अर्थव्यवस्था को लेकर बड़े-बड़े दावे विकास को बाधित करने वाली चुनौतियों पर पर्दा डाल रहे: कांग्रेस

नयी दिल्ली, छह अक्टूबर (भाषा) कांग्रेस ने रविवार को कहा कि पिछले 10 वर्षों में ‘‘बेहद हानिकारक आर्थिक रुझान’’ देखने को मिले हैं और मानसून भले ही कमजोर हो गया है लेकिन नए तथ्यों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब भी कम से कम ‘‘तीन तरह के काले बादल’’ मंडरा रहे हैं।

कांग्रेस महासचिव (संचार प्रभारी) जयराम रमेश ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके समर्थक अर्थव्यवस्था के बारे में बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, लेकिन इन दावों में उन चुनौतियों पर पर्दा डाला जा रहा है जिन्हें अगर अभी गंभीरता से नहीं लिया गया तो वे आने वाले वर्षों में विकास क्षमता को बाधित कर सकती हैं।

कांग्रेस नेता ने एक बयान जारी करके कहा, ‘‘मानसून भले ही कमजोर हो गया है लेकिन सामने आए नए तथ्यों से पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर अब भी कम से कम तीन तरह के काले बादल मंडरा रहे हैं।’’

उन्होंने कहा,‘‘ सबसे पहले कोविड-19 से उबरने के बाद 2022-23 के दौरान निजी क्षेत्र के निवेश में जो थोड़े समय का उछाल आया था वह फिर से एक अनियमित रास्ते पर लौट आया है।’’

उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2023 और वित्त वर्ष 2024 के बीच निजी क्षेत्र द्वारा नयी परियोजनाओं की घोषणाओं में 21 प्रतिशत की गिरावट आई है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह भारत के उपभोक्ता बाजारों में निवेशकों में विश्वास की कमी तथा सरकार के अनुचित नीति निर्धारण और ‘रेड राज’ से उत्पन्न निवेश के अनिश्चित माहौल को दर्शाता है।’’

कांग्रेस नेता ने दावा किया कि इस संदर्भ में कंपनियां अपने कारोबार को बढ़ाने के बजाए कर्ज का अपना बोझ कम करने के लिए मुनाफे का इस्तेमाल कर रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘ हम भारतीय अर्थव्यवस्था के बढ़ते वित्तीयकरण को देख रहे हैं। भारतीय उद्योग जगत शायद सरकार की तरफ से संकेत लेते हुए शीर्ष स्तरीय राजस्व वृद्धि के बजाए शेयर बाजार के मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।’’

उन्होंने कहा कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था के मध्यम और दीर्घकालिक भविष्य के लिए बेहद खराब संकेत हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था का विकास इंजन-निजी क्षेत्र का निवेश-कमजोर होता जा रहा है।

कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘दूसरा सरकार की प्रमुख योजना ‘मेक इन इंडिया’ के शुरू होने के 10 साल बाद भी भारत का विनिर्माण स्थिर है। सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 10 साल पहले जितनी ही है।’’

उन्होंने कहा कि कुल रोजगार में हिस्सेदारी के रूप में विनिर्माण में मामूली गिरावट आई है।

रमेश ने कहा कि वैश्विक व्यापारिक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी भी काफी हद तक स्थिर हो गई है और भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में हिस्सेदारी के रूप में निर्यात गिर रहा है।

उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में 2005-15 की अवधि में वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बहुत तेजी से बढ़ी थी जो प्रधानमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के काफी हद तक अनुरूप थी। परिधान जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में निर्यात 2013-14 के 15 अरब अमेरिकी डॉलर से गिरकर 2023-2024 में 14.5 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया है।’’

रमेश ने आरोप लगाया कि विनिर्माण में यह कमी काफी हद तक प्रधानमंत्री मोदी की अस्पष्ट व्यापार नीति के कारण है – जो उच्च शुल्क के माध्यम से वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (जीवीसी) में भागीदारी को हतोत्साहित करती है और चुपचाप बड़े पैमाने पर आयात के माध्यम से ‘चीन को माल डंप करने’ की अनुमति देती है।

‘डंप’ करने का अर्थ है कि एक देश द्वारा किसी अन्य देश के बाजार में सामान्य मूल्य से कम कीमत पर माल का निर्यात करना।

उन्होंने कहा, ‘‘तीसरा, 2022-2023 के लिए उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) ने भारत के श्रमिकों के लिए वास्तविक मजदूरी और उत्पादकता में गिरावट का खुलासा किया है। प्रति श्रमिक जीवीए (श्रम उत्पादकता का एक माप) में वृद्धि 2014-15 में 6.6 प्रतिशत से धीमी होकर 2018-19 तक 0.6 प्रतिशत हो गई।’’

कांग्रेस नेता ने कहा कि कोविड काल की सांख्यिकीय अनियमितता के बाद, वित्त वर्ष 2023 में कर्मचारी उत्पादकता फिर से कम हो गई है। उन्होंने कहा कि श्रम उत्पादकता में इस कमी ने विशेष रूप से बढ़ती मंहगाई के बीच वेतन वृद्धि को प्रभावित किया है।

उन्होंने कहा कि जब तक वास्तविक मजदूरी स्थिर रहेगी, खपत कमजोर रहेगी – जिसके परिणामस्वरूप निवेश कम होगा।

उन्होंने कहा, ‘‘ये केवल वे मुद्दे हैं जो पिछले कुछ सप्ताहों में सामने आए हैं, लेकिन पिछले 10 वर्षों में इनसे भी अधिक हानिकारक आर्थिक रुझान देखे गए हैं, जिनमें चंद लोगों का एकाधिकार ,भयंकर बेरोजगारी और आसमान छूती मंहगाई आदि शामिल हैं।’’