राजनीति में नैतिकता नाम की चीज नहीं होती

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डॉ.नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी

 

कहावत सही है कि राजनीति में कोई सगा नहीं और नैतिकता नाम की कोई चीज नहीं होती ।  कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली के रामलीला मैदान में  अन्ना हजारे के नेतृत्व में लोकपाल के मुद्दे पर एक आंदोलन चला था  जिस ने  तबकी कांग्रेस सरकार को घुटने पर ला दिया था। उस आंदोलन से लोकपाल का क्या हुआ, ये कोई नहीं जानता लेकिन उस आंदोलन की कोख से एक राजनीतिक दल का उदय हुआ जिसका नाम आम आदमी पार्टी पड़ा जिसमें आम आदमी कहाँ है, कोई नहीं जानता।

 

इस आम आदमी पार्टी ने शीला दीक्षित की सरकार को दिल्ली के विधानसभा चुनाव में धूल चटा दी और उस समय से लेकर अब तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ है। ईमानदारी का दम भरने वाली पार्टी के शीर्ष नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल चले गए और उनमें से उनका मुख्यमंत्री भी शामिल था। सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल को जमानत देते समय जो शर्तें रखीं, वो किसी तड़ी पार आदमी के लिए लागू होती है। जो मुख्यमंत्री सचिवालय नहीं जाएगा ,वह मुख्यमंत्री के रूप में काम कैसे करेगा। इसीलिए अरविंद केजरीवाल को मजबूरी में इस्तीफा देना पड़ा। अरविंद केजरीवाल में जरा भी ग़ैरत होती तो उसे जेल जाने के साथ ही इस्तीफा देना चाहिए था। दरअसल हमारे संविधान में यह स्पष्ट नहीं है कि किसी भी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री को जेल जाने की स्थिति में अपने पद से त्यागपत्र देना चाहिए कि नहीं। हमारे संविधान निर्माताओं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आने वाले समय देश में ऐसी स्थिति भी आ सकती है कि एक मुख्यमंत्री को भी जेल जाना पड़ सकता है वरना संविधान में इसका प्रावधान जरूर रहता। अभी भी संविधान में संशोधन करके इसका प्रावधान अवश्य कर देना चाहिए क्योंकि अब इस तरह के मामले आते ही रहेंगे। ईडी को इस बात का सबूत भले मिले या ना मिले लेकिन इतना तय है कि शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी को रिश्वत जरूर मिली है।

 

दरसअल भारत की जनता भी अब भ्रष्टाचार की आदी हो चुकी है।जब आप बिजली और पानी फ्री देने के मुद्दे पर  पार्टी को वोट देकर चुनाव जीता सकते हैं तो आप फिर कैसे किसी से ईमानदारी की अपेक्षा रख सकते हैं। अरविंद केजरीवाल जब एनजीओ चलाते थे उसी समय उनको विदेशों से फंड मिलता था और उसी के कारण उसने नौकरी से इस्तीफा भी दिया था। आज देश में जितने भी एनजीओ हैं, उसमें से 90 प्रतिशत लोगों के चंदे से चलते हैं और इसको चलाने वाले दूसरों के पैसे पर मौज करते हैं । उनको सामाजिक कार्यों से कोई लेना देना नही रहता । शुरू से ही लोगों पर झूठे इल्जाम लगाना और कोर्ट के फटकार के बाद माफ़ी मांग लेना केजरीवाल की फ़ितरत रही। सोनिया गांधी से लेकर लालू प्रसाद यादव पर इल्जाम लगाता रहा और जरूरत पड़ी तो उनकी गोद में जा बैठा। मौजूदा राजनीतिक पटल पर सबसे बड़ा अवसर वादी और धूर्त व्यक्ति है। इसने मजबूरी में आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया क्योंकि उसे एक कठपुतली मुख्यमंत्री चाहिये था वरना कोई भी दूसरा व्यक्ति चम्पई सोरेन या जीतन राम मांझी हो सकता था।इसने कहीं से कोई त्याग नहीं किया है।कुर्सी के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाता रहा लेकिन जब इसने देखा कि अब मुख्यमंत्री की कुर्सी नसीब नहीं हो सकती तो मुख्यमंत्री की कुर्सी से त्यागपत्र दिया।

