नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर विचार करने की सहमति व्यक्त की, जिसमें बिहार में हाल के महीनों में कई पुलों के ढह जाने के बाद उनकी सुरक्षा और उनके स्थायित्व को लेकर चिंता जतायी गयी है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने इस साल 29 जुलाई को जनहित याचिका पर बिहार सरकार, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) एवं अन्य संबंधित निकायों से जवाब मांगा था।
सोमवार को याचिकाकर्ता के वकील ब्रजेश सिंह ने सुनवाई के लिए इस अर्जी का उल्लेख किया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं इस पर गौर करूंगा।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जानना चाहा कि क्या इस संबंध में उनके कार्यालय को एक ई-मेल भेजा गया है।
इस जनहित याचिका में संरचनात्मक ऑडिट करने तथा एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जो अपने निष्कर्षों के आधार पर उन पुलों की पहचान करेगी जिन्हें या तो मजबूत किया जा सकता है या ध्वस्त किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत ने बिहार सरकार एवं एनएचएआई के अलावा सड़क निर्माण विभाग के अवर मुख्य सचिव, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और ग्रामीण कार्य विभाग के अवर मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किया है।
इस साल मई, जून और जुलाई के दौरान बिहार के सिवान, सारण, मधुबनी, अररिया, पूर्वी चंपारण और किशनगंज जिलों में पुल ढहने की दस घटनाएं सामने आईं। कई लोगों का दावा है कि भारी बारिश के कारण ये घटनाएं हुईं।
जनहित याचिका में मानसून के दौरान बिहार में आमतौर पर भारी वर्षा होने और बाढ़ आने के मद्देनजर पुलों की सुरक्षा एवं उनके स्थायित्व को लेकर चिंता प्रकट की गयी है।
याचिका में उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने के अलावा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार पुलों की वास्तविक समय पर निगरानी की मांग भी की गयी है।