यमुना का पुनर्जीवन आवश्यक है

डॉ.वेदप्रकाश


 यमुना जीवनदायिनी तो है ही,संस्कृति भी है। यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है लेकिन आज यह दिल्ली में पहुंचकर प्रदूषण के कारण और अविरल प्रवाह के अभाव में दम तोड़ रही है। यमुनोत्री से निकलकर प्रयागराज में गंगा में मिलने तक की यमुना की यात्रा लगभग 1400 किलोमीटर है। दिल्ली में पल्ला से ओखला बैराज तक यमुना का बहाव क्षेत्र लगभग 50 किलोमीटर है। आंकड़ों के अनुसार यह यमुना के कुल बहाव क्षेत्र का लगभग 02 प्रतिशत है जबकि कुल प्रदूषण में 76 प्रतिशत भागीदारी दिल्ली क्षेत्र की है।

 

यमुना में प्रदूषण का बड़ा कारक दिल्ली एनसीआर के छोटे बड़े हजारों नाले हैं। विगत वर्ष जून महीने के एक समाचार के अनुसार दिल्ली में नालों की कुल संख्या 713 है, जिसमें से 287 की ही सफाई हुई। दिल्ली एनसीआर के गुरुग्राम में 65 नाले हैं, जिनमें से 26 की सफाई हुई।  गाजियाबाद में 561 नाले हैं, जिनमें से 392 की सफाई हुई। गौतमबुद्ध नगर में 73 नाले हैं, जिनमें सभी की सफाई हुई और फरीदाबाद में 41 नाले हैं जिनमें से केवल चार की ही सफाई का कार्य हुआ। जबकि इन क्षेत्रों में नालों की सफाई के नाम पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च होते हैं और दिल्ली एनसीआर के ये छोटे-बड़े सभी नाले कहीं न कहीं यमुना में ही गिर रहे हैं। दिल्ली का वजीराबाद, कश्मीरी गेट, आईटीओ, सराय काले खां और कालिंदी कुंज क्षेत्र ऐसे प्रमुख बिंदु हैं जहां पर छोटे-बड़े कई नाले एक साथ यमुना में गिरते हैं। परिणामत: यमुना बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। यमुना की तलहटी में बड़ी मात्रा में गाद, रेत, पूजा सामग्री, मलबा और अनेक प्रकार का कचरा जमा हो गया है। सफाई न होने से तलहटी का स्तर ऊपर आ गया है और जगह-जगह खरपतवार, मलबे और रेत के टीले बन चुके हैं। सामान्यतः मानसून के दिनों में बाढ़ का पानी आने से प्राकृतिक रूप से यमुना की सफाई हो जाती थी लेकिन विगत कुछ वर्षों से बाढ़ के बाद भी प्रदूषित यमुना की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है।

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की विगत  रिपोर्ट यह बताती है कि यमुना में ज्यादातर जगह पानी में घुलित ऑक्सीजन नहीं है। बायोलाजिकल ऑक्सीजन डिमांड का स्तर भी बढ़ा हुआ है। यमुना के जल में फास्फेट और सरफेक्टेंट की जांच से यह पता चला है कि यमुना में हर जगह इसकी मौजूदगी है। यमुना क्षेत्र में उगाई जा रही सब्जियों में भी स्वास्थ्य के लिए घातक रसायन मिल रहे हैं। दिल्ली एनसीआर में जींस की रंगाई एवं घातक रंग-रसायनों की अनेक अवैध फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनका घातक पानी नालों के माध्यम से यमुना में पहुंचता है। यमुना में बैराज क्षेत्र के आसपास लगभग पूरे साल झाग की स्थिति बनी रहती है। विडंबना यह भी है कि बाढ़ एवं सिंचाई नियंत्रण विभाग के पास यमुना से कब व कितनी गाद निकाली गई, कितना खर्च हुआ, आदि बातों की जानकारी भी उपलब्ध नहीं है। दिल्ली सरकार उपराज्यपाल पर आरोप लगाती है तो कभी पर्याप्त फंड न मिलने की बात कहकर पल्ला झाड़ लेती है।

 

विगत वर्ष नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कहा कि यमुना की सफाई और ठोस कचरा प्रबंधन को लेकर दिल्ली में आपातकाल जैसी स्थिति है, क्या यह टिप्पणी चिंताजनक नहीं है? आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में 20 स्थानों पर कुल 2874 मिलियन लीटर प्रतिदिन सीवरेज शोधन की क्षमता वाले 35 एसटीपी स्थापित हैं, जबकि यहां प्रतिदिन लगभग 3500 मिलियन लीटर सीवरेज निकलता है। यह भी सत्य है कि सीवरेज शोधन संयंत्र में से अधिकांश अपनी पूरी क्षमता के साथ काम नहीं कर रहे हैं। इसलिए अधिकांश सीवरेज अनुपचारित अथवा आंशिक रूप से उपचारित रूप में सीधे यमुना के प्रदूषण को बढ़ा रहा है। हाल ही में डिसेंट्रलाइज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के मुद्दे पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने दिल्ली जल बोर्ड की एक रिपोर्ट को देखते हुए कहा है कि अब तक 40 में से एक भी डिसेंट्रलाइज सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण नहीं हुआ है। अधिकांश निर्माण कार्य या तो शुरुआती चरण में है या अभी निविदा भी नहीं हुई है। क्या ऐसी स्थिति में संबंधित अधिकारियों के ऊपर दंडात्मक कार्रवाही नहीं होनी चाहिए?

