क्लब थ्रोअर प्रणव सूरमा की नजर पैरालंपिक में पदक जीतने पर

Soorma

नयी दिल्ली, 22 अगस्त (भाषा) ऐसा अक्सर नहीं होता है कि जीवन बदल देने वाली दुर्घटना से अपाहिज हुआ कोई व्यक्ति उस त्रासदी को अपने लिए वरदान बना दे लेकिन जल्द ही पैरालिंपियन बनने वाले प्रणव सूरमा ने ऐसा ही कुछ कर दिखाया।

वह तब 16 साल के थे जब 2011 में उनके घर की छत उनके ऊपर गिर गई। उनकी जिंदगी व्हील चेयर तक सिमट गई थी लेकिन उन्होंने हौसला बनाए रखा और अब वह 28 अगस्त से पेरिस में होने वाले पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने की तैयारी में लगे हुए हैं।

पेशे से बैंकर सूरमा ने पीटीआई से कहा,‘‘मेरी शुरू से खेलों में रुचि रही है लेकिन मैंने कभी खेल को करियर विकल्प के रूप में नहीं लिया लेकिन मैं हमेशा अपने जीवन में कुछ अच्छा करना चाहता था और विडंबना यह है कि मुझे यह तब मिला जब मैं लकवाग्रस्त हो गया। मैं इसे अपने लिए आशीर्वाद मानता हूं।’’

सूरमा 30.01 मीटर के एशियाई खेलों के रिकॉर्ड के साथ पुरुषों की क्लब थ्रो एफ51 स्पर्धा में मौजूदा एशियाई चैंपियन हैं। पैरालंपिक खेलों में उन्हें पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा है।

उन्होंने कहा,‘‘मैंने खेल को अपनी पहचान बनाने के अवसर के रूप में लिया। मुझे 2016 में रियो पैरालंपिक के दौरान पैरा खेलों के बारे में पता चला। मैं तैराक बनना चाहता था लेकिन मेरी मेडिकल स्थिति को देखते हुए यह संभव नहीं था। मुझे टेबल टेनिस पसंद था लेकिन मुझे प्रशिक्षित करने के लिए कोई अच्छा कोच नहीं मिला।’’’

प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से वाणिज्य स्नातक 29 वर्षीय सूरमा ने कहा,‘‘फिर मेरे जीवन में नरसी राम सर (एक पैरा-एथलेटिक्स कोच) आए। उन्होंने मुझे एथलेटिक्स से परिचित कराया और आखिरकार मैंने क्लब थ्रो करना शुरू कर दिया।’’

वह वर्तमान में बैंक ऑफ बड़ौदा में सहायक प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं। यह नौकरी उन्हें प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बाद मिली थी।

क्लब थ्रो में जहां तक संभव हो लकड़ी के क्लब को फेंकना होता है। यह हैमर थ्रो की तरह ही है जिसमें खिलाड़ी अपने कंधों और भुजाओं से ताकत लगाते हैं।

सूरमा ने उनका समर्थन करने के लिए अपने परिवार के प्रति आभार व्यक्त किया और पेरिस पैरालिंपिक में पदक जीतकर उन्हें समर्पित करना चाहते हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे अपने परिवार से बहुत समर्थन मिला। मेरे पिता (संजीव) ने मेरी देखभाल करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी और मेरी मां ने परिवार का खर्च उठाया।’’

सूरमा ने कहा,‘‘पेरिस पैरालंपिक खेल खेलों की दुनिया में अपना नाम बनाने और अपने माता-पिता को गौरवान्वित करने का बड़ा अवसर है। मैं पदक जीतने के लिए बहुत मेहनत कर रहा हूं और मुझे विश्वास है कि मैं पदक लेकर लौटूंगा। मैं अंतिम परिणाम के बारे में नहीं सोच रहा हूं।’’