आज की युवा पीढ़ी में वर्चुअल दुनिया के प्रति विशेष लगाव है और आज बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई और अन्य कार्यों को छोड़कर दिन-रात फेसबुक-इंस्टाग्राम से चिपके रहते हैं। एक तरह से बच्चे आज
वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो गए हैं लेकिन यह बच्चों के लिए ख़तरनाक है। दरअसल इससे बच्चों में बोलने और सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। बच्चों में सामाजिकता का विकास नहीं हो पाता है। कोरोना काल में बच्चों में इस प्रवृत्ति का जन्म अधिक हुआ।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व स्तर पर 160 में एक बच्चे को आटिज्म होता है।ऑटिज्म सोशल स्किल्स, कम्युनिकेशन स्किल्स व बिहेवियर स्किल्स(व्यावहारिक कौशल) को प्रभावित करता है। लैपटाप, टीवी, कंप्यूटर पर अधिक समय तक मूवी, कार्टून आदि देखने से भी यह समस्या होती है। ब्लू स्क्रीन आज के टाइम में टेक्नोलॉजी किशोरों, बड़ों, बच्चों की लाइफ बहुत बड़ा रोल निभा रही है, लेकिन यह बच्चों के शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल रही है।
बच्चों का मन गीली मिट्टी की भांति होता है, हम किसी कुंभकार की भांति मनचाहा आकार दे सकते हैं। मनोविज्ञानी जे.बी. वाटसन ने यूं ही नहीं कहा था कि -‘मुझे नवजात शिशु दे दो। मैं उसे डॉक्टर, वकील, चोर या जो चाहूँ बना सकता हूँ।’ इसलिए बच्चों के बचपन को आज सुरक्षित किए जाने की जरूरत है। इस संदर्भ में हाल ही में आस्ट्रेलिया की संसद में दुनिया का अपने किस्म का पहला अनोखा विधेयक पेश किया गया है। उल्लेखनीय है कि इसमें 16 साल से कम उम्र के बच्चों पर सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने का प्रावधान है। विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक अगर कंपनियां ( जैसे एक्स, टिकटॉक, फेसबुक, इंस्टाग्राम) बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने में कामयाब नहीं हो पाती है तो उन पर 3.3 करोड़ अमरीकी डॉलर (करीब 278 करोड़ रुपए) का जुर्माना लगाया जा सकता है। हालांकि यह विधेयक अभी सीनेट में पेश होना शेष है, लेकिन वहां से मंजूरी मिलने के बाद यह आस्ट्रेलिया में एक कानून बन जाएगा।
हालांकि इस अनोखे विधेयक की आस्ट्रेलियाई संसद में प्रस्तुति के बाद ज्यादातर अभिभावकगण खुश नजर आ रहे हैं लेकिन वहीं विशेषज्ञों ने बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखें जाने पर सवाल उठाए हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस विधेयक में यूट्यूब जैसे कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को प्रतिबंध के दायरे से बाहर रखे जाने की बात कही गई है, क्योंकि यूट्यूब का इस्तेमाल बच्चे स्कूल के काम और कई अन्य कारणों से भी करते हैं। कहा गया है कि कानून बनने पर सभी सोशल मीडिया कंपनियों को एक साल का ग्रेस पीरियड दिया जाएगा, ताकि वे बच्चों पर बैन लगाने की योजना तैयार कर सकें। हाल फिलहाल, इस संदर्भ में कहना ग़लत नहीं होगा कि आज विश्व भर में सोशल नेटवर्किंग साइट्स का अंधाधुंध उपयोग एक बड़ी समस्या बन गई है। विज्ञान वरदान है तो अभिशाप भी है।
दरअसल, बच्चों द्वारा अंधाधुंध सोशल नेटवर्किंग साइट्स के उपयोग से खेल, पुस्तकालय और अन्य सामुदायिक(सामाजिक) व्यस्तताओं, काम-काज और व्यक्तिगत गतिविधियों आदि के लिए कोई समय नहीं बचता है। भारत को भी इस संदर्भ में आस्ट्रेलिया की भांति कोई कदम उठाने चाहिए, क्यों कि भारत आज विश्व का सबसे युवा देश है। आंकड़ों की बात करें तो यूएनएफपीए की द स्टेट ऑफ वल्र्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार भारत में लगभग 68 प्रतिशत जनसंख्या 15-64 की उम्र के बीच हैं, जबकि 65 से ऊपर के लोग सिर्फ 7 प्रतिशत हैं। युवा किसी भी देश का असली भविष्य होते हैं, इसलिए सोशल मीडिया के इस्तेमाल के संदर्भ में आवश्यक कदम उठाए जाने की जरूरत है।