आज का युवा वर्ग विकास, तकनीक और वैश्वीकरण के इस दौर का सबसे बड़ा भागीदार है लेकिन इसी तेज बदलाव वाले परिवेश में युवा पीढ़ी सबसे अधिक मानसिक दबाव, तनाव और अस्थिरता का सामना कर रही है। प्रतिस्पर्धा, सोशल मीडिया का प्रभाव, पारिवारिक अपेक्षाएं, करियर की अनिश्चितता और रिश्तों की जटिलताएं ये सभी मिलकर युवाओं में तनाव को अत्यधिक बढ़ा रहे हैं। तनाव अब सिर्फ एक मनोवैज्ञानिक स्थिति नहीं, बल्कि एक सामाजिक समस्या बन चुका है, जो युवाओं के स्वास्थ्य, व्यवहार और भविष्य को प्रभावित कर रहा है।
युवाओं में तनाव बढ़ने के प्रमुख कारणों पर चर्चा करें तो सबसे पहला कारण है कॅरियर निर्माण और प्रतियोगिता का दबाव। अच्छी नौकरी पाने की चिंता, कम होते अवसर और बढ़ती उम्मीदों ने युवाओं को निरंतर मानसिक दौड़ में शामिल कर दिया है। असफलता का भय और दूसरों से आगे निकलने की चाह मन को बेचैन कर देती है। इसके अलावा दूसरा बड़ा कारण है सोशल मीडिया का अत्यधिक प्रभाव। यह प्लेटफॉर्म युवाओं के लिए प्रेरणा के साथ चिंता का भी कारण बन गया है। दूसरों की लाइफस्टाइल देखकर तुलना करना, कम लाइक्स मिलने पर हताशा, रिलेशनशिप स्टेटस और दिखावटी सफलता के प्रभाव युवाओं में असंतोष और तनाव बढ़ा देते हैं।
इसके अतिरिक्त पारिवारिक अपेक्षाएं भी युवाओं में बढते तनाव का बड़ा स्रोत हैं। कई युवा अपने माता-पिता की उम्मीदों पर खरा उतरने में स्वयं को बोझिल महसूस करते हैं। संवाद की कमी, भावनात्मक दूरी और खुद को समझा न पाना भी तनाव को और बढ़ाता है। इसके साथ ही रिश्तों में अस्थिरता भी युवाओं की मानसिक स्थिति पर गहरा असर डालती है। दोस्ती में दूरी, प्रेम संबंधों की जटिलताएं, ब्रेकअप और विश्वास की कमी युवाओं को लंबे समय तक मानसिक रूप से परेशान कर सकती हैं। अनियमित जीवनशैली, जैसे-रात में देर तक मोबाइल चलाना, नींद की कमी, जंक फूड, शारीरिक गतिविधि का अभाव और नशे की आदत भी तनाव को जन्म देती है।
तनाव के कारण युवाओं में बढते दुष्परिणाम चिंताजनक है। बढ़ता तनाव युवा मानसिकता को खोखला कर रहा है। तनाव के कारण युवा डिप्रेशन, एंग्जायटी, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन और एकाग्रता की कमी जैसे लक्षण महसूस करते हैं। जिसके अन्तर्गत धड़कन बढ़ना, उच्च रक्तचाप, सिरदर्द, शरीर में थकान जैसे शारीरिक प्रभाव भी दिखाई देते हैं। पढ़ाई, काम और रिश्तों पर नकारात्मक असर पड़ता है। कुछ युवा तनाव से निपटने के लिए गलत संगत और नशे का सहारा लेने लगते हैं, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है।
युवाओं में बढते तनाव को कम करने के लिए कुछ सरल और व्यवहारिक उपाय बहुत प्रभावी हो सकते हैं जिसके अन्तर्गत समय प्रबंधन भी प्रमुख है। सबसे पहले दैनिक दिनचर्या व्यवस्थित करें। पढ़ाई, आराम, व्यायाम और मनोरंजन के लिए समय बांटने से मानसिक दबाव कम होता है। सोशल मीडिया डिटॉक्स भी जरूरी है। हर दिन कुछ घंटे मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी बनाएं। इससे मन शांत होता है और अनावश्यक तुलना समाप्त होती है। नियमित योग जिसमें व्यायाम, सूर्य नमस्कार और प्राणायाम तनाव हार्मोन को नियंत्रित कर दिमाग को स्थिर करते हैं। परिवार और मित्रों के साथ बातचीत कर अपनी भावनाएं साझा कर सकते है। मन का बोझ बांटने से समाधान भी मिलता है और तनाव भी घटता है। इसके साथ साथ अपने व्यक्तिगत शौक को भी समय दें जैसे संगीत, लेखन, पेंटिंग, खेल या कोई रचनात्मक गतिविधि मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है।
मानसिक शांति व तनाव प्रबंधन में पर्याप्त नींद और संतुलित आहार का बहुत बड़ा योगदान है। 8 घंटे की नींद मानसिक शांति के लिए अनिवार्य है। हरी सब्जियां, फल, दालें और पानी का संतुलित सेवन तनाव से लड़ने में मदद करता है। औषध और चिकित्सकीय उपाय भी तनाव से लड़ने के लिए आवश्यक है। यदि तनाव इतना बढ़ जाए कि सामान्य जीवन प्रभावित होने लगे, तो डॉक्टर या मनोचिकित्सक से मिलना भी आवश्यक है। कभी-कभी काउंसलिंग या ’कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी’ द्वारा युवा अपनी सोच को संतुलित कर पाते हैं। डॉक्टर आवश्यक होने पर हल्की दवाएं भी देते हैं, लेकिन बिना चिकित्सक की सलाह दवा लेना खतरनाक भी हो सकता है। इसका अवश्य ध्यान रखे।
युवा पीढ़ी देश की ऊर्जा और भविष्य का आधार है। लेकिन यदि यही पीढ़ी तनाव, चिंता और मानसिक दबाव से घिर जाए, तो सामाजिक संरचना कमजोर हो सकती है। इसलिए परिवार, शिक्षण संस्थान और समाज सभी का कर्तव्य है कि युवाओं को सहारा, समझ और सकारात्मक वातावरण प्रदान करें। संतुलित जीवनशैली, खुला संवाद, समय प्रबंधन और सही चिकित्सा इन सबके माध्यम से युवा तनावमुक्त होकर उन्नति और सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।
डा वीरेन्द्र भाटी मंगल
