भारतीय नारी के अभिन्न साथी हैं आभूषण। गांव की गोरी तन पर ढेरों गहने लादे, बल खाती इतराती हुई चलती है जबकि शहरों में यह रिवाज कम होता जा रहा है, शायद इसलिये कि गहने अर्थात् आभूषण पहनना अब गंवारू लगने लगा है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि गंवारू लगने वाले इन आभूषणों का आयुर्वेदिक आधार भी है। चौंकिये मत, यकीन न हो तो किसी अनुभवी वैद्य के पास जाकर पूछिये, आपको बहुत रोचक जानकारी मिलेगी।
आप जानते ही होंगे कि स्वर्ण, लौह आदि का हमारे शरीर में समावेश होता है। यदा-कदा इनका संतुलन बिगड़ने पर आयुर्वेद भी इनका चूर्ण या भस्म आदि देकर उस बिगड़े हुये अनुपात को संतुलित कर देता है। ठीक उसी प्रकार ये गहने भी तत्संबंधी ऊर्जा का नियंत्राण और विकास सुचारू ढंग से करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर में सौ से भी अधिक चेतना केंद्र होते हैं।
शरीर के इन्हीं केंद्रां के आस-पास मुख्यतः गहने धारण किये जाते हैं क्योंकि ये चेतना केंद्र अति संवेदनशील होते हैं और शरीर के बाहर हो रहे, हर छोटे बड़े परिवर्तन का प्रभाव सर्वदा इन्हीं केंद्रों के माध्यम से पड़ता है।
कर्ण आभूषण से आंतड़ियों व गर्भाशय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। कान में बाली पहनने से याददाश्त मजबूत होती है। बाली पहनने से मूत्रा संबंधी विकारों से भी रक्षा होती है। नथ, लौंग और बुलाक जैसे छोटे गहने भी मस्तिष्क को क्रियाशील रखने में सहायक होते हैं। यह नथ या कील मिरगी जैसे जानलेवा रोग से आपकी रक्षा करती है।
नाक-कान की तंत्रिकाओं का सीधा संबंध मस्तिष्क से होता है। कंगन या चूड़ियां पहनने से वाणी रोग, हकलाहट और तोतलापन तो दूर होता ही है, साथ में उल्टी, जी मिचलाना जैसी परेशानियों से बचा जा सकता है।
आपकी पायल, पाजेब या पांव का तोड़ा भी कम उपयोगी नहीं हैं। इनसे पोलियो, लकवा, साईटिका और पेट की व्याधियों से बचाव होता है। इनके बारे में कुछ वैद्यों का तो यह दावा है कि ये जननेन्द्रियों और पीठ पर भी अपना अनुकूल प्रभाव डालती हैं।
चांदी स्वाद गं्रथियों को लज्जत देती है। शायद यही कारण है कि प्राचीन काल से भोज्य पदार्थों पर चांदी का वर्क लगाया जाता है।
अब आपका सवाल हो सकता है कि यदि ऐसा ही है तो हकीम, वैद्यों या डाक्टरों का क्या काम। इन्हीं गहनों व आभूषणों को रोगी को पहना दिया कीजिये न, कभी रोग होगा ही नहीं?
बिलकुल ठीक। हमारे शरीर के वे सैंकड़ों रक्षक जिन्हें आप जीवाणु के नाम से जानते हैं, वे भी तो रोग से हमारी रक्षा करते हैं। उनकी सक्रिय भूमिका के बावजूद भी कई बार रोग के विषाणु अत्यधिक शक्तिशाली होने पर उनकी सक्रियता को नष्ट करके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और शरीर रोगी हो जाता है। तो क्या आप उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को नकार देंगे?
ठीक इसी प्रकार इन आभूषणों को भी आप अपना ऊपरी कवच मान सकते हैं। वैसे भी हमारी प्राचीन संस्कृति अर्थहीन नहीं है। उसमें राज भी होता है और आधार भी है।