बेंगलुरु, 27 दिसंबर (भाषा) कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खरगे ने शनिवार को केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि उसने संसद में बिना किसी चर्चा के ‘विकसित भारत- जी राम जी’ विधेयक पारित करके मनरेगा को प्रभावी रूप से ‘‘निरस्त’’ कर दिया, जिससे ग्रामीणों को उनकी आजीविका की गारंटी वाले अधिकार से वंचित कर दिया गया है।
ग्रामीण विकास एवं पंचायत राज मंत्री ने यहां प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि यह नया कानून मौजूदा रोजगार गारंटी ढांचे में सुधार, सरलीकरण या उसे मजबूत नहीं करता है।
उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार ने न तो मनरेगा में सुधार किया है, न ही इसे सरल बनाया है और न ही इसे मजबूत किया है। स्पष्ट रूप से, मनरेगा को निरस्त कर दिया गया है। यदि आप विधेयक पढ़ेंगे तो उसमें लिखा है कि मनरेगा और इसकी सभी अधिसूचनाएं निरस्त की जाती हैं।’’
मंत्री ने कहा कि पिछले 19 वर्षों से, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम एक मांग-आधारित रोजगार गारंटी योजना के रूप में कार्य कर रहा था, जिसने ग्रामीण भारत में आजीविका के लिए एक सुरक्षा कवच प्रदान किया था।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘लगभग दो दशकों तक, इस अधिनियम ने ग्रामीण परिवारों को आजीविका की गारंटी दी। आज, नरेन्द्र मोदी सरकार ने वह गारंटी छीन ली है।’’
प्रियंक खरगे ने कहा कि मांग-आधारित अधिकार को आपूर्ति-आधारित योजना में बदलकर एक मौलिक बदलाव किया गया है।
उन्होंने कहा, ‘‘पहले, अगर मेरे पास नौकरी की गारंटी वाला कार्ड होता, तो मैं राज्य में कहीं भी काम मांग सकता था। अब, मुझे काम तभी मिलेगा जब इसकी सूचना दी जाएगी। यह अब कोई अधिकार नहीं रह गया है।’’
मंत्री ने आरोप लगाया कि नये कानून ने भारतीय संविधान के तहत संरक्षित तीन मौलिक अधिकारों को प्रभावी रूप से छीन लिया है।
उन्होंने कहा, ‘‘पहला, यह आजीविका के अधिकार को छीनता है। दूसरा, यह पंचायत राज व्यवस्था के तहत विकेंद्रीकरण करने की पंचायतों की शक्तियों को छीन लेता है। तीसरा, यह राज्य सरकारों से परामर्श किए बिना उन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालता है।’’