 

 आज भारत की राजनीति में नैतिकता नाम की कोई चीज नही बच गयी है।वैसे भी राजनीति में किसी तरह की नैतिकता हो भी नहीं सकती है । देश में हर राजनीतिक दल अपनी सत्ता के लिए कुछ भी करने को तैयार बैठा है वरना अजित पवार जैसे व्यक्ति का बीजेपी से हाथ मिलाना नामुमकिन था। जो प्रधानमंत्री अजित पवार को भ्रस्टाचारी बताते रहे, वहीं अजित पवार के साथ सरकार बनाने में कतई संकोच नहीं किया। अभी दो राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहा है।जम्मू कश्मीर में चुनाव सम्पन्न हो चुका है और हरियाणा में  5 अक्टूबर को होने जा रहा है।जम्मू कश्मीर में किसी भी एक दल को बहुमत नहीं मिलने वाला है. ऐसे में वहाँ की सरकार बग़ैर जोड़ तोड़ के नही बनने वाली।अगर वहाँ जोड़ तोड़ की सरकार बनी तो निश्चित रूप से वहाँ के राजनैतिक दलों को अपने सिद्धांतों से समझौता करना ही पड़ेगा।हरियाणा में कांग्रेस अच्छी स्थिति में थी लेकिन उनकी आपसी गुटबाजी से बीजेपी को फायदा होते दिख रहा है।कुछ चुनाव क्षेत्रों में कई दल वोट काटने का भी काम करेंगे । उनसे बीजेपी को कुछ फायदा मिल सकता है लेकिन अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि वहाँ हर पल परिस्थितियां बदल रही है।

 

हरियाणा में आम आदमी पार्टी किस बलबूते वहाँ सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है ये समझ से परे है।उनकी मंशा केवल वहाँ कांग्रेस या बीजेपी का खेल बिगाड़ने का है।हरियाणा में कांग्रेस और बीजेपी ही केवल दौड़ में हैं।बीजेपी शहरी क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाये रखे हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है।अनुसूचित जाति के लोग अभी भी बीजेपी को बनियों या अगड़ी जाति की पार्टी समझती है।ये धारणा अभी तक नही बदली है।मुसलमान तो बीजेपी को अपना कट्टर विरोधी मानती ही है।कांग्रेस कुछ करे या ना करे उसका वोट निश्चित रहता है।बाकी दलों को ही ज़्यादा प्रयास करना पड़ता है।हरियाणा में10साल से बीजेपी का शासन रहा है इसलिए वहां की जनता अब परिवर्तन चाहती है और उनके पास विकल्प के रूप में कांग्रेस के अलावा कोई नहीं है।अब केवल कांग्रेस के आपसी गुटबाजी के कारण बीजेपी को फायदा हो सकता है।वर्तमान परिस्थितियों में वहाँ किसी भी दल को स्पस्ट बहुमत मिलता नहीं दिखाई देता है।वहाँ भी जोड़ तोड़ की सरकार ही बन पाएगी।अगर बीजेपी के खिलाफ लहर चली तो कांग्रेस की सरकार बनना तय है।

 

आज की परिस्थितियों में बीजेपी जम्मू कश्मीर और हरियाणा दोनों जगह अपने बलबूते सरकार बनाते नहीं दिख रही है।मोदी की रैलियों से कुछ असर हो जाये इसकी अभी गारंटी नहीं है।क्योंकि विधानसभा के चुनाव में स्थानीय मुद्दे होते हैं और उस क्षेत्र में उम्मीदवार का चयन भी मायने रखता है।जातीय समीकरण भी इसमें अपना महत्व रखता है।विधानसभा के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर का नेता उतना प्रभाव नहीं छोड़ पाता है।जनता के बीच रहने वाला ही उम्मीदवार ही अधिक मायने रखता है।ख़ैर जो भी हो ,देखें ऊँट किस करवट बैठता है। 

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