रामायण मेँ शत्रुघ्न की भूमिका – कहाँ पूजनीय

0
thumb_555_052320050004

रामायण में शत्रुघ्न की मुख्य भूमिका अपने भाई भरत के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और सेवा थी।.. उन्होंने भरत के साथ ननिहाल यात्रा की और बाद में, भरत के अयोध्या लौटकर शासन संभालने तक, उन्होंने अयोध्या की रक्षा और शासन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

 इसके अतिरिक्त, राम के आदेश पर उन्होंने मथुरा के अत्याचारी राजा लवणासुर का वध किया जो उनकी वीरता और धर्मपरायणता को दर्शाता है.

 

शत्रुघ्न की प्रमुख भूमिकाएँ:

भरत के प्रति निष्ठा: बचपन से ही शत्रुघ्न भरत के प्रति समर्पित थे और उनकी सेवा में ही अपना जीवन समर्पित किया। जब भरत को राजा बनाया गया, तो शत्रुघ्न ने भी उनके साथ ननिहाल जाने का फैसला किया और उनकी सेवा की.

अयोध्या की रक्षा: राम के वनवास के दौरान, जब भरत ने अयोध्या के राजपाट को स्वीकार नहीं किया, तब शत्रुघ्न ने भरत के कहने पर 14 वर्षों तक अयोध्या की रक्षा की और राजकाज संभाला.

लवणासुर का वध: रावण के भतीजे, मथुरा के राक्षस राजा लवणासुर का वध करना शत्रुघ्न के जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। राम के आदेश पर, उन्होंने यह कार्य किया और धरती को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया.

एक शांत और शक्तिशाली योद्धा: शत्रुघ्न एक कुशल योद्धा थे, लेकिन वे अक्सर अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं करते थे क्योंकि वे राम और भरत के प्रति समर्पित थे.

 उनके इस शांत स्वभाव के कारण, उन्हें अक्सर “मौन योद्धा” कहा जाता है.

रामायण में शत्रुघ्न की भूमिका कम प्रमुख होने के कई कारण हैं: वह भरत के प्रति अत्यंत समर्पित थे, उन्होंने अयोध्या के शासन और माताओं की देखभाल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और रामायण का मुख्य ध्यान राम के जीवन पर था. इसके अतिरिक्त, उनका सबसे महत्वपूर्ण कार्य लवणासुर का वध करना था, जिसका वर्णन रामायण के उत्तर कांड में मिलता है.

शत्रुघ्न के कम मुखर होने के कारण

समर्पण और कर्तव्य: शत्रुघ्न ने अपना जीवन भरत की सेवा और उनकी अनुपस्थिति में अयोध्या के कुशल प्रशासन में समर्पित कर दिया था.

माताओं की देखभाल: वनवास के दौरान, शत्रुघ्न ने अपनी माताओं और अयोध्या की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाली.

राम पर मुख्य ध्यान: रामायण का प्राथमिक उद्देश्य राम के जीवन को चित्रित करना है, इसलिए अन्य पात्रों की भूमिकाएँ कहानी के मुख्य प्रवाह के अनुसार सीमित हैं.

अतिरिक्त योगदान: उन्होंने लवणासुर को मारकर मथुरा की स्थापना की, जो एक महत्वपूर्ण सैन्य और राजनीतिक उपलब्धि थी.

 हालांकि, रामायण की मुख्य कथा युद्धों और वनवास पर केंद्रित थी, इसलिए शत्रुघ्न के इस कार्य को कम उजागर किया गया.

शांत स्वभाव: उन्हें एक शांत और धर्म-नीति पर अडिग व्यक्ति के रूप में चित्रित किया गया है, जो वीरता को संयमित जीवन में छिपाकर रखते थे.

यह कहना कि शत्रुघ्न मुखर नहीं थे, उनके शांत स्वभाव और कर्तव्यपरायणता को अनदेखा करना होगा। उनकी भूमिका चुपचाप, लेकिन पूरी निष्ठा और बहादुरी से निभाई गई.

