दिव्यांग व्यक्तियों को तमिल भाषा की अनिवार्यता से छूट प्रदान करें : उच्च न्यायालय

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चेन्नई,मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिव्यांग व्यक्तियों के सामने आने वाली बाधाएं न केवल शारीरिक पहुंच के मुद्दों से परे हैं, बल्कि समाज के कई पहलुओं में व्याप्त गहरी जड़ें जमाए हुए पूर्वाग्रहों, रूढ़ियों और गलत धारणाओं तक फैली हुई हैं।

न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने हाल ही में पारित एक आदेश में यह टिप्पणी की, जिसमें तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड के सहायक अभियंता बी. विद्यासागर की याचिका स्वीकार की गयी, जिसमें उन्होंने अधिकारियों को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वे (अधिकारी) 23 मई, 2022 के शासनादेश के आलोक में तमिल भाषा परीक्षा उत्तीर्ण करने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए उन पर जोर न दें और लंबित वेतन वृद्धि एवं पदोन्नति प्रदान करें। याचिकाकर्ता दिव्यांग हैं।

न्यायाधीश ने कहा कि शिक्षा और रोजगार से लेकर स्वास्थ्य देखभाल और सार्वजनिक सेवाओं तक, दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर महत्वपूर्ण बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी पूर्ण भागीदारी और समावेशन में बाधा डालती हैं। उसी के मद्देनजर, एक संवैधानिक न्यायालय को सामाजिक, मनोवृत्ति, सांस्कृतिक, संस्थागत, संरचनात्मक, कानूनी और पर्यावरणीय बाधाओं की समझ विकसित करनी चाहिए, जिनका दिव्यांग व्यक्ति रोजाना सामना करते हैं।

उन्होंने कहा कि संवैधानिक न्यायालय को अपने निर्णयों के माध्यम से इन बाधाओं को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

शीर्ष अदालत के एक निर्णय का हवाला देते हुए न्यायाधीश ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से यह स्पष्ट है कि विशिष्ट दिव्यांगता के शिकार व्यक्तियों को उचित सुविधा प्रदान करने में विफलता के कारण उनके खिलाफ स्पष्ट भेदभाव होगा और जिसे संवैधानिक न्यायालय द्वारा ठीक किया जाना चाहिए।

न्यायाधीश ने कहा कि उपरोक्त आवश्यकता को पूरा करने के लिए, उच्चतम न्यायालय द्वारा विभिन्न निर्णय पारित किए गए हैं, जिनका पालन उच्च न्यायालयों द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि दिव्यांगता से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य रूप से सक्षम व्यक्तियों के लिए लागू की जाने वाली शर्तें थोपकर अनावश्यक कठिनाई में न डाला जाए।

न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में, याचिकाकर्ता निश्चित रूप से 100 प्रतिशत सुनने और बोलने की अक्षमता से पीड़ित था। किसी तरह उसने अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई पूरी की और अब तमिल भाषा की परीक्षा पर जोर दिया गया, जिसमें एक लिखित परीक्षा और एक मौखिक परीक्षा भी शामिल है।

उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की दिव्यांगता को देखते हुए, यह समझ से परे है कि याचिकाकर्ता मौखिक परीक्षा में कैसे शामिल होगा। इसलिए, याचिकाकर्ता को तमिल भाषा की परीक्षा पास करने से छूट देकर उचित रूप से समायोजित किया जाना चाहिए ।

न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता ने लंबे संघर्ष के बाद आवास बोर्ड में नौकरी प्राप्त की है और पिछले 10 वर्षों से काम कर रहा है। अगर उसे अब बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो उसकी दिव्यांगता को देखते हुए उसे बिना किसी रोजगार के सड़कों पर छोड़ दिया जाएगा। इसलिए, यह एक ऐसा योग्य मामला है, जहां याचिकाकर्ता को ऐसी छूट दी जा सकती है।

अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘उपर्युक्त चर्चा के आलोक में, यह अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करना चाहती है और तदनुसार, आवास बोर्ड को याचिकाकर्ता को तमिल भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण करने और प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने से छूट देने का निर्देश दिया जाएगा।

रिट याचिका में पारित इस आदेश का हवाला देते हुए तमिलनाडु आवास बोर्ड द्वारा इस संबंध में एक विशिष्ट आदेश पारित किया जाएगा। ऐसा आदेश चार सप्ताह के भीतर पारित किया जाएगा।

न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को कोई वेतन वृद्धि और सहायक लाभ नहीं दिया गया है, क्योंकि उसने तमिल भाषा की परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है।

उपरोक्त आदेश के आलोक में, अधिकारियों को याचिकाकर्ता को सभी सहायक लाभ प्रदान करने का निर्देश दिया जाएगा, जिसके वह हकदार था। न्यायाधीश ने कहा कि इस संबंध में उचित आदेश पारित किए जाएंगे और सहायक लाभ आठ सप्ताह के भीतर प्रदान किए जाएंगे।

 

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