राष्ट्रीय राजधानी आपदा क्षेत्र बनती जा रही है। यहां लंबे समय से पानी की किल्लत, वायु प्रदूषण, जल भराव,ट्रेफिक जाम, लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, कूड़े के पहाड़, प्रदूषित यमुना, आबकारी घोटाला, जल बोर्ड घोटाला और विभिन्न निकायों में भ्रष्टाचार शिखर पर है।
राजधानी दिल्ली देश का गौरव है, यह ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और व्यावसायिक नगरी है, लेकिन आज इसकी बदहाली भी किसी से छुपी नहीं है। आज जब देश नए भारत और विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, देश दुनिया में भारत के सामर्थ्य एवं उपलब्धियों की चर्चा हो रही है, तब राष्ट्रीय राजधानी को समग्रता में मॉडल बनाना चाहिए लेकिन स्थिति इसके ठीक विपरीत है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2022 में महिलाओं के विरुद्ध अपराध की दर सबसे अधिक दिल्ली में 144.4 दर्ज की गई। इस वर्ष यहां महिलाओं के विरुद्ध अपराध के 14,247 मामले पंजीकृत किए गए। गौरतलब है कि दिल्ली एनसीआर में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालय हैं जहां देश-विदेश से स्त्री-पुरुष काम के लिए आते हैं, क्या ऐसे में उपर्युक्त आंकड़े चिंताजनक नहीं हैं?
विगत दिनों माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अशोधित ठोस कचरे से दिल्ली में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का खतरा है। गौरतलब है कि दिल्ली में अनेक स्थानों पर कूड़े के पहाड़ बने हुए हैं। राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिदिन लगभग 11000 टन कूड़ा निकलता है, जिसमें से लगभग 8000 टन ही विभिन्न माध्यमों से निस्तारित हो पता है। बाकी 3000 टन ठोस कचरा यहां वहां पड़ा रहता है, उसका निस्तारण नहीं हो पा रहा है। चिंताजनक यह भी है कि राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिवर्ष लगभग दो लाख टन ई कचरा भी निकल रहा है, जिसमें छोटे बड़े उपकरण, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक सामान, इलेक्ट्रिकल उत्पाद, खिलौने एवं सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित उपकरण हैं। यह ई कचरा भी सीधे सेनेटरी लैंड फील्ड साइट, जलाशयों में अथवा यहां वहां पड़ा रहता है, जो स्वास्थ्य और भिन्न-भिन्न रूपों में प्रदूषण के लिए सीधे जिम्मेदार है। अशोधित कचरे को लेकर दिल्ली सरकार न तो चिंतित है और न ही उसके पास योजना है। अशोधित कचरे के निस्तारण हेतु पर्याप्त स्थान और आवश्यक मशीनों का न होना भी एक बड़ी समस्या है, फलस्वरूप जीवन खतरे में है।
एक रिपोर्ट के अनुसार नेल पॉलिश की शीशी, पेंट और कीटनाशक के डिब्बे, सीएफएल बल्ब,एक्सपायर हो चुकी दवाएं, टूटे हुए थर्मामीटर, इस्तेमाल की गई बैटरियां और सिरिंज जैसे घरेलू खतरनाक अपशिष्ट भी पारिस्थितिकी तंत्र व मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरा बना रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण की स्थिति भी चिंताजनक है। दिल्ली में जनसंख्या का दबाव लगातार बढ़ रहा है। वोट बैंक की राजनीति के कारण भिन्न-भिन्न रूपों में सड़क, फुटपाथ एवं खाली जमीन पर अतिक्रमण जारी है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने डीडीए को यमुना बाढ़ क्षेत्र से अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण हटाने के बाद यमुना बाढ़ क्षेत्र के चारों ओर बाड़ लगाने का निर्देश दिया है, इससे स्पष्ट है कि यमुना का बाढ़ क्षेत्र भी अनधिकृत निर्माण और अतिक्रमण की ग्रिफ्त में है।
ज्ञात हो कि वायु प्रदूषण की दृष्टि से भी राजधानी दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में गिनी जा रही है। जहां एक्यूआइ 450 तक पहुंच जाता है। वायु प्रदूषण के गंभीरतम श्रेणी में पहुंचने पर स्थानीय प्रशासन थोड़ा बहुत हरकत में आता है, किंतु कभी पराली को कारण बताकर तो कभी पड़ोसी राज्यों पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर इतिश्री कर ली जाती है। अनेक बार दिल्ली सरकार पर्याप्त पैसे की कमी का हवाला देकर केंद्र को दोषी ठहरा देती है, लेकिन पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि राष्ट्रीय राजधानी वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु दिए गए धन का केवल 33 प्रतिशत ही उपयोग कर पाई। क्या प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में समुचित काम न करना नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ नहीं है?
