झारखंड के आदिवासी वस्त्रों को वैश्विक पहचान दिला रहा है ‘जोहारग्राम’

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रांची, तीन दिसंबर (भाषा) डिजाइनर आशीष सत्यव्रत साहू ने ‘जोहारग्राम’ ब्रांड की शुरुआत ‘झारखंड के आदिवासी वस्त्रों को राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने और साथ ही खादी एवं स्वदेशी को अपने काम के केंद्र में रखने’ के एक साधारण विचार साथ की थी। हालांकि पांच साल बाद इस पहल ने न केवल राज्य की बुनाई परंपराओं को नई पहचान दिलाई है बल्कि उन्हें वैश्विक मंचों पर भी पहुंचाया है।

साहू ने कहा कि वह महात्मा गांधी के इस विश्वास से निरंतर प्रेरणा लेते हैं कि ‘‘खादी आत्मनिर्भरता एवं सांस्कृतिक पहचान’’ का प्रतीक है।

उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ बातचीत में कहा, ‘‘ हम खादी, स्वदेशी एवं टिकाऊ फैशन को बढ़ावा दे रहे हैं। ‘जोहारग्राम’ झारखंड में स्थित है और इसका मुख्य कार्य झारखंडी आदिवासी वस्त्रों पर केंद्रित है।’’

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में हाल ही में डिजाइनर का जिक्र किया था।

मोदी ने कहा था कि साहू ने ‘जोहारग्राम’ ब्रांड के माध्यम से झारखंड की आदिवासी बुनाई विरासत को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है जिससे विदेशों में लोगों को राज्य की सांस्कृतिक समृद्धि के बारे में जानकारी हासिल करने में मदद मिली है।

साहू ने इसे ‘जोहारग्राम’ के लिए ‘‘सबसे बड़ी उपलब्धि’’ करार देते हुए कहा कि इस सराहना ने हमारी पहल को एक नई पहचान दी है।

उन्होंने कहा, ‘‘ लोगों ने इसके बारे में बात करना शुरू कर दिया है जिससे हमारे काम को और भी अधिक सफलता मिलेगी।’’

साहू ने झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के ‘जोहारग्राम’ का परिधान पहनने को गर्व का एक और क्षण करार दिया।

डिजाइनर ने इसे स्थानीय शिल्प कौशल को एक महत्वपूर्ण समर्थन बताया।

‘जोहारग्राम’ की शुरुआत 15 नवंबर 2020 को की गई। इसे रांची से संचालित किया जाता है। इसका उद्देश्य झारखंड की सांस्कृतिक पहचान को उजागर करते हुए आदिवासी परिधानों को मुख्यधारा के ‘फैशन’ में लाना है। झारखंड के अलावा यह ब्रांड अब बढ़ती मांग के साथ ओडिशा, छत्तीसगढ़ और असम में आदिवासी कपड़ा समूहों के साथ भी काम करता है।

साहू ने कहा, ‘‘ हम बुनकरों की पारंपरिक जड़ों से छेड़छाड़ किए बिना सीधे उनसे कपड़े खरीदते हैं और फिर उन्हें फैशन के हिसाब से नया रूप देकर उनका मूल्यवर्धन करते हैं।’’

उन्होंने बताया कि आज ऑर्डर न केवल समूचे भारत से बल्कि अमेरिका, यूरोप, पश्चिम एशिया, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया से भी मिल रहे हैं।

राज्य और केंद्र सरकारों के सहयोग से इस पहल को और बढ़ावा मिला है। झारखंड, दिल्ली और मुंबई में लगने वाले भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले जैसी प्रमुख प्रदर्शनियों में इसे निशुल्क ‘स्टॉल’ उपलब्ध कराए जाते हैं। साथ ही केंद्र ने राष्ट्रीय हथकरघा दिवस पर ‘जोहारग्राम’ को एक प्रदर्शनी प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है।

साहू ने कहा कि स्वदेशी के लिए सरकार का प्रयास स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने और ‘‘ देश के पैसे को देश के भीतर ’’ रखने में मदद कर रहा है।

उन्होंने बताया कि हाल तक झारखंड के आदिवासी वस्त्रों को राष्ट्रीय पुरस्कारों के लिए नहीं भेजा जाता था लेकिन ‘जोहारग्राम’ के दम पर पिछले दो वर्ष से नामंकन मिलने से इस धारणा में भी बदलाव आया है।

‘जोहारग्राम’ के मुख्य दल में 15 सदस्य हैं जिन्हें लगभग 200 बुनकरों, कारीगरों और शिल्प श्रमिकों का समर्थन हासिल है।

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