जप करते समय नींद क्यों आती है?

जप करते समय निद्रा आवेश भी अक्सर हो सकता है। निद्रा, तन्द्रा, योगनिद्रा तीन तरह के लक्षण प्रकट होते हैं। जप करते समय जब अन्दर के षट्चक्रों पर दबाव पड़ता है तो शक्ति अन्दर से बाहर की ओर आती है तो मांसपेशियों पर दबाव पड़कर थकान महसूस होती है। लेकिन उस समय उर्जा भी उत्पन्न होती है जो राहत पहुंचाती है तो निद्रा आती है।
तन्द्रा में थकान महसूस नहीं होती है, शरीर कुछ हल्का होने लगता है, प्राणवायु का स्पन्दन आगे बढ़ने लगता है तो भोहों पर दबाव पड़ता है। तब कुछ समय के लिये पलकें बन्द होने लगती हैं।


तन्मयता से जप करते समय या स्रोत्रा पाठ करते समय भावुकता बढ़ती है। हृदय कमल पर दबाव पड़ता है तो बुद्धि एवं चित्त पर उर्ध्वगमन वायु का प्रभाव बढ़ता है, शरीर विचार शून्य होने लगता है परन्तु शरीर को स्रोत्रा पाठ हेतु जागरुक रखना पड़ता है आँखों के हीरे ऊपर की ओर घूमने लगने जैसा आभास होता है।


चित्त को जबरदस्ती खींचते रहने पर ही स्रोत्रा पाठ संभव है। अगर मंत्रा जाप करते हैं तो तन्मयता योगनिद्रा में परिवर्तित होकर ध्यानमुद्रा में आपका चित्त स्थिर होगा।
योगनिद्रा एवं ध्यान का आपस में संबंध है।


योगनिद्रा का सोते समय अधिक अभ्यास करें। जब जप करते समय आपकी तन्मयता अधिक बढ़कर शरीर शून्य होकर चित्त व प्राणवायु का उर्ध्वगमन होने लगता है, आज्ञाचक्र से जब वायु ऊपर जाती है तो किसी किसी की आँखों की भीतर पुतलियाँ एकदम 90 डिग्री ऊपर घूम जाती हैं।


तो ध्यान केंद्रित हो जाता है वह अवस्था निंद्रा, तंद्रा, ध्यान, जप सब अवस्था में आ जाती है।