राजधानी दिल्ली में पेयजल का विकट संकट है। गर्मियों में यह समस्या इतनी विकराल हो जाती है कि लोग दिनभर पानी के लिए लाइन में खड़े रहते हैं, टैंकर माफिया ऐसी स्थिति का खूब लाभ उठाते हैं। शासन-प्रशासन मूक दृष्टा बना रहता है। क्या शुद्ध वायु और शुद्ध पेयजल नागरिकों का संविधान सम्मत अधिकार नहीं है? दिल्ली सरकार के लोकनायक, गुरु तेग बहादुर, जीबी पंत सहित आठ अस्पतालों में 200 करोड़ रुपए का घोटाला, मोहल्ला क्लीनिक में भिन्न-भिन्न प्रकार की अनियमितताएं स्वास्थ्य क्षेत्र में दिल्ली की बदहाली को उजागर करती हैं। दिल्ली सरकार के वित्त पोषित 12 कॉलेजों में वेतन, मूलभूत सुविधाओं एवं फंड न देने के कारण वहां के हजारों शिक्षक और गैर शिक्षक कर्मचारी लंबे समय से सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं।
हाल ही में ओल्ड राजेंद्र नगर में कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी घुसने से तीन छात्रों की मौत का मामला सर्वविदित है। दिल्ली में ऐसे हजारों अवैध बेसमेंट बने हुए हैं, जिनमें बिना मानकों का पालन किए ही व्यावसायिक गतिविधियां चल रही हैं। राजेंद्र नगर का हादसा सीधे-सीधे स्थानीय प्रशासन के भ्रष्टाचार एवं अनदेखी का परिणाम है। कोचिंग सेंटर्स में लगातार बढ़ रही दुर्घटनाओं को लेकर केंद्र सरकार ने जनवरी 2024 में राज्यों को दिशा निर्देश जारी किए थे, लेकिन यह भी विडंबना ही है कि राज्य उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, क्या इन मौतों के लिए राज्य सरकार अथवा स्थानीय अधिकारी जिम्मेदार नहीं होने चाहिए? शहरी विकास मंत्री के अनुसार वर्ष 2023 में 1,120 कोचिंग संस्थानों को नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन स्थानीय प्रशासन में कोई कार्रवाई नहीं की। आज भी कई कोचिंग सेंटरों में भारी संख्या में छात्र फिजिकल मोड में कक्षा लेने जा रहे हैं, जो सीधे-सीधे गैस चैंबर बने हुए हैं। भारी फीस लेकर उनके जीवन से खिलवाड़ का जिम्मेदार कौन है?
आजकल मानसून का समय है,बारिश की संभावना लगातार बनी रहती है। थोड़ी बारिश होते ही दिल्ली में भयंकर ट्रैफिक जाम सामान्य बात है। छोटी-छोटी नालियों और नालों में जल भराव होने से गली और सड़कों पर बारिश का पानी इकट्ठा हो जाता है। अब तक 20 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। सरकार, शासन-प्रशासन और स्थानीय निकाय आरोप-प्रत्यारोप में उलझे रहते हैं। समाचार पत्रों में छपे आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में कुल 713 नाले हैं, जिनमें से केवल 287 की ही सफाई हुई है। बारिश का पानी कहां जाएगा? आखिर प्रतिवर्ष नालों की सफाई के नाम पर करोड़ों रुपया कहां जा रहा है? इस संबंध में क्षेत्रवार पूरी दिल्ली के आंकड़े उपलब्ध हैं, क्या इनसे संबंधित अधिकारियों पर आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए? दिल्ली के 10 प्रमुख सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों के नवीनीकरण एवं निर्माण में घोटाले और भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। दिल्ली सरकार और विभिन्न स्थानीय निकाय भ्रष्टाचार में डूबते जा रहे हैं, क्या दिल्लीवासियों ने भ्रष्टाचार के लिए ही सरकार चुनी थी?
जल भराव, टूटी सड़कें, खुले नाले, आवारा पशु, अतिक्रमित सड़कें और बदहाल फुटपाथ की हजारों शिकायतें दिल्ली सरकार एवं स्थानीय निकायों के पास पड़ी है, लेकिन न कोई सुनवाई न कोई समाधान। पहाड़ों में भारी बारिश चल रही है, यमुना नदी में जलस्तर निरंतर बढ़ रहा है। कुछ ही दिनों में दिल्ली में बाढ़ का खतरा भी मंडराने वाला है। चिंताजनक है कि जब बारिश के जल भराव को ही सरकार नहीं संभाल पा रही है तो फिर बाढ़ की स्थिति कैसे संभाल पाएगी। दिल्ली को सिंगापुर बनाने के भाषण देने वाला मुख्यमंत्री और उनके कई अन्य प्रमुख लोग आबकारी घोटाले में भ्रष्टाचार के आरोप में पिछले कई महीनों से जेल में हैं। उनकी पद लोलुपता और राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण दिल्ली बदहाल हो चुकी है। बाहर जिनके ऊपर कई मंत्रालयों का जिम्मा है वे दिनभर प्रेस वार्ता और आरोप-प्रत्यारोपों में ही व्यस्त रहते हैं। दिन-प्रतिदिन के अनेक निर्णय और योजनाएं भगवान भरोसे चल रही हैं, ऐसे में राष्ट्रीय राजधानी की बदहाली चिंताजनक है।
डॉ.वेदप्रकाश
असिस्टेंट प्रोफेसर,
किरोड़ीमल कॉलेज,दिल्ली