 

 एक समाचार के अनुसार दिल्ली में यमुना के प्रदूषण को कम करने के लिए सात प्रकार की परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है जिसमें सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता में बढ़ोतरी, नालों के पानी को सीधे नदी में गिरने से रोकने के लिए उप नालों  की ट्रेपिंग, शहरी और जेजे क्लस्टर में सीवर नेटवर्क का निर्माण, शोधित पानी का फिर से इस्तेमाल,यमुना के कछार में चलने वाली परियोजनाएं और नालों से गाद निकालना आदि शामिल हैं। लेकिन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की जुलाई 2024 की रिपोर्ट में यह सामने आया है कि ये सारी योजनाएं अपने लक्ष्य से पिछड़ी हुई हैं। क्या इन योजनाओं पर भारी धन खर्च नहीं हो रहा है? फिर भी लक्ष्य प्राप्त न कर पाने पर दोषियों के विरुद्ध क्या कार्रवाही हुई?
     राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यमुना को प्रदूषण मुक्त करने का मुद्दा भ्रष्टाचार का भी शिकार है। विगत दिनों में सीवरेज शोधन प्लांट के ठेकों की प्रक्रिया, नालों की सफाई में फर्जी बिलिंग, कार्य मापन में गड़बड़ी आदि के आरोप भी सामने आए हैं, क्या इस प्रकार की कार्य प्रणाली से यमुना प्रदूषण मुक्त हो सकेगी? क्या इस प्रकार के कार्यों में लिप्त लोग यमुना के हत्यारे नहीं हैं? यमुना के प्रदूषण और अविरल प्रवाह में अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली विकास प्राधिकरण को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र से अनधिकृत निर्माण हटाया जाए और भविष्य में अतिक्रमण न हो, इससे बचने के लिए यमुना नदी के बाढ़ क्षेत्र के चारों ओर बाड लगाई जाए। माननीय न्यायालय के निर्देश के उपरांत भी यमुना क्षेत्र में अनेक स्थानों पर अतिक्रमण देखा जा सकता है। यमुना क्षेत्र में मलबा और कूड़ा कचरा नियमित रूप से डाला जा रहा है।

 

प्रशासन और संबंधित अधिकारी यमुना प्रदूषण मामले में संवेदनशील दिखाई नहीं देते। लगभग दो दशक में ही प्रदूषण के कारण यमुना अंतिम सांसे गिन रही है। वर्ष 2019 में बांग्लादेश की एक अदालत ने अपने फैसले में कहा- नदियों की हत्या हम सबकी सामूहिक आत्महत्या है। नदियों को मारना भावी पीढ़ियों को मारना है। क्या इस प्रकार के फैसलों से हम कुछ सीख लेकर योजना निर्माण एवं दंडात्मक कार्रवाही नहीं कर सकते? आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि दुनिया की एक चौथाई आबादी पानी की कमी से जूझ रही है। पानी की कमी से जूझ रहे 17 देशों की सूची में भारत 13वें स्थान पर है। क्या ये आंकड़े भविष्य में जल संकट की ओर संकेत नहीं कर रहे हैं? हमें समझना होगा कि नदियां जीवनदायिनी हैं। नदियों द्वारा सीधे अथवा उनके द्वारा ट्यूबवेल और नहरों आदि से बड़े पैमाने पर सिंचाई होती है। औद्योगिक क्षेत्र को भी पानी की बहुत आवश्यकता है जिसकी पूर्ति का प्रमुख स्रोत नदियां ही हैं। आज देश की छोटी बड़ी सैकड़ों नदियां मर चुकी हैं,कई मरणासन्न हैं। ऐसे में यमुना जैसी महत्वपूर्ण नदी की उपेक्षा घातक सिद्ध होगी।

 

आज हमें समझना होगा कि यमुना केवल एक नदी नहीं है अपितु वह जीवन का स्रोत और संस्कृति है। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने रामायण में यमुना को सूर्य कन्या यमुना कहकर संबोधित किया है तो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से ही अनेक लीलाएं यमुना के साथ जुड़ी हुई हैं। लोक जीवन में यमुना की पूजा होती है। देश के अनेक क्षेत्रों में यमुना पेयजल, कृषि और औद्योगिक जल आपूर्ति का बड़ा स्रोत है लेकिन आज सरकार की उपेक्षा,भ्रष्टाचार, समग्र नीति और समन्वय की कमी आदि विभिन्न कारणों से प्रदूषण का शिकार होकर नाले में तब्दील हो चुकी है। वह पुनर्जीवन की आस में है। यद्यपि दिल्ली के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में यमुना नदी के कायाकल्प के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है। समिति यमुना के कायाकल्प हेतु कार्य प्रगति व लक्ष्यों आदि पर समय-समय पर समीक्षा कर रही है लेकिन अभी भी यमुना की बदहाली सर्वविदित है।

 

यमुना को पुनर्जीवित करने के लिए यह आवश्यक है कि यमुना में गिर रहे नालों, अशोधित सीवरेज, मलबे एवं पूजा सामग्री आदि को तत्काल प्रभाव से रोका जाए। हथिनीकुंड बैराज से यमुना में लगातार पर्याप्त जल छोड़ा जाए। यमुना को प्रदूषण मुक्त, अविरल और पुनर्जीवित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश में शासन-प्रशासन,स्थानीय निकाय और जनप्रतिनिधियों में समुचित समन्वय हो,समग्रता में योजनाएं बनें और वे तत्काल प्रभाव से लागू हों। संबंधित अधिकारियों अथवा निकायों की जिम्मेदारी तय की जाए और उल्लंघन पर दंडात्मक प्रविधान हों। यमुना तो मां है, यह केवल एक नदी के पुनर्जीवन की आस नहीं है अपितु मां और मानवता के पुनर्जीवन की आस है।