शतरंज केवल खेल नहीं, जीवन को गढ़ने की कला है: हेमंत खुटे

0
cfdcdsxde
बीजू पटनायक
 
               शतरंज केवल बिसात पर खेले जाने वाला खेल ही नहीं है बल्कि  तार्किक सोच,धैर्य और सही निर्णय लेने की जीवन – कला है। उक्त बातें शतरंज के राष्ट्रीय खिलाड़ी, निर्णायक, कोच,  मैनेजर, ऑर्गेनाइजर,लेखक, स्तंभकार , खेल समीक्षक व  छत्तीसगढ़ प्रदेश शतरंज संघ के राज्य सचिव हेमंत खुटे ने भेंटवार्ता के दौरान कही।
             हेमंत खुटे ने शतरंज खेल को शहरों से निकालकर ग्रामीण अंचल एवं शासकीय विद्यालयों तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास किया है। शतरंज की पाठशाला, शतरंज सम्राट पत्रिका, खेल क्षितिज ,शतरंज गीत, नाइट चेस क्लब और चेस इन स्कूल्स  जैसी पहलों के माध्यम से 4000 से अधिक बच्चों को निशुल्क शतरंज प्रशिक्षण देकर शतरंज के क्षेत्र में एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
       समाचार पत्रों में शतरंज पहेली , कॉम्बिनेशन,शतरंज की जादुई बाजी, ग्रेडमास्टरों ने कैसे खेला जैसे लोकप्रिय स्तंभों के माध्यम से उन्होंने शतरंज को आम पाठकों तक सरल और रोचक रूप में पहुँचाया।
            प्रस्तुत है शतरंज के माध्यम से स्कूली बच्चों में सोच, अनुशासन और आत्मविश्वास का निर्माण करने वाले हेमंत  खुटे से विशेष बातचीत के प्रमुख  अंश
 
 *शतरंज से आपका जुड़ाव कब और कैसे  हुआ ?  कोई  टर्निंग प्वाइंट जिससे आपको लगा कि यही आपके जीवन का उद्‌देश्य है।* 
 
 सन 1992 में बिलासपुर में  जब मैं वहां पढ़ रहा था  तो मेरे एक मित्र ने मुझे शतरंज खेल से परिचय कराया। जब शतरंज के दांव-पेंच को समझा तो शतरंज के खेल में पूरी तरह से रम गया । इसी तरह से वर्ष 1995 में जब मैं कॉलेज में पढ़ाई  कर रहा था उन दिनों  महाविद्यालयीन स्तर पर शतरंज की प्रतियोगिता हो रही थी। मैने भी हिस्सा लिया था । जब फाइनल मुकाबला चल रहा था तभी  मैंने अपने प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को बोर्ड पर शानदार मात दी थी लेकिन अफसोस की बात ये थी कि  उन्होंने हार स्वीकार करने के  बजाय  शतरंज का नया नियम लागू कर  दिया । उनका मानना था कि विषम परिस्थिति में पूरे खेल के दरमियान राजा  ढाई घर चल सकता है  और इस तरह से नियम की आड़ में अपने राजा को मात की जगह से हटा लिया। मैने जब इस तरह की ऊटपटांग (अवैधानिक) चाल  पर आपत्ति करते हुए टूर्नामेंट डायरेक्टर को अवगत कराया तब उन्होंने नियमों की  जानकारी के अभाव में मेरे प्रतिद्वंदी खिलाड़ी का साथ देते हुए उनके पक्ष में निर्णय  दे दिया। इस तरह से उस गेम को मैं हार गया। उसी समय से मैंने ठान लिया कि  लोगों को अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के साथ विधिवत शतरंज खेलना सीखाऊँगा। यही मेरे शतरंज कैरियर का टर्निंग प्वाइंट था। आगे चलकर मैंने 1997 में विज्ञान सभा शतरंज क्लब तथा 1999 में जिला शतरंज संघ महासमुंद का  गठन कर शतरंज का निशुल्क प्रशिक्षण व शतरंज चयन स्पर्धाओं का आयोजन करना प्रारंभ कर दिया।
 
 *खिलाड़ी, कोच, निर्णायक और  राज्य शतरंज संघ के सचिव इन सभी भूमिकाओं को एक साथ निभाने की सबसे बड़ी चुनौती क्या रही है ?* 
 
