पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संभल जिले का विख्यात गाँव न्यौरा की आजादी के आन्दोलन में कालजयी भूमिका रही है | इस गाँव के लोगों ने वीरता के साथ 1857 के ग़दर में बड़ी भूमिका निभाई है, इस बात की साक्षी इस गाँव की विरासत बड़ी चौपाल है | 10 मई 1857 को इसी चौपाल से गाँव के जय सिंह के नेत्रत्व में वीरों ने क्रांति की रणनीति बनाई थी |
आजादी के सेनानी एकत्रित हो कर धनारी नामक स्थान पर पहुंचे, जहाँ अंग्रेजों के सामंतों से इनकी लड़ाई हुई, जिसे धनारी का युद्ध कहा जाता है | इस युद्ध में अंग्रेजों, सामंतों को हरा दिया गया था और इनके साल के तख्तों को उठा लिया गया | विजय स्वरुप इन साल के तख्तों को इसी चौपाल पर रखा गया, जिससे लोगों के मन में आजादी कि लौ जलती रहे |
यह चौपाल सांस्कृतिक और सामाजिक मुद्दों से भी जुडी हुई है | वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के आन्दोलनकारी नेता बदन सिंह यादव ने इस चौपाल पर अंग्रेजों से बचने के लिए शरण ली थी |
वर्ष 2018 में संयुक्त राज्य अमेरिका में तकनीकी विशेषज्ञ मनीषा सिंह ने गाँव में आ कर इसी चौपाल पर गाँव की वेबसाइट का उद्घाटन किया था | भारत सरकार के एम.एस.एम.ई. मंत्रालय का अभियान दल भी डॉ. हरीश यादव के नेत्रत्व में इस चौपाल पर आया था |