नेत्रपीठ के रुप में प्रसिद्ध है मुंगेर का चंडिका स्थान

देश में बावन शक्तिपीठ हैं, सभी शक्तिपीठों में देवी मां के शरीर का एक हिस्सा गिरा था। जिसके कारण यहां मंदिर स्थापित हुए। ऐसा ही एक शक्तिपीठ बिहार के मुंगेर जिले से करीब चार किलोमीटर दूर है। यहां देवी सती की बाईं आंख गिरी थी।इस मंदिर को चंडिका स्थान और श्मशान चंडी के नाम से जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार मंदिर में आने वाले श्रृद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है। इस स्थान को लेकर लोगों का कहना है कि यहां आंखों से संबंधित हर रोग का इलाज होता है। जी हां, यहां खास काजल मिलता है जिसे आंखों में लगाने से व्यक्ति के आंख से संबंधित रोग दूर हो जाते हैं। वैसे तो यहां नित्य ही भारी संख्या में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि में तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है।
यह मंदिर के पूर्व और पश्चिम में श्मशान है और मंदिर गंगा किनारे स्थित है। जिसके कारण यहां तांत्रिक तंत्र सिद्धियों के लिए आते हैं। नवरात्र के समय मंदिर का महत्व और भी अधिक हो जाता है। सुबह के समय मंदिर में तीन बजे देवी का पूजन शुरु होता है और शाम के समय भी श्रृंगार पूजन किया जाता है।
नवरात्र के दौरान कई विभिन्न जगहों से साधक तंत्र सिद्धि के लिए भी जमा होते हैं। चंडिका स्थान में नवरात्र की अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। इस दिन सबसे अधिक संख्या में भक्तों का यहां जमावड़ा होता है। सिद्ध-पीठ होने के कारण, चंडिका स्थान को सबसे पवित्र मंदिरों में से एक माना जाता है। यह गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर  जैसा ही  महत्वपूर्ण है।
चंडिका स्थान के मुख्य पुजारी नंदन बाबा बताते हैं कि चंडिका स्थान एक प्रसिद्ध शक्ति पीठ है। नवरात्र के दौरान सुबह तीन बजे से माता की पूजा शुरू हो जाती है। संध्या में श्रृंगार पूजन होता है। अष्टमी के दिन यहां विशेष पूजा होती है। इस दिन माता का भव्य श्रृंगार होता हैै। यहां आने वाले लोगों की सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
श्रृद्धालुओं का मानना है कि यहां देवी के दरबार में हाजिरी लगाने से हर मनोकामना पूरी हो जाती है। मंदिर प्रांगण में काल भैरव, शिव परिवार और बहुत सारे  देवी- देवताओं के मंदिर हैं।
भगवान शिव जब राजा दक्ष की पुत्री सती के जलते हुए शरीर को लेकर  भ्रमण कर रहे थे, तब सती की बाईं आंख यहां गिरी थी। इस कारण यह 52 शक्तिपीठों में एक माना जाता है। इसके अलावा इस मंदिर को महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि कर्ण मां चंडिका के परम भक्त थे। वह हर रोज़ मां के सामने खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूदकर अपनी जान देते थे और मां प्रसन्न होकर उन्हें जीवनदान दे देती थी और उसके साथ सवा मन सोना भी देती थी। कर्ण सारा सोना मुंगेर के कर्ण चौरा पर ले जाकर बांट देते।
इस बात का पता जब उज्जैन के राजा विक्रमादित्य को लगा तब वे वहां पहुंचे और उन्होंने अपनी आंखों से पूरा दृश्य देखा। एक दिन वह कर्ण से पहले मंदिर गए ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान कर स्वयं खौलते हुए तेल की कड़ाही में कूद गए। मां ने उन्हें जीवित कर दिया। वह तीन बार कड़ाही में कूदे और तीनों बार मां ने उन्हें जीवनदान दिया। जब वह चौथी बार कूदने लगे तो मां ने उन्हें रोक दिया और मनचाहा वरदान मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने मां से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांग लिया। मां ने भक्त की इच्छा पूरी करने के बाद कड़ाही को उलट दिया और स्वयं उसके अंदर अंतर्ध्यान हो गई। आज भी मंदिर में कड़ाही उलटी रखी हुई है। उसके अंदर मां की उपासना होती है। मंदिर में पूजन से पहले विक्रमादित्य का नाम लिया जाता है, फिर मां चंडिका का। नवरात्र में श्रद्धालुओं की भीड़ अन्य दिनों की तुलना में कई गुना ज्यादा होती है। नवरात्र अष्टमी के दिन यहां खास पूजा होती है। यहां के पुजारी ने बताया कि मुंगेर-खगड़िया जिला का एप्रोच पथ जब से बना है तब से नवरात्र में गंगा पार खगड़िया, बेगूसराय जिले के श्रद्धालु भारी संख्या में पहुंच रहे हैं। श्रद्धालुओं ने बताया कि मां शक्तिपीठ चंडिका स्थान का बहुत बड़ा महत्व है और वे कई सालों से मां की पूजा अर्चना करते आ रहे हैं। मां से जो भी मुराद मांगते हैं मां पूरी करती है।
तंत्र साधना में इसका स्थान असम के कामाख्या मंदिर के जैसा है।  पहले यहां एक बहुत छोटा प्रवेश द्वार  था लेकिन 20 वीं शताब्दी में, इसका प्रवेश द्वार बड़े  द्वार में बदल दिया गया। चंडिका स्थान का विकास 40-50 साल पहले राय बहादुर केदार नाथ गोयनका ने किया था, फिर वर्ष 1991 में श्याम सुंदर भंगड़ ने किया था। आईटीसी ने भी सामाजिक दायित्व के तहत मंदिर परिसर को विकसित किया।  
दोनों नवरात्रि में परमहंस स्वामी निरंजनानंद  सरस्वती सत्संग होता है। शक्तिपीठ स्थल चंडिका स्थान के सौंदर्यीकरण की योजना  को मंजूरी मिल गयी है। पर्यटन विभाग  4.18 करोड़ की लागत से चंडिका स्थान का सौंदर्यीकरण करा रहा है। इसके तहत श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशाला, मल्टीपरपस हॉल, मुख्यद्वार से गर्भगृह तक पाथ वे का निर्माण कराया जाना है। मुख्य  प्रवेश द्वार को बड़ा और आकर्षक बनाया जाएगा।  इसके अलावा मंदिर का चारदीवारी का भी निर्माण होगा।वहीं सुरक्षा के उद्देश्य से मंदिर परिसर में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएगें। मंदिर परिसर को पूरी तरह समतल बनाकर भक्तगण के बैठने के लिए पेड़ के नीचे बेंच लगायी जाएगी। इसके अलावा मंदिर परिसर में हाई मास्ट लाइट, पाथ वे, दवा के साथ फस्ट एड कक्ष तथा  मंदिर से पानी की निकासी और वर्षा जल संरक्षित करने के लिए ड्रेनेज चैनल और रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया जाएगा।