हमारे देश में पुरानी धार्मिक कथाएं एवं सत्संग सुनने के लिए लोग समय निकाल कर सत्संग में जाते है। वैसे तो हिंदुस्तान में कथावाचकों की बाढ़ सी आ गई हुई है. जिसको देखो वहीं कथा वाच रहा है। ये भी एक व्यवसाय की तरह हो गया है। इसका भी बाजार सालाना हजारों करोड़ का हो गया है। एक कथा के आयोजन में पचासों लाख से लेकर करोड़ों रुपए का खर्च हो जाता है। हर कथा वाचक के अपने फॉलोवर्स हैं। ये एक इवेंट की तरह हो गया है। कथा में क्या सुनाया जा रहा है, इससे किसी को कुछ लेना देना नहीं रहता है। महिलाओं के लिये घर से बन संवर के निकलने का बहाना होता है और जहाँ महिलाएं होंगी, वहाँ पुरुषों का जमघट लगाना स्वाभाविक है। बहुत से लोग इसमें सिर्फ भंडारे के लिए इकठ्ठा हो जाते हैं।
कितने कथावाचकों की पोल पट्टी खुल चुकी है लेकिन इससे जनता के सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। सभी सोचते हैं कि मेरा वाला ऐसा नहीं होगा। भारत में लोग इतने आस्थावान हैं कि उनके आँखों पर पड़े पर्दे को हटाना नामुमकिन है। और सिर्फ एक धर्म की बात नहीं है अपितु ये सभी धर्मों के मानने वाले पर एक समान लागू होता है। हिन्दू धर्म के मानने वाले फिर भी बहुत उदार होते हैं। बाकी धर्म के लोग कट्टरता के सीमा को भी लाँघ जाते हैं। पिछले दिनों कथा वाचिका जया किशोरी कहीं से आ रहीं थीं, उनके पास किसी ब्रांडेड कंपनी का बैग था जिसको लोगों ने लेदर बैग समझ लिया और सोशल साइट्स पर ट्रोल करना शुरू कर दिया।
जया किशोरी ने अपने आलोचकों को बहुत बढ़िया जबाब दिया। उन्होंने माना कि वो कोई संत महात्मा नहीं है। वो एक सामान्य महिला की तरह हैं । वो एक सामान्य गृहिणी की तरह हैं और वे शादी करके एक गृहस्थ की तरह अपना जीवन यापन करेंगीं। इतनी साफगोई से बात कहने की हिम्मत सभी में नहीं होती है। सभी लोग लकीर के फ़क़ीर की तरह ही रहते हैं। सभी संत महात्मा एक ही तरह की वेशभूषा में रहते हैं। लोग इन परिपाटी से अलग नहीं होना चाहते हैं। कथा वाचन के लिए ये जरूरी नहीं है कि आप कोई विशेष वेशभूषा धारण करें. इसके लिये सिर्फ आपमें बोलने की क्षमता या ज्ञान का होना ही काफी है। कथा वाचन के लिए ये भी जरूरी नहीं है कि आपका खानपान कैसा होगा या और किसी विशेष प्रकार की पाबंदी भी लगाने की कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। आज के समय कोई कंद मूल खा कर जीवनयापन नहीं कर सकता और इसकी कोई आवश्यकता भी नहीं है। अब समाज को इन आडम्बरों से छुटकारा पाने की आवश्यकता है। अब कपाल पर चंदन का लेप लगाने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। आपका ज्ञान आपकी पंडिताई का परिचायक होना चाहिए। जया किशोरी ने जो कहा, उस पर आज के कथावाचकों को घ्यान देने की जरूरत है। हम सभी को भी कथावाचक को संत महात्मा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।