने की जरूरत है।
उन्होंने पिछले सप्ताह यहां भारतीय रिजर्व बैंक के 90 साल पूरे होने के अवसर पर आयोजित ‘वैश्विक दक्षिण (ग्लोबल साउथ) में केंद्रीय बैंकों के उच्चस्तरीय नीति सम्मेलन’ में कहा, ‘‘हम अगर पीछे मुड़कर देखते हैं, हम पाते हैं कि अतीत में शुरू किए गए नियामकीय विकास और नीतिगत उपायों से भारत में एक मजबूत वित्तीय प्रणाली का विकास हुआ है, जिसने कई संकट का सामना किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमारे देश के लिए जो लक्ष्य हैं, उसके लिए हमें वित्तीय संस्थानों के पैमाने और आकार में लंबी छलांग लगाने की जरूरत है।’’
इससे इकाइयों और उनके उपयोगकर्ताओं के लिए जोखिम भी बढ़ने की आशंका है।
डिप्टी गवर्नर ने कहा कि इसे देखते हुए, मजबूत संचालन व्यवस्था और प्रभावी जोखिम प्रबंधन दोहरे आधार बनने जा रहे हैं जो हमारे वित्तीय संस्थानों को चालू रखेंगे और उन्हें लगातार बढ़ने में मदद करेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘व्यापक तौर पर, वर्ष 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने की हमारी राष्ट्रीय आकांक्षा को अब भी एक जटिल और तेजी से विकसित हो रहे वित्तीय परिदृश्य में वित्तीय संस्थानों की एक मजबूत नींव की आवश्यकता है।’’
राव ने कहा कि बैंकों के अलावा, मौजूदा इकाइयों को परिसंपत्ति की अपनी बढ़ती जरूरतों को वित्तपोषित करने के लिए मजबूत पूंजी बाजारों तक आसान पहुंच की आवश्यकता होगी। साथ ही उन्हें मजबूत वित्तीय बाजारों तक पहुंच की जरूरत होगी जो उन्हें बही-खाते से संबंधित जोखिमों से बचाव करने में सक्षम बनाएगी।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा, बढ़ती कर्ज जरूरतों को पूरा करने के लिए नयी इकाइयों, उत्पादों और सेवाओं (निजी क्रेडिट) का आगमन होगा।
राव ने कहा, ‘‘इसीलिए, इन चुनौतियों से निपटने और नवोन्मेष की प्रक्रिया में बाधा डाले बिना वित्तीय स्थिरता को बनाये रखने के लिए एक उपयुक्त नियामकीय प्रणाली स्थापित करनी होगी।’’
उन्होंने कहा कि दुनिया में ऐसे केंद्रीय बैंक कम हैं, जिन्हें आरबीआई जैसी व्यापक जिम्मेदारी मिली हुई है।
डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘‘आरबीआई एक पूर्ण सेवा वाला केंद्रीय बैंक है। इसका कार्यक्षेत्र मौद्रिक नीति, मुद्रा प्रबंधन, विनियमन और पर्यवेक्षण, भुगतान प्रणाली, वित्तीय समावेश और विदेशी मुद्रा भंडार के प्रबंधन जैसे क्षेत्रों तक फैला हुआ है।
राव ने कहा, ‘‘इस बढ़ी जिम्मेदारी के बावजूद, आरबीआई के अस्तित्व के नौ शानदार दशक और एक नियामक तथा पर्यवेक्षक के रूप में 75 साल के अनुभव ने एक मजबूत वित्तीय क्षेत्र की नींव बनाई है जो देश को अपनी विकास संबंधी आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद कर सकता है।’’