तिराना, सात अक्टूबर (भाषा) अल्बानिया के राष्ट्रपति के राजप्रसाद का एक हिस्सा कुछ समय के लिए भारतीय शाही दरबार में तब्दील हो गया जिसमें रामपुर की समृद्ध पाककला, पारंपरिक संगीत और फैशन की झलक दिखाई दी।
हजारों मील की दूरी पर यह संभव हुआ अल्बानिया में भारत की समृद्ध संस्कृति को प्रदर्शित करने के लिए आयोजित पहले भारत महोत्सव की वजह से।
इस उत्सव का आयोजन पिछले सप्ताह अल्बानिया के अर्थव्यवस्था, संस्कृतिक और नवाचार मंत्रालय द्वारा किया गया क्योंकि बाल्कन का यह छोटा सा देश भारत के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ करना चाहता है और इसकी शुरुआत वह लोगों से लोगों के बीच संपर्क के साथ कर रहा है।
‘‘मिनी फेस्टिवल ऑफ इंडिया इन तिराना’ नाम से की गई इस पहल में ‘‘शाही रात्रि भोज’’ के अलावा आजादी के बाद से भारत की वास्तुकला में की गई प्रगति को भी प्रदर्शित किया गया।
इस पूरे आयोजन की परिकल्पना भारत में अल्बानिया के मानद महा वाणिज्यदूत दीक्षु कुकरेजा की थी।
सात चरणों के रात्रिभोज के लिए भारत से एक खानसामा और 28 किलोग्राम मसाले मंगवाए गए थे। इस भोज में नेताओं, कारोबारियों और कलाकारों सहित करीब 100 प्रभावशाली लोगों ने हिस्सा लिया।
इस भोज की मेजबानी रामपुर शाही परिवार के काजिम अली खान ने की।
उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व सदस्य खान ने कहा, ‘‘रामपुर का शाही रसोईघर न केवल पाककला की विरासत है, बल्कि यह हमारी संस्कृति की आत्मा का प्रतिबिंब है। मुझे इसे इतने भव्य तरीके से फिर से स्थापित होता देखकर गर्व हो रहा है।’’
खान ने कहा कि अल्बानिया में रात्रिभोज का आयोजन एक चुनौती थी, क्योंकि उन्हें उचित बर्तन नहीं मिल सके जिनमें आमतौर पर भारतीय भोजन पकाया जाता है।
उन्होंने कहा कि पारंपरिक रामपुरी भोजन आमतौर पर बहुत मसालेदार होता है, इसलिए खानसामा को इसे यहां के निवासियों के स्वाद के अनुरूप बदलना पड़ा। एक और चुनौती व्यंजनों में इस्तेमाल की जाने वाली प्रामाणिक सामग्री की तलाश थी।
अल्बानिया के प्रधानमंत्री ईदी रामा ने कहा कि यह ‘‘शानदार आयोजन’’ दोनों देशों के बीच मित्रता का प्रतीक है।
अल्बानिया के अर्थव्यवस्था, संस्कृति और नवाचार मामलों के मंत्री ब्लेंडी गोन्झा ने कहा कि यह रात्रिभोज ‘‘हमें न केवल भारतीय व्यंजनों के स्वाद के करीब लाता है, बल्कि सांस्कृतिक समृद्धि को भी करीब लाता है, जो हमारी संस्कृतियों, परंपराओं, इतिहास और कला के प्रति हमारे साझा सम्मान के माध्यम से आपस में जुड़ी हुई हैं।’’उन्होंने कहा कि अल्बानिया और भारत के बीच संबंध भौगोलिक दूरी से परे हैं।
कुकरेजा ने कहा, ‘‘रामपुर की सांस्कृतिक विरासत इतिहास का खजाना है और इस अनूठे मंच के माध्यम से इसकी समृद्ध पाककला और कलात्मक परंपराओं को प्रदर्शित करना सम्मान की बात है।’’
रात्रिभोज के दौरान 18वीं शताब्दी की प्रतिष्ठित संगीत परंपरा को आगे बढ़ाते हुए रामपुर-सहसवान घराने का संगीत बजाया गया, जो मेहमानों को भारत के शाही दरबारों की याद दिला रहा था।