द्वापर युग के महानायक भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली देखने और अपने कान्हा के साथ साथ राधा रानी के बरसाना जाने की मेरी पत्नी सुनीता की वर्षो से इच्छा थी,लेकिन कभी ऐसा अवसर नही आया था कि वहां जाकर भक्ति की नगरी में कृष्णमय हुआ जा सके।अचानक मेरे भांजे दिनेश जो पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर रहे है,के द्वारा वृंदावन में एक गेस्ट हाउस बनाने व उसके लिए मुहर्त अवसर पर आमंत्रण का सौभाग्य मिला तो मुझे लगा यह एक बेहतर अवसर है कान्हा के घर जाने का। मैंने बिना देरी किये मथुरा में डाक विभाग के एसएसपी रहे अपने मित्र अरविंद शर्मा को साथ चलने के लिए तैयार किया और हम 17 अगस्त की सुबह नन्दादेवी एक्सप्रेस से जा पहुंचे रुड़की से मथुरा।
ट्रेन से उतरते ही रेलड़ाक सेवा के गेस्टहाउस पहुंचकर थोड़ा आराम किया और फिर हल्का नाश्ता करने के बाद सीधे श्रीकृष्ण जन्मस्थली जा पहुंचे।चूंकि यहां एक बार पहले भी आ चुका हूं इसलिए दर्शन में सुगमता रही।मेरी पत्नी सुनीता का मन पहले द्वारकाधीश मंदिर जाने का था लेकिन जैसा पिछली बार मेरे साथ हुआ, वैसा ही संयोग इस बार भी हुआ,ऑटो वाले ने कहा,पहले श्रीकृष्ण जन्मस्थली चलो वह निकट है, फिर वहां से द्वारकाधीश चलना।हमे उसकी बात उचित लगी और हम पहुंच गए श्रीकृष्ण जन्मस्थली, जहां भारी पुलिस सुरक्षा के बीच श्रद्धालुओ के मोबाइल ,कैमरे बाहर ही रखवा दिए जाते है। दो दो बार तलाशी लेकर ही जन्म स्थान पर जाने दिया जाता है।
श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मुखद्वार बहुत सुंदर कलाकृतियों से बना है।द्वार पर दोनो तरफ द्वारपाल की प्रतिमाएं लगी है।हमने कन्हैया के जन्मस्थान पर बने उस विराट भव्य मन्दिर के दर्शन किये, जिसे जन्माष्टमी पर टेलीविजन पर पूरी दुनिया लाइव देखती है, फिर गर्भ गृह जाकर वह जेलनुमा गुफा देखी जहां देवकी ने कन्हैया को जन्म दिया था।आज भी वह स्थान किसी कालकोठरी से कम नही लगता।चूँकि कान्हा वहाँ जन्मे थे, इसलिए जेल की कालकोठरी भी श्रद्धा भाव का प्रतीक बन गई।श्रीकृष्ण जन्म स्थान रूपी इस विराट व भव्य परिसर मे कई अन्य मन्दिर है और कृष्ण चबूतरा भी बना हुआ है। जन्म स्थान की दीवार से सटी एक मस्जिद है। जन्मस्थली पर लेजर शो के माध्यम से जहां कृष्ण महिमा दिखाई जाती है, वही भव्य झांकियो के Circle कृष्ण लीला के दर्शन होते है। हमने भी श्रद्धाभाव के साथ कान्हा के दर्शन किए और फिर अगले पड़ाव श्री द्वारकाधिश्वर मन्दिर जाकर राजा के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन किए , पास ही बह रही यमुना जी श्रीकृष्ण लीला की प्रत्यक्ष साक्षी नज़र आती है। मथुरा में हम जहां जहां भी गए वही वही जय श्रीकृष्णा – राधे राधे के उद्बोधन की गूंज से मन को अच्छा लगा ।
भक्ति की इस नगरी मे एक बार जाने के बाद बार बार जाने और कन्हैया की याद मे खो जाने की ललक ही मथुरा को जीवन्त बनाये हुए है।वास्तव में योगिराज श्रीकृष्ण सोलह कला सम्पन्न देवता है, जिन्होंने अपनी सर्वगुण सम्पन्नता महाविकारी व अत्याचारी शासक कंस का वध किया और महाभारत युद्ध के समय श्रीमद् भागवत गीता के उदभव के निमित्त बने। श्रीमद् भागवत स्वयं परमात्मा का सन्देश है जो अर्जुन को धर्म की रक्षा के लिए दिया गया।श्रीकृष्ण का पूर्ण आभामण्डल ही हर किसी को लुभाता रहा है।