प्राकृतिक खेती आत्मनिर्भरता की औषधि है।

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गत महीने में संघीय विधायिका(संसद ) में प्रस्तुत संघीय  बजट में  योग्य एवं कार्यशील वित्त मंत्री ने घोषणा की कि अगले दो वर्षों के दौरान एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।  इसके लिए किसानों को सहायता राशि और सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाएगा । भारत सरकार का लक्ष्य है कि कृषि में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग 20% तक कम किया जाए और पानी की खपत भी 20% तक कम किया जाए ।सरकार और कृषि वैज्ञानिकों के नैदानिकी  से स्पष्ट है कि इससे मीथेन उत्सर्जन में 45 % तक कमी लाई जा सकती है। कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना समय की मांग है और इसके लिए प्राकृतिक कृषि के अतिरिक्त दूसरा कोई बेहतर विकल्प नहीं है।

 

                                               प्राकृतिक कृषि पद्धति में एक देसी गाय से 30 एकड़ भूमि पर खेती की जा सकती है और जैविक खेती में 30 गाय से मात्र एक एकड़ कृषि हो सकती हैं। जैविक कृषि और गौ आधारित प्राकृतिक कृषि में यह मौलिक अंतर है। प्राकृतिक कृषि से भारत की आबादी में स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव आ रहा है जबकि जैविक खेती से आबादी पर नकारात्मक प्रभाव आ रहा है । प्राकृतिक कृषि पद्धति इतनी सरल है कि कोई भी किसान इसका अपने खेतों में अनुप्रयोग कर सकता है । इससे जमीन की उर्वरा शक्ति बचेगी ,पानी की खपत में 70% से अधिक की कमी आएगी, गौ माता की सुरक्षा होगी, किसान आत्मनिर्भर होगा और  किसान साहूकारों के चंगुल में नहीं फंसेगा। प्राकृतिक खेती से पर्यावरण की सुरक्षा होगा। इस खेती से गंभीर बीमारियों से सुरक्षा मिलेगी। प्राकृतिक खेती करना ईश्वरी सेवा है। यह  आर्थिक और जीवन यापक  गतिविधि है। समाज के सभी वर्गों को मिल- जुल कर इसे अपनाना है तथा प्रचारित भी करना है। भारत वर्ष में लाखों किसान इस खेती को अपनाकर मानवीय समाज की सेवा कर रहे हैं।

 

                                               

 प्राकृतिक खेती के लिए किसान  को खेती की सामग्री बाजार से खरीदने की आवश्यकता नहीं है बल्कि सामग्री उसके पास ही उपलब्ध है । प्राकृतिक खेती के लिए प्रयुक्त प्राकृतिक खाद को किसान  बहुत सरल तरीके से तैयार कर लेता है और अपने खेतों में उपयोग करता है। यह प्रक्रिया किसान  को बाजार पर निर्भर नहीं करती है ,बल्कि किसान  को स्वालंबी और आत्मनिर्भर बनाती है। प्राकृतिक खेती से किसान  को  बाजारवाद के चंगुल से मुक्ति मिल जाती है। प्राकृतिक खेती पूर्णत: भारतीय, स्वदेशी और भारतीय परिवेश के अनुकूल और उपयोगी है।  प्राकृतिक खेती पर्यावरण अनुकूल और प्रकृति हितैषी है। प्राकृतिक खेती करने से पर्यावरण का संरक्षण होता है। पर्यावरण संरक्षण से हानिकारक रसायनों के दुष्प्रभाव से सुरक्षा मिलती है। यह विधि सुगम, अनुकूल और किफायती है । यह विधि प्राकृतिक पद्धति पर आधारित है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अनुकूल है।

 

                                             

 प्राकृतिक खेती पर्यावरण हितैषी पद्धति है। इसके अनुप्रयोग से पर्यावरण की सुरक्षा होती है। प्राकृतिक खेती से स्वच्छ पर्यावरण में सहयोग मिलता है। प्राकृतिक खेती से जैव विविधता की सुरक्षा होती है और संरक्षण एवं संवर्धन होता है। प्राकृतिक खेती से कृषि भूमि की उर्वरता का सुपोषण होता है। प्राकृतिक खेती का मौलिक सिद्धांत भूमि सुपोषण है, जिसके अंतर्गत भूमि में कार्बन अनुपात, सूक्ष्म जीवाणुओं की पर्याप्त उपलब्धता, भूमि में  पोलापन,केचुओं की सक्रिय उपस्थित, भूमि में पर्याप्त नमी और आवश्यक रंध्र की सुगम  स्थित है। कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना भारत के लिए समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसके लिए प्राकृतिक खेती से बेहतर कोई विकल्प नहीं है।

 

                                             

 प्राकृतिक खेती से खेतों में केचुवों  की संख्या में स्वाभाविक वृद्धि होती है जो अनवरत  भूमि में करोड़ों  छिद्र  बनाते हैं जिस से वर्षा जल इन छिद्रों  के माध्यम से भूपरपट्टी ( crust ) में चला जाता है और नाली के कारण सिंचाई में कम पानी लगता है । नाली पर आच्छादन होने से नमी देर तक ठहरती है जिससे  खेत में नमी बनी रहती है और खेत की उर्वरा शक्ति में उन्नयन होता है । प्राकृतिक कृषि से पानी की अधिकतम बचत होती है जो जल संरक्षण की दिशा महत्वपूर्ण आयाम है।

 

                                           

 प्राकृतिक कृषि से उत्पन्न अनाज, सब्जियां ,दाल, फल और तिलहन में अत्यधिक पौष्टिकता ,ऊर्जा और शरीर के प्रतिरोधी क्षमता के सुरक्षा में सहयोगी होता है । प्राकृतिक खेती के अनुप्रयोग से व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ होगा । जैविक खेती करने से उत्पादन में कमी और  भूमि बंजर होती जा रही है। प्राकृतिक खेती के कारण उत्पादन पूरा होता है ।अधिक वर्षा और सूखा  आदि का प्राकृतिक खेती पर प्रभाव न्यूनतम होता है। इसमें सहफसली  की सकारात्मक स्थिति होती है। इस विधि से खेती का मानव स्वास्थ्य के लिए लाभकारी और उपयोगी होती है। उपभोक्ता, बाजार और व्यवसाय अधिक मूल्य देने को तैयार रहता है जिससे किसानों को आर्थिक स्तर पर लाभ होता है।

                               

इस पद्धति के लिए सरकार को प्रत्येक स्तर पर किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए और प्राकृतिक कृषि के लिए किसानों के फसलों का बीमा करवाना  चाहिए. प्राकृतिक खेती में बहुत सरल तरीके से स्वत: उर्वरक बनाकर किसान  प्रयोग करता है. यह पद्धति  किसान को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर  बनाती है. वर्तमान में लाखों  किसान  प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं और सब के कल्याण के सिद्धांत पर चलकर स्वयं, उपभोक्ता और पर्यावरण सभी का कल्याण कर रहे हैं।

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