वारसॉ, 21 अगस्त (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को पोलैंड की राजधानी में ‘गुड महाराजा स्क्वायर’ सहित तीन स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्होंने कहा कि मानवता और करुणा एक ‘‘न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण दुनिया’’ के लिए महत्वपूर्ण आधार हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने वारसॉ में वलीवाडे-कोल्हापुर स्मारक और मोंटे कैसीनो की लड़ाई के स्मारक पर भी श्रद्धांजलि अर्पित की। अपनी दो देशों की यात्रा के पहले चरण में मोदी यहां पहुंचे जिसके बाद वह यूक्रेन भी जाएंगे।
मोदी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “मानवता और करुणा एक न्यायपूर्ण और शांतिपूर्ण विश्व की महत्वपूर्ण नींव है। वारसॉ में नवानगर के जाम साहब स्मारक में जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा के मानवीय योगदान पर प्रकाश डाला गया है, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बेघर हुए पोलिश बच्चों को आश्रय देने के साथ-साथ देखभाल भी सुनिश्चित की थी।”
उन्होंने कहा, “जाम साहब को पोलैंड में डोबरी महाराजा के नाम से याद किया जाता है।” उन्होंने स्मारक की तस्वीरें भी साझा कीं।
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वारसॉ में डोबरी महाराजा स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित की, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नवानगर के जाम साहब दिग्विजयसिंहजी रणजीतसिंहजी जडेजा के उल्लेखनीय कृतज्ञतापूर्ण कार्य को सम्मानित किया।”
स्मारक का अनावरण अक्टूबर 2014 में वारसॉ के ओचोटा जिले के गुड महाराजा स्क्वायर में किया गया था। इसमें शिलालेखों के साथ एक छोटा ईंट का स्तंभ शामिल है।
भारतीय दूतावास की वेबसाइट के अनुसार, पोलैंड में आठ प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों का नाम जाम साहब के नाम पर रखा गया है, जिन्हें पोलैंड में “गुड महाराजा” के नाम से जाना जाता है।
महाराजा ने 1942 में नाजी जर्मनी और सोवियत रूस द्वारा पोलैंड पर कब्जे के बाद युद्धग्रस्त, कब्जे वाले पोलैंड और सोवियत शिविरों से लगभग 1,000 पोलिश बच्चों को शरण प्रदान की थी।
इसमें कहा गया है कि जीवित बचे पोलिश बच्चों ने पोलिश एसोसिएशन का गठन किया है, जिसकी बैठक हर साल पोलैंड के किसी प्रमुख शहर में होती है।
इससे पहले दिन में मोदी ने वलीवाडे-कोल्हापुर शिविर की स्मारक पट्टिका पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इसका उद्घाटन नवंबर 2017 में किया गया था।
महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर के निकट वलीवाडे गांव वह स्थान है जहां 5,000 से अधिक पोलिश लोग रहे, एकजुट हुए और अपनी मातृभूमि लौटने से पहले कई वर्षों तक कार्यरत रहे।
उनमें से अधिकांश लोग द्वितीय विश्व युद्ध के भीषण संघर्ष के दौरान पोलिश शिविरों से निकासी के बाद भूमि या समुद्री मार्ग से वहां पहुंचे थे।
प्रधानमंत्री मोदी ने वारसॉ में मोंटे कैसीनो के युद्ध स्मारक पर भी श्रद्धांजलि अर्पित की।