गंजों के गांव में कंघी बेचने जैसा था आईसीसी का अमेरिका में टी20 विश्व कप 2024 आयोजन

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आईसीसी क्रिकेट को प्रोमोट करने अमेरिका में गया है। अमेरिका में पिच अच्छे नहीं बन पाए हैं और बेटर्स के लिए मुश्किल का सबब है। अमेरिका खेलों में इतनी रुचि नहीं लेता है लेकिन खिलाने में ज़रूर लेता है। जुआ खेलने वाले खिलाड़ी कभी घाटे कभी मुनाफे में हो सकते हैं किंतु नाल निकालने वाला नालसी सदा मुनाफे में ही होता है। भारत में जुआ प्रतिबंधित है, मालवे में जुआ खिलवाने वाले आदमी को कुछ हिस्सा देते हैं उसे नाल कहते हैं और लेने वाले को नालसी। ऐसा नालसी मोहल्ले इलाके का दादा और थानेदार का मुँहलगा होता है जो मुखबिरी का काम भी करता है। ज्यादा जुआ किसी खिलाड़ी के जीत जाने पर ऐसा नालसी स्वयं ही जुए की मुखबिरी कर जुआ पकड़वा देता है एवं पुलिस पिण्डारियों की भांति जुआ लूटती है। पुलिस जुआ पकड़ने के लिए जितनी सतर्क होती है यदि इतनी सतर्क चोरी जाने वाली मोटरसाइकिल को ढूंढने में हो जाए तो गरीबों का भला हो जाए।

 

बहरहाल, अमेरिका की क्रिकेट में कोई अधिक रुचि नहीं है। ओलंपिक में अमेरिका अच्छा खेलता है। अमेरिका किसी भी मूल आदमी को लेकर नहीं बना है अपितु वह एक फैक्ट्री है जहां सारी भौतिक सुविधाओं को देकर नए मज़दूर गढ़े जाते हैं। पुराने मज़दूर बूढ़े हो जाते हैं या फिर मर जाते हैं, उसके पूर्व ही नए मज़दूरों को सरहद में भर्ती करने के प्रयास शुरू हो जाते हैं। यह प्रक्रिया सतत जारी रहती है इसलिए अमेरिका की जनता में देशभक्ति जैसी कोई विशेष भावना भी नहीं है जैसी भावना विश्व के अन्य कोनो में दिखायी देती है।

 

क्रिकेट गरीब और तीसरी दुनिया के देशों का खेल है। पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे अंतिम पंक्ति के देश इस खेल को खेलते हैं। श्रीलंका जैसा छोटा सा टापू इस खेल को खेलता है। वेस्टइंडीज की टीम भी कुछ ऐसे ही छोटे मोटे टापूओं से आए आदिवासी लोगों की टीम है जिनका अधिकतर समय समंदर के किनारे और वनों में व्यतीत होता है। केवल इंग्लैंड ही ऐसा देश है जो सर्वसंपन्न है एवं इंग्लैंड अपने साथ न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया को भी ले लाया ताकि  उसके शौक को पूरा किया जा सके।

 

भारत इंग्लैंड की कंपनी के ढाई सदी तक अधीन होने के कारण गेंद उठाने की हैसियत से भागीदार बना लिया गया और ऐसा ही भागीदार पाकिस्तान भी बना क्योंकि वह भी इंग्लैंड के अधीन था। जर्मनी,स्पेन,फ्रांस,रूस और इटली जैसी योरोप की महाशक्तियां क्रिकेट नाम भी मुश्किल से जानती हैं। वहां की सरकारें भी क्रिकेट को प्रोमोट नहीं करती हैं और जनता फुटबॉल में मग्न है। फुटबॉल से ध्यान आया अभी फुटबॉल का दूसरा सबसे बड़ा इवेंट यूरो कप शुरू हो चुका है जहां योरोप के अनेक देश भाग ले रहे हैं।

 

वर्तमान में भारत क्रिकेट का बाज़ार है, आईपीएल ऐसे ही बाज़ार का ब्रांड है जहां बाकायदा खिलाड़ी बिकते हैं. व्यापारी खरीदते हैं, फिर उनसे विज्ञापन होता है और जनता आनंद लेती है।

 

बाज़ार के कारण भारत दूसरे खेलों के संदर्भ में सोच भी नहीं पाता है, अभी भारत एशिया की तरफ से फीफा कप में फिर से क्वालीफाई नहीं कर पाया है। भारत के फुटबॉल खिलाड़ी भूखे मर गए हैं . उन बेचारों की कोई पहचान नहीं है क्योंकि वह ऐसा खेल खेल रहे हैं जिसका भारत में कोई बाज़ार नहीं है। उन खिलाड़ियों की इतनी हैसियत नहीं है कि उनके विज्ञापन से कोई विदेशी मदिरा खरीद ले।

 

बहरहाल, यूएस में बनाये क्रिकेट के मैदान अब तोड़ दिए जाएंगे क्योंकि वहां कोई क्रिकेट खेलने वाला नहीं है। अमेरिका में बगैर धन के कोई एक कदम नहीं चलता है. भारत में लोग कोसो मील चलकर मुर्दे ठिकाने लगा आते हैं। अमेरिका में आदमी चलने के भी रुपये मांगता है. फिर मैदानों में क्रिकेट खेलना तो दूर की बात है। इस कारण वहां सड़के सूनी हैं क्योंकि हर आदमी धन की गतिविधियों में लगा हुआ है।  

 

आईसीसी का अमेरिका में आयोजन करना बुरा फैसला था। यह गंजों के गांव में कंघी बेचने जैसा काम था। आईसीसी के ऐसे प्रयास से कोई अमेरिकी क्रिकेट नहीं खेलने वाला जब तक उन्हें धन नहीं मिले क्योंकि समय बड़ा बलवान है जो अमेरिकी जनता के पास नहीं है।

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