कानूनों में स्पष्टता की कमी से न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत होती है : अमित शाह
Focus News 22 October 2024गांधीनगर, 22 अक्टूबर (भाषा) केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कानूनों में स्पष्टता की आवश्यकता पर जोर देते हुए मंगलवार को कहा कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब कानून बनाने के लिए जिम्मेदार लोग इसमें अस्पष्टता छोड़ देते हैं।
केंद्रीय मंत्री विधानसभा सचिवालय के अधिकारियों के लिए विधान तैयार करने के प्रशिक्षण संबंधी कार्यशाला के तहत गुजरात विधानसभा को संबोधित कर रहे थे।
शाह ने सदन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मैं जानता हूं कि मैं जो कुछ भी बोलने जा रहा हूं, उससे विवाद पैदा होगा, लेकिन मैं आपको बताना चाहता हूं कि न्यायपालिका तभी हस्तक्षेप करेगी, जब आप कानून का मसौदा तैयार करने में कोई अस्पष्टता छोड़ देंगे। कानून में जितनी अधिक स्पष्टता होगी, अदालतों का हस्तक्षेप उतना ही कम होगा।’’ सदन में विधायकों, सांसदों के साथ-साथ पूर्व विधायकों और अध्यक्षों की भी उपस्थिति थी।
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के कदम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘जब अनुच्छेद का मसौदा तैयार किया गया था, तो यह स्पष्ट रूप से लिखा गया था कि यह संविधान का एक अस्थायी प्रावधान है जिसे संसद में साधारण बहुमत से पारित किए जाने वाले संशोधन के माध्यम से हटाया जा सकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अब, अगर यह लिखा होता कि यह अस्थायी के बजाय एक संवैधानिक प्रावधान है, तो हमें मतदान के दौरान साधारण बहुमत के बजाय दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती। इस प्रकार, अधिक स्पष्टता से न्यायिक हस्तक्षेप कम होता है।’’
अगस्त 2019 में केंद्र ने संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को खत्म कर दिया था। बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी इसे अस्थायी प्रावधान बताते हुए निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा।
शाह ने दावा किया कि कानूनों का ‘‘खराब मसौदा’’ ही मुख्य कारण है कि आज विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच का अंतर धुंधला होता जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा संविधान विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं के बारे में बहुत स्पष्ट है। इसमें कहा गया है कि सरकार नीतियां बनाएगी और विधायिका उन नीतियों के अनुसार कानून पारित करेगी। न्यायपालिका कानूनों को परिभाषित करेगी और कार्यपालिका उन्हें लागू करेगी। लेकिन कानूनों को सही तरीके से तैयार नहीं किए जाने के कारण आज इन तीनों के बीच की रेखा धुंधली हो गई हैं।’’
शाह ने कहा कि ‘‘कानून बनाने की कला’’ धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक विधान सभा को अपने कर्मचारियों के लिए मसौदा तैयार करने के कौशल को बढ़ाने को लेकर ऐसी कार्यशालाएं आयोजित करनी चाहिए।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों को यह मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए कि कानून में क्या शामिल किया जाए और कौन से प्रावधान उस कानून के नियमों का हिस्सा बनने चाहिए। शाह ने कहा कि डॉ. बी. आर. आंबेडकर के नेतृत्व में तैयार और संपादित भारत का संविधान विधान तैयार करने के मामले में पूरी दुनिया में सबसे आदर्श उदाहरण है।
उन्होंने कहा, ‘‘उस समय संविधान सभा में 72 बैरिस्टर शामिल थे…उनका लगभग 14 प्रतिशत समय मौलिक अधिकारों पर चर्चा करने में व्यतीत हुआ। ऐसी गहन चर्चाओं के बाद हमारा संविधान तैयार हुआ। और आज, कुछ गैर सरकारी संगठन हमें मौलिक अधिकारों के मुद्दे पर सलाह देते हैं।’’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता ने कहा कि किसी भी कानून का मसौदा तैयार करते समय राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए और आम आदमी को भी इसकी भाषा समझ में आनी चाहिए।
उदाहरण देते हुए, शाह ने कहा कि तीन नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देशानुसार भारतीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं।
शाह ने कहा, ‘‘अगले तीन-चार साल में जब ये कानून पूरी तरह लागू हो जाएंगे, प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई तक, तीन साल के भीतर न्याय मिलेगा। आने वाले दिनों में यह सुधार दुनिया का सबसे बड़ा सुधार माना जाएगा।’’