अपनी अलग पहचान बनाए भजनलाल सरकार

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मानना पड़ेगा कि भजनलाल सरकार इन दो साल में ऐसा कोई काम नहीं कर सकी जिससे उसकी छवि केन्द्र की छाया से निकल कर व्यक्तिगत 

हचान वाली बन सके। मुख्यमंत्री भजनलाल को इसकी चिंता अवश्य करनी चाहिए। सरकार को विजनरी लीडरशिप की पहचान देनी वाली फ्लैगशिप योजनाएं, मिशन लॉन्च करने ही होंगे। लोकतंत्र का आज का राजनीतिक दौर परसेप्शन का ही है। जो परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ गया, वास्तविक लड़ाई में उसकी राह बेहद कठिन हो जाती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शुभचिंतकों के स्वर सीएम भजनलाल तक पहुंचेंगे। 

रसोई गैस में 867 करोड़ की सब्सिडी, 1.53 लाख पदों पर नई भर्तियां, अनुप्रति कोचिंग योजना में  31127 विद्यार्थी लाभान्वित, खाद्य सुरक्षा योजना में 70 लाख नए नाम जोड़े, बिजली बिलों में साढ़े44 हजार करोड़ का अनुदान, घुमन्तु परिवारों को 22323 पट्टे वितरित, छात्राओं को 39664 स्कूटी वितरित वगैरह- वगैरह….! मीडिया में राजस्थान सरकार के विज्ञापनों में ऐसी ही उपलब्धियां भरी पड़ी हैं। सरकार की विकास पुस्तिका में भी फ्लैगशिप योजनाओं के स्तम्भ में सडक़, कृषि सिंचाई, आयुष्मान भारत, स्वनिधि और जनजीवन मिशन जैसी विरासती रुटीन जॉब योजनाओं का उल्लेख है। क्या ये उपलब्धियां किसी लोकतांत्रिक सरकार के लिए वापस चुनाव में जाने के लिए पर्याप्त विजनरी विकास के आयाम के रूप में उपयोगी हो सकती हैं। खासकर तब जबकि इनमें से ज्यादातर या तो अपनी सहोदरा केन्द्रीय सरकार प्रवर्तित योजनाए हों अथवा पूर्ववर्तियों से विरासत में मिली हुई? शायद ही कोई राजनीतिक विश्लेषक इसके समर्थन में मत व्यक्त करे। 

जी हां, प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की भजनलाल सरकार ने 15 दिसंबर को अपने कार्यकाल के दो साल पूरे किए हैं। सरकार जश्न में डूबी है लेकिन अखबारी और मीडिया विज्ञापनों को छोड़ इस अवसर को टॉकिंग प्वाइंट नहीं बना पाई।  मीडिया संस्थानों के फीडबैक सर्वेक्षणों में भी आमजन के रुझान के मुताबिक सरकार का औसत कार्यकाल ही सामने आया है। सरकार की ओर से जारी विज्ञापनों और विकास पुस्तिकाओं को भी खंगालें तो खाद्य सुरक्षा, बालिका प्रोत्साहन, सरकारी भर्तियां, किसान सम्मान निधि, पीएम कुसुम, पीएम सूर्य घर आदि योजनाओं के लाभार्थियों को ही उपलब्धियों में दर्शाया गया है। इनमें भी ज्यादातर केन्द्र प्रायोजित योजनाएं हैं अथवा रूटीन जॉब! उज्ज्वला के लाभार्थियों को चार सौ पचास रुपए में गैस सिलेण्डर के निर्णय के अलावा इनमें राज्य सरकार को विशेष पहचान दिलाने जैसी कोई उपलब्धि नहीं दिखती और, शिक्षा व पंचायतराज मंत्री विभाग के मंत्री मदन दिलावर को अपवाद स्वरूप छेाड़ दें तो कोई विभाग या मंत्री जनता में विशिष्ट कामकाजी पहचान नहीं बना पाया, सरकार बदलने का अहसास जनता को नहीं करा पाया। 

