वन क्षेत्र में कमी के कारण मानव-पशु संघर्ष होता है: आदित्यनाथ

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लखनऊ, 10 सितंबर (भाषा) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंगलवार को यहां कहा कि वन क्षेत्र में कमी के कारण मानव-पशु संघर्ष होता है।

आदित्यनाथ यहां लोकभवन में एक समारोह को संबोधित कर रहे थे जिस दौरान उन्होंने उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के माध्यम से चयनित 647 वन रक्षकों/वन्यजीव रक्षकों व 41 अवर अभियंताओं को नियुक्ति पत्र वितरित किए।

उन्होंने कहा कि असमय जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों का सामना न केवल वन्यजीवों, बल्कि मानवों को भी करना पड़ेगा और वन के दायरे कम होने के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष की नौबत आती है।

मुख्यमंत्री ने कहा, “इस सीजन में हर वर्ष देखने को मिलता है कि वन्यजीव हिंसक हो रहे हैं। वन्यजीव व मानव संघर्ष के कारण जनहानि हो रही है। यह जनहानि परिवार व समाज की हानि है। इस कारण कई परिवार अनाथ हो जाते हैं।”

आदित्यनाथ का यह बयान उस दिन आया है जब बहराइच के महसी तहसील में जारी ‘ऑपरेशन भेड़िया’ के तहत पांचवें भेड़िये को पकड़ लिया गया। यह अभियान छह भेड़ियों के झुंड को पकड़ने के लिए चलाया जा रहा है, जिन्होंने जुलाई के मध्य से अब तक आठ लोगों की जान ले ली है और 20 से अधिक लोगों को घायल कर दिया है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि जब वन्यजीवों के इलाकों में जलभराव व अतिक्रमण होगा तो वे दूसरे क्षेत्रों की तरफ पलायन करेंगे जिससे मानव बस्तियां चपेट में आती हैं।

आदित्यनाथ ने कहा कि इसलिए वन-वन्यजीव रक्षकों को स्वयं प्रशिक्षित होने के साथ-साथ स्थानीय नागरिकों को गाइड के रूप में प्रशिक्षित करना होगा।

उन्होंने ने कहा, “तराई के जिन जिलों में यह घटनाएं हुई हैं, यह वे क्षेत्र हैं, जहां जंगल और खेत एक-दूसरे से सटे हैं। जंगल के अंदर पानी भरा तो जानवर खेत की तरफ आते हैं। कोई व्यक्ति अचानक खेत में गया तो जंगली जानवर हिंसक हो जाते हैं। सीमावर्ती क्षेत्रों में इलेक्ट्रिक व सोलर फेंसिंग की जानी चाहिए।”

मुख्यमंत्री ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश पहला राज्य है, जिसने मानव वन्यजीव संघर्ष को आपदा श्रेणी में शामिल करते हुए जनहानि पर पांच लाख रुपये का मुआवजा देने की व्यवस्था की है।

समाजवादी पार्टी का नाम लिए बिना उस पर निशाना साधते हुए आदित्यनाथ ने कहा,”जिन लोगों ने कभी अच्छा किया ही नहीं, अच्छा होने पर उन्हें बुरा लगेगा ही। वह बेनकाब हो रहे हैं, इसलिए दुष्प्रचार का सहारा लेते हैं। उनसे पूछा जाना चाहिए कि जब उनकी सरकार थी तो वे क्या कर रहे थे। भर्ती प्रक्रिया क्यों पारदर्शी ढंग से नहीं हो पा रही थी। क्यों न्यायपालिका को बार-बार भर्ती प्रक्रियाओं को रोकना पड़ा था।”

उन्होंने दावा किया कि 2017 के पहले शुचितापूर्ण भर्ती संभव नहीं थी तथा उस समय के सभी आयोग व बोर्ड पर प्रश्न खड़े हो रहे थे और उनके कार्य व चयन संदेह के घेरे में थे। उन्होंने कहा कि इन मामलों में आज भी सीबीआई जांच चल रही है।

उन्होंने कहा, “2017 के पहले युवा जब उत्तर प्रदेश से बाहर जाते थे और किसी ने पूछ लिया कि कहां से आए हो और उत्तर प्रदेश का बताने पर होटल, धर्मशाला व किराए पर कमरे नहीं मिलते थे। पहचान का संकट पैदा करने वाले वही लोग हैं, जो पेपर लीक करने वाले गैंग के सरगनाओं को अपना शागिर्द (अनुयायी) बनाते थे।”

इस अवसर पर राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. अरुण कुमार सक्सेना, राज्यमंत्री केपी मलिक, मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, अपर मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, प्रधान मुख्य वन संरक्षक व विभागाध्यक्ष सुधीर कुमार शर्मा आदि मौजूद रहे।

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