ईसा मसीह के शिष्यों ने पूछ लिया- ‘प्रार्थनाÓ करने का सरल तरीका बताकर कृतार्थ करें। ‘सुनो!Ó प्रार्थना अकेले में, कोठरी में, एकांत में बैठकर करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। जो लोग स्वयं को भगवान का भक्त सिद्ध करने के लिए किसी सभा में, किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रार्थना करते हैं, उनकी प्रार्थना कभी स्वीकार नहीं होती, बल्कि उन्हें तो इस ढोंग का प्रतिफल भी भोगना पड़ सकता है। ईसा मसीह ने शिष्यों से आगे कहा- ‘हमें प्रार्थना में ईश्वर से कुछ नहीं मांगना चाहिए। वह स्वयं जानता है कि हमें क्या चाहिए। हमें निष्कपट और सरल बनने का संकल्प लेते हुए प्रार्थना करनी चाहिए। हे पिता! हमें परीक्षा में बैठा। हमें बुरे रास्ते पर मत चलने दे। न निंदा करें, न किसी का बुरा मांगे। हम किसी को भी किसी प्रकार का भी कष्ट न दें।Ó कहते-कहते प्रभु ईसा रुके, फिर समझाया- ‘ध्यान रहे कि ऐसी पवित्र भावना से ईश्वर अवश्य प्रसन्न होते हैं। दान करना है तो इसे अपना कत्र्तव्य मानें। चुपचाप दान तथा उपवास करना ही फलीभूत होता है और याद रखें कि जो लोग दान का ढिंढोरा पीटने व बदले में सराहना की तमन्ना रखते हैं, ईश्वर उनसे खुश नहीं होता तथा फल भी नहीं देता। इसी प्रकार उपवास भी चुपचाप करो। यहां-वहां बताने की आवश्यकता नहीं है।