बेअसर दवाइयां खाते जा रहे हैं हम

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स्वास्थ एव परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं की समीक्षा के लिए एक ’नेशनल मैक्रोइकोनोमिक्स एण्ड हेल्थ कमीशन‘ बनाया। इस कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली 25 दवाओं में से 10 दवाएं न केवल गैर जरूरी और अवैज्ञानिक हैं बल्कि नुकसानदेह भी हैं। इन दवाओं में लिवर की दवा लिव-52 व अति लोकप्रिय एण्टासिड दवा डाइजीन भी हैं।
देखा जाये तो ये दवाएं हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा बन चुकी हैं। इनमें से कुछ दवाएं खांसी और खून संबंधी टानिक भी थी। एक अजीब बात यह है कि बहुत सी दवाएं दूसरे देशों में प्रतिबंधित हैं मगर भारत में खुले आम बिकती हैं। इन्हें बनाने वाली
कम्पनियां राज्यों के दवा नियंत्राकों से वितरण का लाइसेंस प्राप्त कर लेती हैं और विज्ञापनों के बल पर इन्हें बेचती रहती हैं।
यदि आप अपने स्वास्थ्य और जेब को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते तो आप इस प्रकार की विज्ञापनी दवाओं से यथा सम्भव दूर रहे।
कई घातक बीमारियों से बचाता है मशरूम
वैसे तो मशरूम को स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता रहा है किन्तु अब यह वैज्ञानिक खोजों से भी सिद्ध हो गया है कि खाद्य विज्ञान में शोध करने वाले वैज्ञानिक जोय डुबोस्ट और उनके सहयोगियों ने अपने शोध के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला है कि मशरूम की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रजाति पोर्टा बेलास और क्रिमिनस में एक एण्टी ऑक्सीडेंट इर्गोथयोनीन मौजूद है जो जटिल बीमारियों से छुटकारा दिलाने में लाभप्रद है। वैज्ञानिकों के अनुसार सफेद धारियों वाले मशरूम में गेहूं की तुलना में 12 गुणा अधिक एण्टी आक्सीडेंट होते हैं। अतः अब से मशरूम को अपने भोजन का नियमित अंग बना लीजिए।
घातक हो सकता है लम्बे समय तक लेटे रहना
कई बार मजबूरी में किसी रोग के कारण घर में या अस्पताल में मरीज को लम्बे समय तक लेटे रहना पड़ सकता है किंतु यह काफी खतरनाक हो सकता है क्योंकि पांवांे के लगातार स्थिर रहने के कारण नसों में बने खून के थक्के फेफड़े में पहुंच कर आदमी की जान ले सकते हैं।
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के वस्कुलर सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. राजीव पारिक के अनुसार उन्होंने अस्पताल के ओ. पी. डी. में आए 1450 मरीजों के फेफड़ों की जांच की जिनके पांव सूजे हुए थे। इनमें से 756 मरीजों में डीप वेन थ्रॉम्बोसिस की पुष्टि हुईे। इनमें 432 मरीज ऐसे थे जिनके फेफड़ों में खून के धक्के पहुंच चुके थे। इनमें कई मरीज ऐसे थे जो 10-15 साल पहले अस्पताल में कई दिनों तक भर्ती रहे थे। तभी से उनके पांव सूजे हुए थे।
डॉ. का कहना है कि अस्पताल में या घर में लेटे हुए हर मरीज को खून पतला करने की सुई देकर इस जोखिम को टाला जा सकता है।
शोर से भी बढ़ती हैं मानसिक बीमारियां
शोर हमारे कानों के लिए घातक है ही, हमें कई मानसिक बीमारियां भी दे सकता है। एक और आधुनिक जीवन और बदली जीवन शैली के तनाव और दूसरी ओर ओर शोर भरा वातावरण भी काफी हैं मनुष्य को मानसिक रोगों से ग्रस्त करने के लिए।
शोर प्रदूषण पर आयोजित एक कार्यशाला में बोलते हुए मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर ए. के अग्रवाल ने कहा कि बढ़ती उम्र में तो लोगों की श्रवण शक्ति कम होती जाती है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों में श्रवण शक्ति 70-75 साल की उम्र में कम होती है किंतु भारत में इतना शोर प्रदूषण है कि यहां लोगों की श्रवण श्ािक्त 55-60 साल की उम्र में ही कम हो जाती है।
डॉ. अग्रवाल ने सलाह दी कि लोगों को समझना चाहिए कि शोर प्रदूषण उनके लिए खराब है, अतः जिस कार्यवाही में शोर हो, उसे खत्म करें। यदि जेनरेटर लगाना हो तो ऐसा जेनरेटर लगाएं कि जिसमें शोर न होता हो। यदि आपके कार्य स्थल पर किसी मशीन का शोर है तो ईयर प्लग लगाएं।
वैसे भारत में शादी विवाह के समय प्रयोग होने वाले डीजे और जागरण में प्रयोग होने वाले लाउड स्पीकर भी इसके लिए कम दोषी नहीं हैं। दिल्ली पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त कमर अहमद का कहना था कि धार्मिक समारोहों और शादी विवाह में ऊंची आवाज में बजने वाले लाउडस्पीकरों का स्थानीय निवासी विरोध कर सकते हैं। उनका कहना था कि साउड डी. बी. 40 डी. बी से अधिक नहीं होने चाहिए। इससे अधिक होने पर पुलिस को कार्यवाही करनी चाहिए। उनके अनुसार हर सहायक पुलिस आयुक्त को शोर नापने वाले मीटर दिये गए हैं। यह बात और है कि पड़ोसियों की कोई शिकायत नहीं करना चाहता और पुलिस बिना शिकायत के कोई कार्यवाही नहीं करती।

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