उद्योग जगत ने आगामी बजट से लगाई उम्मीदें, सरकार को सौंपी सिफारिशें

नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) उद्योग जगत ने आगामी बजट में सीमा शुल्क के लिए माफी योजना, व्यक्तियों और एलएलपी फर्मों के लिए कर दरों में कटौती, कर अनुपालन को सुगम बनाने, अपीलों की त्वरित निगरानी और एक समर्पित विवाद समाधान प्रणाली के गठन की मांग रखी है।

देश के चारों प्रमुख उद्योग निकायों- सीआईआई, फिक्की, एसोचैम और पीएचडीसीसीआई के प्रतिनिधियों ने वित्त वर्ष 2025-26 के बजट से जुड़ी अपनी इन अपेक्षाओं से सरकार को अवगत कराया है।

उद्योग मंडलों ने वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के साथ आयोजित अलग-अलग बैठकों में एक फरवरी, 2025 को पेश किए जाने वाले आगामी बजट के संबंध में विस्तृत सिफारिशें पेश की हैं।

फिक्की ने पिछले बकाया शुल्क को चुकाने के लिए एकमुश्त निपटान योजना के रूप में ‘सीमा शुल्क के तहत माफी योजना’ लाने की मांग रखते हुए कहा है कि इससे उद्योग को मुकदमेबाजी के बोझ को कम करने में मदद मिलेगी।

इसी तरह एसोचैम ने भी सीमा शुल्क के तहत एक व्यापक कर माफी योजना शुरू करने की वकालत की है। एसोचैम ने कहा, ‘‘सरकार पिछले मुकदमों को निपटाने के लिए एकमुश्त निपटान योजना लाने पर विचार कर सकती है।’’

उद्योग मंडलों ने टीडीएस (स्रोत पर कर कटौती) के संबंध में सरलीकृत अनुपालन और प्रभावी एवं समयबद्ध विवाद समाधान के लिए एक नए स्वतंत्र विवाद समाधान मंच की शुरुआत की भी मांग की है।

फिक्की ने महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार से डे-केयर (कामकाजी अवधि के दौरान बच्चों की देखभाल) खर्चों की भरपाई को रियायती कराधान से छूट देने का आग्रह किया।

पीएचडीसीसीआई ने व्यक्तियों और सीमित देयता भागीदारी (एलएलपी) फर्मों के लिए कराधान की दरों में कटौती, वैधानिक अवधि शुरू कर बिना आमने-सामने आए यानी फेसलेस अपीलों पर तेजी से नजर रखने, पेशेवरों के लिए अनुमानित कर योजना की सीमा बढ़ाने, पीएलआई योजना का दायरा अन्य क्षेत्रों में बढ़ाने से संबंधित सुझाव प्रस्तुत किए।

पीएचडीसीसीआई के अध्यक्ष हेमंत जैन ने कहा, ‘‘उम्मीद है कि केंद्रीय बजट का आकार बढ़कर वर्ष 2025-26 के लिए 51 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा और पूंजीगत व्यय का विस्तार 13 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा।’’

इसके साथ ही एसोचैम ने कुछ टीडीएस चूक को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की भी मांग की है। उसने कहा कि आपराधिक कार्यवाही केवल तभी होनी चाहिए जब करदाता ने सरकार की कीमत पर खुद को समृद्ध किया हो।