महिलाओं की आम समस्या में से एक है – श्वेतप्रदर। कोई स्त्री इससे अनभिज्ञ हो, संभव नहीं। यूं तो प्रत्येक स्त्री में सामान्यत: योनिगत स्त्राव गंधरहित व अल्प मात्रा में सदैव रहता ही है, पर इसकी अति मात्रा व दुर्गंधयुक्त होना ही रोग का रुप धारण करता है। योनिद्वार से दुर्गंधयुक्त, मलिन, चिपचिपा, गाढ़ा मवाद भरा स्त्राव अनियमित रुप से आना व जिसका प्रभाव स्त्री के स्वास्थ्य व सौंदर्य पर पडऩा ही श्वेतप्रदर कहलाता है। आज अनेक महिलाएं इस तकलीफदेह समस्या से पीडि़त है, लज्जावश कई महिलाएं यह समस्या कह नहीं पाती जिसके भयंकर दुष्परिणाम होते है। प्रचलित भाषा में इसे सफेद पानी या ल्युकोरिया कहते हैं। श्वेतप्रदर में कारणीभूत घटक इस प्रकार है यथा प्रजनन अंगो को अस्वच्छ रखना, कुपोषण, व्यायाम का पूर्णत: अभाव, अंतस्त्रावी गं्रथियो का असंतुलन, जीर्ण रोग की वजह से अव्यवस्थित जीवनशैली, तनावयुक्त रहना, मानसिक भावावेश, भय, क्रोध, वैवाहिक जीवन से असंतुष्ट, गर्भाशय संबंधी रोग, गर्भाशय मुख पर सूजन, छाले होना, मासिक धर्म संबंधी रोग, अत्यंत रज:स्त्राव, बार-बार गर्भपात होना, प्रजनन संबंधी संक्रमण के कारण, प्रजनन संबंधी अन्य व्याधि इसके अलावा एनीमिया, छोटी आयु में गर्भवती होना, योनि में किसी प्रकार का चर्मरोग, कामुकता, अधिक गर्भनिरोधक गोलियॉं सेवन करना, कॉपर टी इत्यादि गर्भनिरोधक का प्रयोग, बहुमूत्र, कब्ज, अधिक प्रसव होना इत्यादि अनेक कारण है जिससे श्वेतप्रदर होने की संभावना है।
आयुर्वेद में योनिव्यापद् के अंतर्गत श्वेतप्रदर का वर्णन किया गया है। कारणों में अति स्निग्ध, तीक्ष्ण उष्ण, मसालेदार आहार का सेवन, योगासन व व्यायाम का अभाव, संबंधित अंग की अस्वच्छता, दिन में सोना, गर्भाशय संबंधी रोग, प्रसूतावस्था में आहार-विहार पर विशेष ध्यान न देना इत्यादि का समावेश किया गया है।
श्वेतप्रदर से ग्रस्त महिलाएं सदैव कमरदर्द की पीड़ा से परेशान रहती है, वेदनाशामक औषधियों से तात्कालिक लाभ की प्राप्ति होती है, पर पुन: वैसी ही स्थिति हो जाती है। इसके अलावा पीठ के निचले हिस्से में दर्द, जांघो में अकडऩ, उदरशूल, शिर:शूल, कब्जियत, हमेशा थकावट की प्रतीति, शरीर के प्रत्येक अंग में पीड़ा, चेहरा निस्तेज व झुर्रियां होना, चक्कर आना, ऑखों के सामने अंधकार छाना, भोजन के प्रति अरुचि, अत्यंत दुर्बलता, बार-बार मूत्र की इच्छा, किसी कार्य में मन नहीं लगना, योनिद्वार से चावल के मांड जैसा सफेद कुछ गाढ़ापन युक्त दुर्गंधित स्त्राव होना, बाल झडऩा, स्वभाव में चिड़चिड़ापन, ऑंखों के चारो ओर काले घेरे होना, थोड़ासा श्रम करने पर श्वास फूलना। किसी-किसी महिला को मासिक धर्म के पहले व पश्चात तकलीफ होती है। रुग्णा का शरीर इतना कमजोर हो जाता है कि अन्य रोग भी उसे घेर लेते हैं।
दुष्परिणाम: लगातार श्वेत प्रदर रहने पर गर्भाशय, मुख पर छाले हो जाते है । जिससे गर्भाशय मुख पर सूजन होकर रुग्णा सदैव वेदना से त्रस्त रहती है । श्वेत प्रदर से पीडि़त रुग्णा में बॉंझपन भी पाया जाता है। यदि प्रसव हुआ तो अक्सर बच्चा दुर्बल होता है।
चिकित्सा: कुछ चिकित्सक बाहरी साधनों से प्रदर के स्त्राव को रोक देते है, यह करना ऐसे ही हानिकारक होता है जैसे गंदे गटर को जबरदस्ती रोक दिया जाये तो भीतर गंदगी भरी रह जायेगी तथा उसकी दुर्गंध किसी न किसी तरह बाहर भी फैलेगी इसको जबरदस्ती बंद करने से डिंबग्रंथियो में सूजन, पेट तथा फेफड़ो के रोग, यकृत के रोग एवं मानसिक व्याधियॉं उत्पन्न हो जायेगी। श्वेत प्रदर की समस्या से पीडि़त रुग्णा को सर्वप्रथम यौनांगों की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए इसके लिये पानी में बोरिक एसिड मिलाकर सफाई की जाती है।
ल्युकोरिया की चिकित्सा कारणानुसार ही करना चाहिए। स्त्री रोगों की चिकित्सा आयुर्वेद संहिताओं में फलदायी बताई है। इसके अंतर्गत मुख्यत: औषधियां व पंचकर्म का समावेश होता है। ल्युकोरिया के कारणों में स्थानिक कारण ही विशेष होते हैं, अत: स्थानिक शोधन व श्वेतप्रदर पर असर करने वाली औषधियां अधिक परिणाम देती है । अत: पंचकर्म के उत्तरस्ति कर्म में प्रयुक्त औषधियां स्थानिक शोधन करती है तथा श्वेतप्रदर से भी मुक्ति मिल जाती है।