आप भी बुन सकती हैं आकर्षक स्वेटर

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सर्दी का मौसम स्वेटर बुनाई का मौसम भी होता है। इस मौसम के आने से पहले ही महिलाएं बुनाई करने में जुट जाती हैं। इस मौसम में रंग-बिरंगे स्वेटरों की बहार आ जाती है। बुनाई भी एक कला है। जितनी बार बुनाई की जाती है, उतनी ही अधिक सुंदरता आती है। अभ्यास द्वारा इसे और अधिक निखारा जा सकता है।
यूं तो बाजार में सुंदर से सुंदर नमूनों वाला स्वेटर मिल जाता है किंतु वे इतने अधिक महंगे होते हैं कि सामान्य व्यक्ति की क्रय शक्ति से बहुत दूर होते हैं। इनके रख-रखाव में भी अनेक मुश्किलें आती हैं किंतु घर में बुने गए स्वेटरों में ये दिक्कतें नहीं आती। घर में बुने गए स्वेटर को फिर से उधेड़कर स्वेटर, टोपी, मोजे आदि भी बनाये जा सकते हैं।
स्वेटर की बुनाई में कुछ सावधानियां बरती जाएं तो ऊनी परिधानों को आकर्षक बनाया जा सकता है। यह शौक मनोरंजन प्रदान करने के साथ ही समय काटने का भी उत्तम साधन है। अच्छे स्वेटरों का निर्माण करके उन्हें बेचा भी जा सकता है। आइये, स्वेटर बुनने से संबंधित कुछ आवश्यक बातों की जानकारियां हासिल करें-
 जब भी आप ऊन खरीदें, लेबल देखकर ही खरीदें। ऊन खरीदते समय शेड नम्बर अवश्य देख लें ताकि सारे गोले एक ही शेड नम्बर के हों।
 अगर आप दो रंगों के स्वेटर बुनना चाहती हैं, तो दोनों ही रंग के ऊन कैशमिलॉन ही खरीदें क्योंकि कैशमिलॉन के ऊन का रंग नहीं निकलता और धोने पर खराब नहीं होता। दो रंगों  का चुनाव करते समय सभी रंगों का एक धागा लेकर आपस में बल देकर यह देख लें कि ये रंग आपस में ठीक से मेल खा रहे हैं या नहीं?
 मोटे ऊन के लिए मोटी सलाई तथा पतले ऊन के लिए पतली सलाई का ही प्रयोग करें। सलाई अच्छी एवं प्रसिद्ध कम्पनी की ही खरीदें क्योंकि इससे अच्छी बुनाई होती है।
 अगर आपकी समझ में यह नहीं आ रहा कि ऊन कितनी लेनी है तो जिस नाप का स्वेटर बनाना हो, उस नाप के स्वेटर के वजन से सौ ग्राम अधिक ऊन तुलवाकर ले लें।
 फंदे न तो अधिक कसे डालें और न अधिक ढीले ही। दोहरे फंदे डालने से किनारा अच्छा लगता है। कभी भी गीले हाथ से बुनाई न करें। सलाई कभी भी अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए।
 ऊन का जोड़ सलाई के सिरे पर ही लगायें, क्योंकि सलाई के बीच में गांठ आने से बुनाई में सफाई नहीं आती।
 बुनाई में सफाई व खूबसूरती झलकाने में हाथों की कारीगरी के साथ-साथ अच्छी गुणवत्ता की व एकदम सीधी व सही नोंक की सलाई का योगदान रहता है, इसलिए सलाइयों को कभी भी जूड़े में फंसा कर न रखें और न ही इससे सिर खुजलायें।
 डिजाइन का निश्चय पहली सलाई से ही कर लें। एक भी फंदा इधर-उधर होने से स्वेटर की खूबसूरती नष्ट हो जाती है। पहली बुनाई के शुरू में जितने फंदे जैसे डिजाइन के हैं, अथवा सादे हैं, बिलकुल वैसे ही फंदों को अन्त तक डालना चाहिए।
 बच्चों की त्वचा बेहद नाजुक होती है। उनके लिए सभी सामान स्वेटर, मोजा, टोपी आदि बेबी ऊन से ही बनाना चाहिए। बच्चों के स्वेटर के कंधों पर किसी प्रकार का बटन न लगाकर जापानी रिबन ही बांधंे, क्योंकि बटन बच्चों के शरीर में चुभ सकते हैं। बेहतर यही होता है कि पट्टी वाला गला ही बनाया जाए।
 बच्चों के स्वेटर बोनट या बूटीस में ऊन की डोरी बनाकर नहीं डालना चाहिए और न ही फुंदना लगाना चाहिए क्योंकि बच्चे इसे मुंह में डालकर चूसने लगते हैं जिससे ऊन का रोयां मुंह के अन्दर गले में जाकर फंस सकता है।
 स्वेटर को हमेशा अच्छे तरल डिटर्जेंट से ही धोना चाहिए। धोने के बाद सीधा न लटकाकर किसी समतल जगह पर कड़ी धूप में ही सुखाएं। स्वेटर को उल्टा करके ही धूप में डालें।
 अगर स्वेटर का रंग छूटने का संदेह हो तो उसे नमक मिले पानी में कुछ देर डुबोकर रखने के बाद ही धोएं। इससे कम रंग निकलता है। स्वेटर सुखाते समय उस पर हल्का मलमल का कपड़ा डाल दें। इससे धूप के कारण रंग नहीं उड़ता।
 स्वेटर को प्रेस करते समय कागज या पतला कपड़ा रखकर ही प्रेस करें। इससे स्वेटर जलने का भय नहीं रहता है।
 बिना धुले स्वेटर को नहीं रखना चाहिए। इसमें कीड़े या सिल्वर फिश कीड़ा बहुत जल्दी लग जाता है। अगर स्वेटर के बीच नैफथेलीन की गोलियां रख दी जाएं तो वे सुरक्षित रहते हैं।
 नैफथेलीन की गोलियों को किसी कपड़े की पोटली में बांधकर ही स्वेटर के बीच में रखना चाहिए। नैफथेलीन की गोलियां न मिलें तो पोटली में कपूर को भी बांधकर रखा जा सकता है। इस प्रकार स्वेटरों की बुनाई और हिफाजत का ध्यान रखकर  इन्हें अनेक वर्षों तक इस्तेमाल लायक बनाया जा सकता है।

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