उनका मनमोहक स्वरूप,उनकी गीत संगीत से ओत प्रोत ज्ञान मुरली,उनकी प्राकृतिक आपदा के समय गोवर्धन पर्वत के माध्यम से जनसामान्य की मदद करने की घटना व गरीब मित्र सुदामा का अपने राजमहल मे दिव्य व भव्य अतिथि सत्कार कर श्रीकृष्ण सबके दिलो में बस गए ।तभी तो कही लड्डू गोपाल के रूप मे तो कही नटखट गोपाल के रूप मे,कही घनश्याम के रूप मे तो कही कन्हैया के रूप मे श्री कृष्ण विभिन्न कला दिखाते हुए नजर आते है।श्रीकृष्ण जी महाराज जिसे पौराणिकों ने लीलाधर, रसिक, गोपी प्रेमी, कपड़े चोर, माखन चोर और न जाने क्या-क्या लिखा गया जिससे श्रीकृष्ण की छवि प्रभावित भी हुई।योगिराज श्रीकृष्ण की 16 हजार गोपियाँ दर्शाई गई, वे छिपकर कपडे चुराने जाया करते थे, गीत बना दिए कि मनिहार का वेश बनाया श्याम चूड़ी बेचने आया, अश्लील कथा जोड़ दी कि उनके आगे पीछे करोड़ो स्त्रियाँ नाचती थी वो रासलीला रचाते थे|
ऐसी स्थिति में श्री कृष्ण को समझना बहुत आवश्यक है| श्रीकृष्ण महाभारत में एक पात्र है जिनका वर्णन सबने अपने-अपने तरीके से किया है। सूरदास ने कृष्ण को बचपन से बाहर नही आने दिया, सूरदास के कृष्ण कभी बच्चे से बड़े नहीं हो पाते है। रहीम और रसखान ने उनके साथ गोपियाँ जोड़ दी, इन लोगों ने वो कृष्ण नही दिखाया जो शुभ को बचाना, अशुभ को छोड़ना सिखाता था| कृष्ण की बांसुरी में सिवाय ध्यान और आनंद के और कुछ भी नहीं था पर मीरा के भजन में दुख खड़े हो ,गये पीड़ा खड़ी हो गयी। हजारों सालों तक कृष्ण के जीवन को हर किसी ने अपने अपने तरीके से प्रस्तुत किया। कृष्ण का असली चरित्र जो वीरता का चरित्र था जो साहस का था, जो ज्ञान का था, जो नीति का था ,जिसमें युद्ध की कला थी, वो सब हटा दिया । स्वामी दयानंद आये. उन्होंने हमारे सामने कृष्ण के शब्दों को रखा, हमें बताया कि हम लड़ तो रहे पर अपने लिए नहीं अपितु दूसरे के लिए लड़ रहे है, उठो लड़ो अपने लिए लड़ो| योगिराज की नीति उनकी युद्ध कला को समझाया| अर्जुन नाम मनुष्य का है कृष्ण नाम चेतना का है जो सोई चेतना को जगा दे उसी जाग्रत चेतना का नाम कृष्ण है| जो अपने धर्म व देश के प्रति आत्मा को जगा दे उसी का नाम कृष्ण है|
कृष्ण को पुराणों के चश्मे से नहीं समझा जा सकता क्योकि वहां सिवाय मक्खन और चोरी के आरोपों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा| मन्दिरों में नाचने से कृष्ण को नहीं पाया जा सकता. उसके लिए अर्जुन बनना पड़ेगा. तभी कृष्ण को समझा जा सकता है| यह सत्य है कृष्ण जैसा कोई दूसरा उदाहरण फिर पैदा नहीं हुआ| यदि स्त्री जाति के सम्मान की बात आये तो कृष्ण जैसा उदाहरण नहीं मिलेगा ।कृष्ण ने जरा-सा भी अपमान किसी स्त्री का नहीं किया। योगिराज के महान चरित्र को रासलीला से जोड़ दिया| धर्म की बुनियादों में कृष्ण हमेशा से जीवित है , जिस दिन यह अंधविश्वास के अंधकार का पत्थर हटेगा तब कृष्ण को को पा सकेंगे| मथुरा के अधिकांश लोगो की रोजी-रोटी भगवान श्रीकृष्ण के कारण ही चल रही है लेकिन तरह से मथुरा के ऑटो रिक्शे वाले,मंदिरों के बाहर जबरन टीका लगाने या फिर मंदिर में सीधे दर्शन कराने के नाम पर लूट खसोट करने वालो से मथुरा की गरिमा प्रभावित हो रही है।चाहे यातायात व्यवस्था हो या फिर मंदिरों में श्रद्धालुओं को व्यवस्थित करने का पुलिस का जिम्मा, दोनो ही भगवान भरोसे है।पुलिस सिर्फ मूक दर्शक बन श्रद्धालुओं को उनके हाल पर छोड़ देती है जो कभी भी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकता है जिसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा यही कहा जाएगा।कृष्ण नाम की लूट है,लूट सके तो लूट ।