यह सत्य है कि कोई भी राष्ट्र तब तक उन्नति नहीं कर सकता, जब तक वहॉं के नागरिक स्वस्थ और शिक्षित न हों। दुर्भाग्यवश हमारे देश में ये दोनों ही पैसा कमाने का सुलभ व्यवसाय बन गए हैं। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है। प्राचीनकाल में डॉक्टर को वैद्य कहा जाता था। भगवान कहे जाने वाला वही डॉक्टर यदि यमराज की तरह व्यवहार करने लगे यानी वह रोगियों के इलाज से अधिक धन को महत्त्व देने लगे तो रोगी मनुष्य कहाँ जाए। ऐसे डॉक्टर का सम्मान घटने लगता है। विवशता तो यह है कि उसके पास गाहे-बगाहे इलाज के लिए जाना ही पड़ता है।
आजकल प्रायः डॉक्टर लोग मरीज के इलाज से अधिक उसकी जेब को टटोलने में लगे रहते हैं। वे भी तथाकथित पण्डितों यानी ज्योतिषियों की तरह लालची बनते जा रहे हैं। ज्योतिषी अपने पास आए परेशान व्यक्ति को ग्रहों के वक्री होने या घर के किसी व्यक्ति की मृत्यु का डर दिखाकर, उसका उपचार करवाने या पूजा-पाठ करवाने के नाम पर यजमान से धन बटोरते हैं। अब चाहे व्यक्ति के पास धन न हो और उसे उधार लेकर ही क्यों न उन्हें देना पड़ जाए।
इसी तरह आजकल डॉक्टर लोग भी छोटी-सी बीमारी को पहाड़ जैसा बड़ा बनाकर अपने मरीजों को डराते हैं और उन्हें ऑपरेशन करवाने के लिए विवश करते हैं। अपनी सेहत को गँवाकर उनके लालच का भुगतान बेशक व्यक्ति को सारी आयु क्यों न करना पड़ जाए। यहाँ भी वही बात है कि मनुष्य को चाहे अपना घर, खेत या जमीन गिरवी रखकर अथवा बेचकर ही क्यों न उनकी फीस का पैसा चुकाना पड़े। डॉक्टरी का पवित्र पेशा अब दिन-प्रतिदिन धन्धा बनता जा रहा है। यह स्थिति वाकई बहुत कष्टदायी है।
किसी कवि ने इन लालची डॉक्टरों से व्यथित होकर अपने उदगार प्रकट किए हैं जो इस प्रकार हैं-
वैद्यराज नमस्तुभ्यं यमराज सहोदर:।
यमस्तु हरति प्राणान् वैद्य: प्राणान् धनानि च।
अर्थात् हे यमराज के भाई वैद्यराज! तुम्हें प्रणाम। यमराज तो सिर्फ प्राणों का हरण करता है परन्तु आप प्राण और धन दोनों का हरण कर लेते हो।
ऐसे डॉक्टरों की तुलना कवि ने यमराज से की है जो मनुष्य के प्राणों का हरण करते हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि यमराज केवल प्राण हरता है। वह भी तब, जब मनुष्य के पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मिली हुई उसके जीवन की अवधि समाप्त हो जाती है। पर बहुत से डॉक्टर ऐसे हैं जो गलत इलाज करके अपने मरीज के प्राणों को दाँव पर लगा देते हैं। ये लोग अपने मरीज के प्राणों के साथ उनके धन का हरण भी कर लेते हैं।
इसी के साथ ही यहाँ उन अस्पतालों की भी चर्चा करना चाहती हूँ जो सेवाकार्य के स्थान पर धन को अधिक महत्त्व देते हैं। वहाँ डॉक्टरों को सेवा करने के बजाए धन कमाने की मशीन समझते हैं। इसलिए डॉक्टर लोग भी अपने पास आने वाले मरीजों को ऑपरेशन करवाने के नाम पर ठगते हैं। आज ऐसे ऐसे ऑपरेशन किए जा रहे हैं, जिनकी रोगी को आवश्यकता ही नहीं होती। इन सब कारस्तानियों की चर्चा यदा कदा सोशल मीडिया और समाचार पत्रों में होती रहती है। इसके साथ ओवर बिलिंग या रोगी की मृत्यु के पश्चात डिक्लेयर न करने के स्थान उसके परिजनों से धन ऐंठते की भी चर्चा होती रहती है। इनकी हठधर्मिता के कारण पैसा न होने की स्थिति में लोगों को उनके मृतक परिजनों के शव देने से इन्कार कर दिया जाता है। साथ ही रोगियों को अस्पताल से तब तक छुट्टी नहीं दी जाती जब तक वे अस्पताल का पूरा पेमेंट नहीं कर देते।
ऐसा करते समय डॉक्टर भूल जाते हैं कि उन्होंने अपने प्रोफेशन या व्यवसाय में आते समय सेवा करने की शपथ ली थी। जैसे एक हाथ की पाँचों अँगुलियाँ बराबर नहीं होतीं, उसी प्रकार आज के व्यावसायिक माहौल में भी ऐसे सेवाभावी डॉक्टर मिल जाते हैं जो भेड़चाल में नहीं हैं यानी वे इस रेस में शामिल नहीं हैं। वे अपनी जेब से पैसा खर्च करके अपने पास आने वाले रोगियों का उपचार करते हैं। ऐसे कर्तव्यनिष्ठ और लगनशील डॉक्टरों को हम हृदय से नमन करते हैं। अन्य दूसरे डॉक्टरों को भी अपने इस पुण्य व्यवसाय के प्रति निष्ठावान होना चाहिए, तभी वे अपना खोया हुआ सम्मान वापिस पाने में समर्थ हो सकते हैं।