‘आंखें’ हमारे शरीर का बहुमूल्य अंग हैं। किसी ने ठीक कहा है, आंखें बड़ी नियामत हैं। आंखें गईं तो जहान गया। आंखों से ही इस प्यारी-सी दुनिया को देखा जा सकता है। किसी अंधे व्यक्ति से पूछो कि उसके लिए आंखों की क्या कीमत है। आंखों के बिना तो यह संसार बेरंग-सा लगता है। जीवन में से आनंद खत्म हो जाता है। ईश्वर ने आंखों को बड़ी कारीगरी से बनाया है। धूल, मिट्टी से बचाने के लिए पलकों का ढंकना लगाया है। आंख न हो तो व्यक्ति एक-दूसरे को देख भी नहीं सकता। कोई काम जैसे चलना, फिरना-घूमना आदि सब कार्य स्थिर ही हो जाएं। इसलिए हमारा परम कत्र्तव्य है कि हम अपनी अमूल्य आंखों की भरपूर शक्ति को पहचानकर उसकी रक्षा करें। भारत में नेत्र रोगी बहुत अधिक पाये जाते हैं। इन सबका कारण क्या है, अज्ञानता एवं असावधानी। तो आओ इन सब कारणों को रोके जाने के प्रयत्न में जुट जाएं। नेत्रों की रक्षा करने के नियम इस प्रकार हैं – 1. कड़ी धूप में नंगे सिर न घूमें न ही धूप में पढ़ें-लिखें। 2. वर्षा में अधिक समय तक नंगे सिर न घूमिए। 3. कब्ज न होने दें। इससे आंखों पर असर पड़ता है। 4. न हल्के उजियाले में न ही चांद की चांदनी में पढ़ें। 5. बहुत ही महीन छापे की पुस्तक न पढ़ें। 6. पढ़ते समय पुस्तक को कम से कम एक फुट की दूरी पर रखें। 7. पढ़ते या लिखते समय झुककर न बैठें। 8. किसी दूषित, गंदी वायु आदि में अधिक समय तक न बैठें। 9. आंख आए व्यक्ति के पास न बैठें। 10. लिखने का काम अधिक समय तक न करें। 11. किसी चमकीली-भड़कीली वस्तु या बर्फ या सूर्य को टकटकी लगाकर न देखें। 12. अंधेरे से उजियाले और उजियाले से अंधेरे में शीघ्र देखने का प्रयत्न न करें। 13. अधिक मात्रा में लाल मिर्च, खटाई और तैलीय पदार्थ खाना उचित नहीं।