ब्रज में सावन और सावन में ब्रज एक-दूसरे के ऐसे पूरक बन गए हैं कि एक के बिना दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ब्रज में सावन में लोकगीतों, घटाओं एवं हिंडोलों का अलग-अलग महत्व है। ब्रज का शायद ही कोई मंदिर बचता हो, जहां हिंडोले न डाले जाते हों। ठाकुर जी के इन हिंडोलों में झूलने के कारण इन्हें अति सुन्दर बनाने का प्रयास किया जाता है। श्रावण मास में हरियाली तीज से वृंदावन में प्रारम्भ होने वाले झूलनोत्सव में तीर्थ यात्री चुम्बक की तरह खिंचे चले आते हैं।
वृंदावन को वृन्दा की नगरी अर्थात राधा रानी की नगरी भी कहा जाता है। मंदिरों में आयोजित किए जाने वाले नित नए उत्सव यहां के वातावरण को श्रद्धा, भक्ति और प्रेम की डोरी में तीर्थयात्रियों को ऐसा बांध देते हैं कि उनके मुंह से स्वत: राधे-राधे निकल पड़ता है और वृंदावन की ओर स्वत: खिंचे चले आते हैं। इस नगरी में पहुंचने पर अमीर-गरीब, ऊंच-नीच का भेद मिट जाता है तथा श्रद्धालु भक्त राधा-श्याम के भक्ति रस में डूब जाते हैं।
वृंदावन में झूलनोत्सव की शुरुआत एक मेले से होती है, जिसे हरियाली तीज का मेला कहते हैं। इस दिन तीर्थयात्रियों का प्रमुख आकर्षक बांके बिहारी मंदिर होता है, क्योंकि इस मंदिर में केवल हरियाली तीज के दिन ही भव्य हिंडोला डाला जाता है। सोने-चांदी के इस भव्य हिंडोले को इतना भव्य बनाया जाता है कि इसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे इसका निर्माण आज ही किया गया हो। इस भव्य हिंडोले की कीमत करोड़ों रुपये की है। इस दिन रत्न जडि़त हिंडोले में ठाकुर जी झूलते हैं। हिंडोले के आसपास मानव आकार की चांदी-सोने की सखियां होती हैं तथा वातावरण को प्राकृतिक बनाने का प्रयास किया जाता है। इत्र-गुलाल की लगातार चलती पिचकारियों से वातावरण सुगन्ध से भर जाता है।
बांके बिहारी मंदिर के निकट ही राधा वल्लभ मंदिर है। इस मंदिर में झूलनोत्सव का विशेष महत्व इसलिए है कि यहां पर एक दिन पूर्व से ही आयोजन शुरू हो जाता है। हरियाली तीज के एक दिन पूर्व राधा-रानी के श्रृंगार की तैयारी होती है। विभिन्न प्रकार के भोग तथा श्रृंगार की वस्तुएं रखी जाती हैं और प्रिया जी के मेहंदी लगाई जाती है। इस अवसर पर मंदिर में आयोजित संगीत समाज में सिंधारे के पदों का गायन होता है :
इस मंदिर में हरियाली तीज के बाद पूर्णिमा तक नित्य नए हिंडोले डाले जाते हैं। झूलनोत्सव का समापन रक्षाबंधन पर निम्न पद पर गायन से होता है :
अब न झूलंूगी ब्रज जीवन तिहारी सौगंध’ पिंडला पिरान लगी!!
उत्तर को दक्षिण से जोडऩे वाले रंगजी मंदिर से यद्यपि त्याँहार और पूजन दक्षिण भारत के मंदिर के अनुसार होते हैं, क्योंकि पांच सत्र उत्सव में झूलनोत्सव का कोई प्रावधान नहीं है किन्तु ब्रज में स्थित होने के कारण इस मंदिर में हरियाली तीज पर चांदी का एक हिंडोला डाला जाता है। पूर्णिमा तक पडऩे वाले इस हिंडोले में भगवान विराजते हैं।
वृंदावन के शाहजी मंदिर में हरियाली तीज से रक्षाबंधन तक सोने के हिंडोले डाले जाते हैं। इस मंदिर में एक कमरा है जो बसंती कमरे के नाम से मशहूर है। इस मंदिर की सभी दीवारें व छत बसंती रंगरंगी हैं तथा लखनवी शैली के सुन्दर बेल-बूटे अंकित हैं। मंदिर में बड़े-बड़े कीमती झाड़-फानूस लगे हैं। आदमकद शीशे इस कमरे की सुन्दरता को बढ़ा देते हैं। मंदिर में चल रहे फुहारे वातावरण को प्राकृतिक वातावरण देते हैं।
वृंदावन के ही राधारमण मंदिर गोपीनाथ मंदिर, पागल बाबा मंदिर में भी हिंडोले डाले जाते हैं। वृंदावन के प्रख्यात गोदा बिहार मंदिर में हरियाली तीज से पूर्णिमा तक विशेष संकीर्तन, भजन का आयोजन किया जाता है।
राधारानी की क्रीड़ास्थली बरसाना में राधारानी मंदिर में विशाल स्वर्ण हिंडोले में राधारानी झूलती हैं तथा रक्षाबंधन तक दादी बाबा मंदिर, वृषभान मंदिर, जयपुर मंदिर, अष्टसखी मंदिर, मोरकुटी एवं गोपाल जी मंदिर में हिंडोला दर्शन होते हैं। नंदगांव स्थित नंद बाबा मंदिर में एक विशाल चांदी का हिंडोला डाला जाता है।
बलदेव स्थित दाउजी मंदिर में एकादशी से पूर्णिमा तक हिंडोले डाले जाते हैं। इस मंदिर के हिंडोले में मणि का एक पक्का शीशा है, जिस पर स्वर्ण मुकुट धारण कराया जाता है। सायंकाल आरती के पूर्व तक शीशे पर मुकुट धारण रहता है। सायं आरती के बाद मुकुट हटा दिया जाता है।
मथुरा के प्रख्यात द्वारिकाधीश मंदिर में वर्तमान में तीन विशालकाय चांदी-सोने के हिंडोले हैं, जो श्रावण मास पर्यन्त रहते हैं। मथुरा के ही मशहूर स्वामी नारायण मंदिर में तो पूरे श्रावण मास हिंडोले की बहार आ जाती है। झूलनोत्सव को देखने के लिए तीर्थयात्रियों में होड़ सी लग जाती है। मंदिर में नित्य नए हिंडोले डाले जाते हैं। कभी मिठाई का, कभी वनस्पति का भव्य हिंडोला डाला जाता है, जिससे तीर्थयात्री मंदिर की ओर खिंचा चला आता है।