 

 

शत्रुघ्न ने रावण के साथ युद्ध इसलिए नहीं लड़ा क्योंकि वह उस समय राम के आदेश पर अयोध्या की सुरक्षा और प्रशासन का ध्यान रख रहे थे। रामायण के अनुसार, शत्रुघ्न को चित्रकूट में ही रोका गया था और उन्हें भरत के साथ मिलकर अयोध्या की रक्षा करने का कार्य सौंपा गया था। राम ने उन्हें लक्ष्मण के साथ जाने की अनुमति नहीं दी, और बाद में जब राम लंका युद्ध से लौटे, तो शत्रुघ्न और भरत ने मिलकर रामराज्य को स्थापित करने में मदद की.

अयोध्या की सुरक्षा: जब राम वनवास गए, तो भरत और शत्रुघ्न ने अयोध्या में शासन और सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली.

राम के आदेश: राम ने शत्रुघ्न को अपने साथ युद्ध में ले जाने की अनुमति नहीं दी थी, क्योंकि उन्हें अयोध्या में ही रहने का आदेश था.

अन्य भूमिका: बाद में, शत्रुघ्न को लवणासुर (रावण के भतीजे) के वध के लिए भेजा गया, जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया.

अश्वमेध यज्ञ में योगदान: राम के शासनकाल के बाद, शत्रुघ्न और भरत ने मिलकर रामराज्य को स्थापित करने में मदद की और अश्वमेध यज्ञ जैसे अनुष्ठानों में सहायता की.

 

राम राज्य के दौरान, शत्रुघ्न ने कई आधिकारिक भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें भरत के बाद 14 वर्षों तक अयोध्या का शासन संभालना, राम के दूत के रूप में काम करना और मथुरा में लवणासुर का वध करना शामिल है. वे अयोध्या के शासक बने और राम के राज्य के प्रति एक निष्ठावान अधिकारी के रूप में काम किया.

अयोध्या का शासन: राम के वनवास के दौरान, शत्रुघ्न ने लगभग 14 वर्षों तक भरत के निर्देश पर अयोध्या के शासन का कार्यभार संभाला.

राम के दूत: राम के राज्य में वापस आने पर, शत्रुघ्न को उनके दूत के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया गया.

मथुरा के शासक: लवणासुर के वध के बाद, शत्रुघ्न को मथुरा का शासक बनाया गया.

 

राम दरबार मूर्तियों में, शत्रुघ्न की प्रतिमा भगवान राम और माता सीता के पीछे, लक्ष्मण के साथ विराजमान होती है। आमतौर पर, लक्ष्मण और शत्रुघ्न की मूर्तियाँ भगवान राम और सीता के सिंहासन के पीछे स्थापित की जाती हैं.

स्थान: भगवान राम और माता सीता के पीछे।.

स्थिति: लक्ष्मण के साथ खड़े हुए या बैठे हुए.

अन्य भाई: भरत और शत्रुघ्न सिंहासन के पीछे स्थापित किए जाते हैं जबकि हनुमान और लक्ष्मण भगवान के सामने बैठे होते हैं.

 

 

शत्रुघ्न भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र और शंख के अवतार माने जाते हैं, जबकि उनके भाई भरत चक्र के अवतार थे। शत्रुघ्न का मंदिर ऋषिकेश (उत्तराखंड) में रामझूला के पास गंगा तट पर स्थित है और एक अन्य मंदिर त्रिशूर (केरल) में है.

शत्रुघ्न के अवतार

विष्णु के चक्र और शंख: शत्रुघ्न को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र और शंख का अवतार माना जाता है.

लवणासुर का वध: त्रेतायुग में उन्होंने लवणासुर नामक राक्षस का वध किया था, जो मधुवन में यज्ञ और पूजा पाठ करने वाले साधुओं को परेशान करता था।

मंदिर

ऋषिकेश, उत्तराखंड:

यह मंदिर ऋषिकेश में, रामझूला के पास गंगा तट पर स्थित है।

इसे ‘आदि बद्री नारायण और शत्रुघ्न मंदिर’ भी कहा जाता है.

मान्यता है कि शत्रुघ्न ने यहां मौन तपस्या की थी.

त्रिशूर, केरल:

एक अन्य शत्रुघ्न मंदिर केरल के त्रिशूर जिले में है।.

 

चंद्र मोहन

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *