गर्व, गरिमा और गौरव का अवसर है दीपावली का विश्व विरासत सूची में शामिल होना
Focus News 13 December 2025 0
प्रमोद दीक्षित मलय
संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा 16 नवम्बर, 1945 को स्थापित एक विशेष शाखा ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन’ (यूनेस्को) की अंतर सरकारी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर समिति की लाल किला, नई दिल्ली में आयोजित 20वीं बैठक में घोषित नये विश्व विरासत सूची में दीपावली पर्व का शामिल किया जाना हर भारतीय के लिए गर्व, गरिमा एवं गौरव का आनंददायी अवसर है, साथ ही वैश्विक संदर्भ में सनातन संस्कृति की प्रतिष्ठा, प्रखरता एवं प्रदीप्ति की मानवीय भावदृष्टि वसुधैव कुटुम्बकम् की मधुरता एवं आत्मीयता के विशेष संदेश का सम्प्रेषण भी है। विश्व विरासत सूचिका के अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर वर्ग में शामिल भारत की 16वीं धरोहर दीपावली प्रकारांतर से लोक-मंगल के आराधक श्रीराम की जागतिक भूमिका की स्वीकृति है, क्योंकि लंका विजय पश्चात् अयोध्या आगमन पर नगरवासियों ने गोघृत के दीप जला कर न केवल उनका स्वागत वंदन अभिनंदन किया था बल्कि प्रकाश के माध्यम से एक राजपुरुष की व्यष्टि से समष्टि की, वामन से विराट की सामाजिक एवं सांस्कृतिक यात्रा तथा लोक सम्पर्क एवं लोक संग्रह से निरंकुश सर्वोच्च अमानवीय सत्ता पर वनवासी-गिरिवासी समाज की विजय का यशोगान भी किया है। राम व्यक्ति नहीं एक संस्कृति हैं, सहकार भाव हैं। राम मानवीय मूल्यों का सर्वोच्च शिखर हैं जहां संवेदना, सह-अस्तित्व, सख्य, स्वीकृति, समन्वय, सम्बल एवं समानुभूति का इंद्रधनु मुस्कुरा रहा है, जहां करुणा का ध्वज अपनी आभा से दैदीप्यमान हो फहर रहा है। वस्तुत: श्रीराम मानवीय आचरण की गरिमा का आख्यान हैं। राम भारत की आत्मा हैं, प्राण हैं एवं सनातन संस्कृति के आधार तत्व भी है। दीपावली राम के आदर्शमय जीवन एवं लोक व्यवहार की संवाहिका है। दीपावली का प्रकाश समता, समरसता के साथ ज्ञान की साधना का परिचायक है। दीपावली का विश्व धरोहर में चुना जाना न केवल विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करेगा, अपितु दीपोत्सव के सांस्कृतिक वैभव से परिचित भी कराएगा।
अमूर्त धरोहर मानव जीवन से जुड़े वे पारम्परिक शिल्प कौशल, व्यवहार, नाट्य कला प्रदर्शन, सामाजिक रीति एवं प्रथाएं, अनुष्ठान, प्रकृति से जुड़ा लोक ज्ञान जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता हो तथा मौखिक शास्त्रीय वाचन आदि हैं जो मानवीय मूल्यों, संस्कृति-सभ्यता का रक्षण कर वैश्विक पहचान स्थापित करें। अमूर्त धरोहरें अनुभूतिपरक होती हैं, उनका स्पर्श एवं दर्शन सम्भव नही। दीपावली के पूर्व 15 अमूर्त धरोहरों को स्थान मिला चुका था जिनमें गरबा, दुर्गा पूजा, कुंभ मेला, योग, वैदिक मंत्र पाठ, कुटियाट्टम नाट्य कला, छाऊ लोकनृत्य, कालबेलिया नृत्य, रामलीला, लद्दाख का बौद्ध जप अनुष्ठान, मणिपुर भक्ति संकीर्तन, राममन कला, पंजाब की पीतल-तांबे से बर्तन बनाने की पारम्परिक लोककला आदि हैं। स्थूल सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहरों में अंजता-एलोरा की गुफाएं, आगरा किला एवं ताजमहल, हम्पी स्मारक, कोणार्क सूर्य मंदिर, महाबलीपुरम मंदिर, भीमबेटका शैल चित्र, एलिफैंटा गुफाएं, फतेहपुर सीकरी, गोवा के गिरजाघर व मठ, खजुराहो के मंदिर, सांची स्मारक, चोल मंदिर, हुमायूं का मकबरा, मानस वन्यजीव अभ्यारण्य, जंतर-मंतर जयपुर, पश्चिमी घाट, राजस्थान के किले, रानी की बावड़ी, अहमदाबाद एवं जयपुर शहर, सुंदर वन, महाबोधि मंदिर गया, छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, शांतिनिकेतन तथा नालंदा महाविहार आदि स्थल शामिल हैं। विश्व धरोहर सूची में दुनिया में भारत छठे क्रम पर है जिसकी कुल 45 धरोहरें सूचीबद्ध हुई हैं।
विश्व धरोहर स्थल वे सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक रचनाएं हैं जिनको ऐतिहासिक, वैज्ञानिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक महत्व एवं अवदान कारण यूनेस्को की एक अंतरराष्ट्रीय संधि के तहत कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। सम्पूर्ण मानवता के लिए असाधारण योगदान के कारण उनको अमूल्य माना गया है। इसके अंतर्गत प्राचीन खंडहर, ऐतिहासिक भवन एवं महल, किले, शहर, रेगिस्तान, गुफाएं, द्वीप, झीलें, स्मारक, पहाड़, निर्जन क्षेत्र एवं अमूर्त विचार-दर्शन, पर्व-त्योहार आदि परिगणित हैं। नई दिल्ली बैठक, दिसम्बर-2025 तक 170 देशों के 1250 से अधिक धरोहरों को विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया गया है। 16 नवम्बर, 1972 को विश्व धरोहर सम्मेलन में विश्व धरोहरों को सूचीबद्ध कर संरक्षित करने काम हाथ लिया गया था। इसके अंतर्गत सांस्कृतिक, प्राकृतिक एवं मिश्रित धरोहरों को चिह्नित कर मानवीय अतिक्रमण, पालतू एवं वन्यजीवों द्वारा नुकसान से बचाव एवं प्राकृतिक आपदाओं से इन धरोहरों का संरक्षण एवं रखरखाव का काम किया जाता है। साथ ही डिजिटल एवं सामान्य दस्तावेजीकरण कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार कर सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाता है ताकि पारस्परिक समझ एवं योगदान से सांस्कृतिक समृद्धि का कोष पल्लवित होता रहे। भारत ने 14 नवम्बर, 1977 को विश्व धरोहर सम्मेलन के प्रस्तावों को स्वीकार किया था। किसी धरोहर को सूची में आने के लिए निर्धारित दस मानदंडों में से न्यूनतम एक मानदंड को पूरा करना होता है। सर्वप्रथम सदस्य देश अपनी धरोहर को अस्थायी सूची में पंजीकरण हेतु आवेदन करते हैं, तत्पश्चात् वार्षिक बैठक में विचार-विमर्श से निर्णय लेकर घोषणा की जाती है।
यूनेस्को द्वारा धरोहरों का संरक्षण मानवता के लिए अप्रतिम योगदान है, जिससे काल के प्रवाह से इन महत्वपूर्ण स्थलों को बचाकर आगामी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता रहेगा और अपनी विरासत पर गर्व करने के पल सहज प्राप्त होते रहेंगे।
(लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ.प्र. के संस्थापक हैं।)
