कार्तिक मास के शुक्लपक्ष को अन्नकूट-महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन गोवर्द्धन की पूजा कर अन्नकूट का अत्सव मनाना चाहिए। इससे भगवान विष्णु की प्रसन्नता प्राप्त होती है- ‘कार्तिकस्य सिते पक्षे अन्नकूटं समाचरेत्। गोवर्द्धनोत्सवं चैव श्रीविष्णुः प्रीयतामिति।।’ इस दिन प्रातः काल घर के द्वारदेश में गौ के गोबर को गोवर्द्धन बनाएं तथा उसे शिखरयुक्त बनाकर वृक्ष-शाखादि से संयुक्त और पुष्पों से सुशोभित करें। अनेक स्थानों में इसे मनुष्य आकार का भी बनाते हैं। इसके बाद गंध-पुष्पादि गोवर्द्धन भगवान का षोडशोपधार पूर्वक पूजन कर निम्न प्रार्थना करनी चाहिए- ‘गोवर्द्धन धराधर गोकुलत्राणकारक। विष्णुबाहुकृतोच्छाय गवां कोटिप्रदो भव।।’ इसके बाद आभूषणों से सुसज्जित गौओं का यथाविधि पूजन करें और निम्न मंत्रा से उनकी प्रार्थना करें – ‘लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता। घृतं वहति यक्षार्थे मम पाप व्यपोहतु।।’ इस दिन यथाशक्ति छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्द्धन रूप श्री भगवान का भोग लगाया जाता है। इसके बाद प्रसाद रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। मंदिरों में विविध प्रकार के पकवान, मिठाइयां, नमकीन और अनेक प्रकार की सब्जियां, मेवे, फल आदि भगवान के समक्ष सजाए जाते हैं तथा अन्नकूट का भोग लगाकर आरती होती है, फिर भक्तों में प्रसाद वितरण किया जाता है। ब्रज में इसकी विशेषता है। काशी, मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, नाथद्वारा आदि भारत के प्रमुख मंदिरों में लड्डुओं तथा पकवानों के पहाड़ (कूट) बनाए जाते है जिनके दर्शन के लिए विभिन्न स्थानों से यात्रा पधारते हैं। इस महोत्सव की कथा इस प्रकार है-द्वापर में ब्रज अन्नकूट के दिन इंद्र की पूजा होती थी। श्रीकृष्ण ने गोप-ग्वालों को समझाया कि गायें और गोवर्द्धन प्रत्यक्ष देवता हैं, अतः तुम्हें इनकी पूजा करनी चाहिए क्योंकि इंद्र तो कभी यहां दिखाई भी नहीं देते हैं। अब तक उन्होंने कभी आप लोगों के बनाए पकवान ग्रहण भी नहीं किए। फलस्वरूप उनकी प्रेरणा से सभी ब्रजवासियों ने गोवर्द्धन का पूजन किया।