हर भूमिका की अलग जिम्मेदारी  होती है। खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा करता है, कोच दिशा देता है। निर्णायक निष्पक्षता निभाता है। लेखन से शतरंज  आम लोगों तक पहुंचता है। संघ का कार्य खिलाड़ि‌यों को मंच प्रदान करना होता है। इन सबमें संतुलन बनाना वाकई चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यही विविधता मुझे निरंतर सीखने की प्रेरणा देती है।
 
 *शतरंज की पाठशाला, चेस इन स्कूल्स व शतरंज को आपने विद्यालय में एक कालखंड के रूप में समावेश किया ?  इसके पीछे कोई विशेष प्रयोजन ।* 
            शतरंज न केवल बौद्धिक कौशल को बढ़ाता है बल्कि यह संस्कार और जीवन के मूल्य भी सिखाता है। शतरंज खेलने से स्कूली बच्चों में गणित व विज्ञान विषय पर पकड़ मजबूत होती है। शतरंज को विषय की तरह पढ़ाने से बच्चों की तार्किक सोच, एकाग्रता और निर्णय क्षमता मजबूत होती है
 
 *मासिक खेल पत्रिका शतरंज सम्राट  के आप नियमित स्तंभकार है। इस पत्रिका हेतु आपने कार्यकारी संपादक  के रूप में भी लंबे अरसे से निशुल्क योगदान दिया है। साथ ही राज्य के कई समाचार पत्रों  में शतरंज पहेली, ग्रैंडमास्टरों ने कैसे खेला , शतरंज की जादुई बाजी जैसे लोकप्रिय स्तंभ के  स्तंभकार रहे हैं। इसके अलावा  शतरंज खेल पर आपके आलेख  राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित होते रहे हैं। लेखन कार्य करते समय आपकी लेखकीय दृष्टि क्या रखती है ?* 
          मेरा हमेशा यही प्रयास रहा है कि शतरंज आम पाठकों तक सरल और रोचक रूप में पहुँचे। शतरंज पहेलियों से तार्किक सोच तथा ग्रेडमास्टरों की बाजियों से रणनीतिक समझ विकसित होती है। जटिलता को सरल बनाना ही मेरी लेखन शैली का आधार है।
 
 *बतौर आर्गेनाइजर आपने कई राज्य व राष्ट्रीय शतरंज टूनामेंट का आयोजन किया है तथा आपने शतरंज पर गीत भी बनाया है। 33 वर्षों से शतरंज खेल को जन –  जन तक  पहुंचाने में आप समर्पण भाव से जुटे हुए है। इस यात्रा को आप किस तरह देखते हैं।* 
 
गीत के माध्यम से बच्चों तक शतरंज का संदेश सरल और आनंददायक ढंग से पहुँचे इसी उद्देश्य से यह गीत मैंने बनाया है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। 
शतरंज की टूर्नामेंट  या चयन स्पर्धा केवल मुकाबले एक सीमित नहीं होती है बल्कि यह खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने का सशक्त माध्यम है। 
          चयन स्पर्धाएँ छिपी हुई प्रतिभाओं को सामने लाती है जिससे योग्य खिलाड़ियों को जिला, राज्य और  राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचने का अवसर मिलता है। 
      33 वर्षों से शतरंज के साथ चला यह पूरा सफर मेरे जीवन की सबसे सुखद और अर्थपूर्ण यात्राओं में से एक रहा है। आगे भी यह सफर जारी रहेगा।
 
 *नवोदित शतरंज खिलाड़ियो, अभिभावकों, विद्याथियों और शिक्षकों के लिये आप क्या संदेश देना चाहेंगे?* 
 
                       शतरंज बच्चों को चिंतनशील, दूरदर्शी,
अनुशासित व आत्मनिर्भर बनाता है। जरूरी नहीं कि शतरंज खेलने वाला हर खिलाड़ी विश्व चैंपियन ही बने। मैं अभिभावकों  से एकमात्र  यही अपील करना  चाहूंगा हूं कि शतरंज खेलने के फायदे को दृष्टिगत  रखते हुए  अपने बच्चों को शतरंज के लिये हमेशा प्रेरित करते रहें।  इसी तरह से शिक्षकों से भी  मेरा आग्रह कि वे भी  शतरंज शिक्षा का हिस्सा बने तथा राष्ट्र निर्माण में योगदान देते हुए बेहतर नागरिक का निर्माण करें। विद्यार्थियों के लिए मेरा संदेश है कि शतरंज को केवल मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि एक खेल के रूप में खेलें। शतरंज की सबसे  बड़ी खासियत इसे खेलने से एकाग्रता, तार्किक सोच, धैर्य और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होती है इसलिए इसे अपने विद्यालय में नियमित रूप से खेलें। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *