डॉ. वेदप्रकाश
वृक्ष प्राणवायु प्रदाता होने के साथ-साथ पर्यावरण रूपी संरचना के भी महत्वपूर्ण घटक हैं। वृक्षों से फल, फूल, औषधियां, लकड़ी एवं अन्य अनेक प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। भारतवर्ष की सनातन ज्ञान परंपरा अथवा चिंतन के मूल में प्रकृति- पर्यावरण विद्यमान है। यहां प्रकृति के दोहन के स्थान पर आवश्यकता अनुरूप उपयोग का सूत्र मुख्य रहा है। भारतीय जीवन पद्धति प्रकृति-पर्यावरण के विभिन्न उपादानों जैसे जल, वायु, धरती, आकाश, वनस्पति एवं विभिन्न जीवधारियों के संरक्षण-संवर्धन व सह अस्तित्व को केंद्र में रखकर चलती रही है। यहां पत्थरों की पूजा अकारण नहीं है. उनमें भी ईश्वर देखा गया है।
वृक्षों में देवत्व, उनकी पूजा, उनका संरक्षण-संवर्धन अनादि काल से है। यजुर्वेद में अनेक स्थानों पर वृक्षों एवं प्रकृति-पर्यावरण के संरक्षण-संवर्धन का संदेश है तो वाल्मीकि रामायण में भी माता सीता वृक्षारोपण के साथ-साथ उनमें जल देकर संरक्षण भी करती वर्णित हैं। वनवास काल में वे अनेक स्थानों पर वृक्षों का पूजन करती हैं। हमारे अनेक पर्व उत्सवों में वृक्षों की पूजा का भी प्रविधान है। वट अमावस्या या वट सावित्री का व्रत और उत्सव वट वृक्षों के संरक्षण- संवर्धन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। वृक्षों का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व जन-जन को उनके संरक्षण-संवर्धन से जोड़ता है। आज भी लोक में बड़-पीपल जैसे वट वृक्षों को काटने से परहेज किया जाता है। गांव देहात के लोगों का मानना है कि उनमें देवता रहते हैं।
वृक्ष जलवायु संतुलन के मूल आधार हैं। लगातार बढ़ रही आबादी, औद्योगिक प्रदूषण और विकास के नाम पर वृक्षों की कटाई जीवन के लिए खतरा बनती जा रही है। वृक्षों की अधिकता मिट्टी का कटाव रोकती है तो वहीं अधिकाधिक वर्षा का भी आधार बनती है। सामान्यतः देखा जा सकता है कि जिस क्षेत्र अथवा प्रदेश में वृक्षों की अधिकता है वहां सामान्य से अधिक वर्षा होती है। यह वर्षा जल ही नदियों में जाकर जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वृक्षों के अभाव में जलवायु तेजी से परिवर्तित हो रही है। ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने में सबसे बड़ी भूमिका वृक्षों की ही है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड सोंखते हैं अथवा लेते हैं और ऑक्सीजन देते हैं, इसलिए ये देवता हैं। आज समूची मानवता जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के खतरों से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन भिन्न-भिन्न रूप में लोगों में मानसिक समस्याओं का कारण बनता जा रहा है।
यूनिवर्सिटी आफ कॉलेज लंदन के इंस्टीट्यूट आफ न्यूरोलॉजी के एक अध्ययन में यह सामने आया है कि रात भर अधिक तापमान की वजह से नींद में खलल पड सकता है। अच्छी नींद न आना मानसिक समस्याओं को बढ़ाने का कार्य कर सकता है। इसी प्रकार येल प्रोग्राम आन क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन एंड सीवोटर द्वारा भारत में किए गए एक सर्वेक्षण से यह पता चला है कि 91 प्रतिशत भारतीयों ने जलवायु परिवर्तन को लेकर चिंता जताई है। जलवायु परिवर्तन और भीषण गर्मी से प्रभावित 30 प्रतिशत लोग जगह बदलने पर मजबूर हुए हैं। 38 प्रतिशत लोगों को कम से कम एक दिन स्वच्छ पेयजल के बिना रहना पड़ा है। विभिन्न अन्य शोधों से यह भी सामने आया है कि गर्मी, बाढ़ और प्रदूषण की अधिकता के कारण 50 लाख से अधिक छात्रों के अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया बाधित हुई है। चिंताजनक यह भी है कि दुनिया की एक चौथाई आबादी पानी की कमी से जूझ रही है। जल संकट वाले देशों में भारत 17 वें स्थान पर है।
हमें समझना होगा कि जल संकट, खाद्यान्न संकट एवं स्वच्छ वायु का विषय सीधे-सीधे वृक्षों से जुड़ा हुआ है। हम प्रकृति से निरंतर छेड़छाड़ कर रहे हैं जो जीवन के लिए घातक सिद्ध हो रही है। गंभीरता से विचार करें तो लगभग प्रतिदिन कहीं न कहीं जंगलों में आग लगी रहती है। जंगलों की आग का बड़ा कारण कभी बढ़ा हुआ तापमान होता है तो कभी मानवीय भूल अथवा शरारत। विगत दिनों उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में जंगल की आग के समाचार प्रमुखता से आते रहे। लाखों एकड़ जंगल जल गया। लंबे समय के बाद किसी प्रकार से आग पर काबू पाया जा सका। इससे स्पष्ट है कि हम इस प्रकार के संकटों से जूझने के लिए तैयार नहीं हैं। संकट उपस्थित होने पर हम उसके समाधान ढूंढते हैं।
आजकल मानसून का मौसम चल रहा है। अनेक स्थानों पर खूब बारिश हो रही है। देश के अलग-अलग स्थानों से वृक्षारोपण के समाचार आ रहे हैं। कई प्रदेशों में तो लाखों वृक्ष रोपने के समाचार आए हैं। ध्यान रहे वृक्षारोपण तो प्रतिवर्ष सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं अथवा लोग कर रहे हैं फिर भी हरित क्षेत्र में अप्रत्याशित बढ़ोतरी क्यों नहीं हो रही है। क्या हम वृक्षारोपण के बाद 5 साल तक उस वृक्ष का ध्यान रखते हैं? क्या यह सत्य नहीं है कि कुछ ही महीने बाद ये वृक्ष सूख जाते हैं अथवा भिन्न-भिन्न रूपों में नष्ट हो जाते हैं? हमें वृक्षारोपण के साथ-साथ वृक्षों के संरक्षण-संवर्धन हेतु वृक्षाबंधन का भी संकल्प करना होगा।
विगत दिनों परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन से देश के अनेक हिस्सों में लाखों वर्षों का रोपण हुआ है। वे वर्षों से भेंट स्वरूप रुद्राक्ष के पौधे बांट रहे हैं। रक्षाबंधन के दिन उन्होंने वृक्षारोपण करते हुए जन-जन को यह संदेश दिया कि वृक्षारोपण के साथ-साथ वृक्षाबंधन का भी संकल्प करें। उन्होंने कहा- जिस प्रकार रक्षाबंधन हमें बहन की रक्षा हेतु प्रेरित और संकल्पित करता है उसी प्रकार जिस वृक्ष को हम लगाए, उसे भी धागा बांधकर हम उसके संरक्षण- संवर्धन का संकल्प करें। आज हमें यह समझने की आवश्यकता है कि वृक्ष हमारे जीवन के आधार हैं। शुद्ध ऑक्सीजन जीवन के लिए आवश्यक है, जो हमें केवल वृक्षों से ही मिल सकती है। बड, पीपल, जामुन, नीम,बेल एवं पाकड आदि वृक्ष सर्वाधिक आक्सीजन देने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी एक पेड़ मां के नाम अभियान चलाया है, क्या हम एक पेड़ लगाकर इस अभियान में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते हैं? वृक्षारोपण एवं उनके संरक्षण-संवर्धन का प्रयास सुखद भविष्य का बड़ा मंत्र है, इसलिए आइए वृक्षारोपण के साथ-साथ वृक्षाबंधन का भी संकल्प करें।