लोकतंत्र में कोई भी सरकार हो, अपनी अलग छाप उसे स्थापित करनी ही होती है। ये छाप छूटती है उसकी अपनी महत्वाकांक्षी और जनकल्याणकारी योजनाओं से । ऐसी योजनाएं जो उस सरकार की ध्वजवाहक बनती हैं, यानी फ्लैगशिप योजनाएं। मोदी सरकार की स्वच्छ भारत मिशन, जनधन योजना, लखपति दीदी समेत तमाम दर्जनों योजनाएं, अटलजी की प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना, मनमोहन सरकार की मनरेगा योजना, वसुंधरा राजे की भामाशाह योजना, आई स्टार्ट, अशोक गहलोत की चिरंजीवी, शिवराजसिंह चौहान की लाड़ली बहना, आदि आदि इन नेतृत्वकर्ताओं की सरकारों के ध्वजवाहक मॉडल हैं।  प्रत्येक शासन की एक दर्जन से अधिक ऐसी योजनाएं रहती आई हैं जिनकी चर्चा आमजन जुबां पर होती हैं, जिन्हें उस शासन की यूएसपी माना जा सकता है। उत्तरप्रदेश में बाबा योगी आदित्यनाथ और असम में हिमंता बिस्व सरमा ने तो अपना अलग शासन मॉडल स्थापित कर लिया है जिनकी चर्चा देशभर में है। राजस्थान की भजनलाल सरकार की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि दो साल में ये अपनी कोई फ्लैगशिप योजना नहीं ला पाई। केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं पर आश्रित है। ये जरूर है कि आंकड़ों के मुताबिक योजनाओं के क्रियान्वयन में ग्रोथ दिख रही है लेकिन फ्लैगशिप योजनाएं सरकार को अपनी पहचान दिलाती है। इनके अभाव में सरकार के नेतृत्व के विरुद्ध विजनलेस होने की धारणाएं जनता में बलवती होने लगती हैं और ऐसी धारणाएं किसी भी सरकार के लिए चिंता की ही बात होती है। 

भजनलाल शर्मा ने राज्य की बागडोर संभालने के साथ ही अपराध मुक्त राजस्थान का नारा दिया था लेकिन दो साल में भरतपुर जिले में चले एंटी वायरस ऑपरेशन को छोड़ दें तो इसके अलावा आपराधिक तत्वों के खिलाफ ऐसा कोई प्रदेश व्यापी मिशन लॉन्च नहीं हुआ कि देश-प्रदेश में टॉकिंग प्वांट बन सके। हां, पुलिस की गिरफ्त में आने वाले अपराधी लंगड़ाते अवश्य चल रहे हैं लेकिन अपराधियों में खौफ जैसा कहीं कुछ नहीं दिखता। सरेराह जघन्य अपराध कारित हो रहे हैं। 

यहां राज्य शासन को अच्छा या बुरा होने का तमगा देने का कतई मंतव्य नहीं लेकिन 

मानना ही पड़ेगा कि भजनलाल सरकार इन दो साल में ऐसा कोई काम नहीं कर सकी 

जिससे उसकी छवि केन्द्र की छाया से निकल कर व्यक्तिगत पहचान वाली बन सके। मुख्यमंत्री भजनलाल को इसकी चिंता अवश्य करनी चाहिए। जरूरत हो तो अपनी टीम में बदलाव करें लेकिन सरकार को विजनरी लीडरशिप की 

पहचान देनी वाली फ्लैगशिप योजनाएं, मिशन लॉन्च करने ही होंगे। अब भी समय है, सही समय है। औसत कामकाज की छवि से निकलकर फ्रंटफुट प्लेयर की तरह खेलना होगा। वक्त और निकल गया तो ध्यान रहे, लोकतंत्र का आज का दौर परसेप्शन का ही है। जो परसेप्शन की लड़ाई में पिछड़ गया, वास्तविक लड़ाई में उसकी राह बेहद कठिन

 हो जाती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शुभचिंतकों के स्वर सीएम भजनलाल तक पहुंचेंगे।

धीतेन्द्र कुमार शर्मा

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