भारत में पर्व त्योहार का सम्बन्ध आर्य, द्रविड़, आदिवासियों की संस्कृति से रहा है। भारत के पश्चिमी भागों में आर्यों के आगमन के बाद प्रारम्भ में मूल संस्कृति के साथ संघर्ष के बाद समन्वय स्थापित होने पर अनेक पर्व एक दूसरे के साथ शामिल हो गए।। फिर वह संस्कृति का महासागर बन गया।। आर्यों की देवी लक्ष्मी, द्रविड़ के देवता गणेश का एक साथ पूजन समन्वय का ही देन है।। द्रविड़ काल में भी प्रकृति की पूजा होती थी। सूर्य पूजा उसी की देन है।
सभी त्योहारों का संबंध वैदिक परंपरा से नहीं माना जा सकता। बाद में उत्तर भारत में बौद्ध संस्कृति उन्नत होने के बाद उसी पूजा के रूप बदले गए होंगे, क्योंकि बौद्ध क्रांति भारतीय संस्कृति की क्रांतिकारी घटना मानी जाती है।। शायद इसी दौर में हिंदू संस्कृति विंध्याचल पार दक्षिण की ओर चली गई और वहीं कालांतर में भक्ति आंदोलन का सूत्रपात हुआ।। इसलिए आम जनता अपने आरंभिक रीतियों से पूजा करती रही है। लोग उसमें अपने ढंग से कहानियां आरोपित करते चले गए।। ग्राम देवी और वन देवी की अवधारणा भी अनार्यों की है।। आर्य लोग इससे परहेज करते हैं।
बौद्ध संस्कृति में पूजन परंपरा पहली शताब्दी की देन है।। उसके पूर्व पूजन का इतिहास नहीं मिलता है।। कृष्ण पूजा का इतिहास मिलता है। कृष्ण भी अनार्य संस्कृति के महापुरुष हो सकते हैं।। बाद में इन्हें भी हिन्दू संस्कृति में स्वीकार किया गया।। यही कारण है कि हिन्दू संस्कृति को अनेक संस्कृतियों का संगम माना जाता है।। हिंदू संस्कृति का मतलब केवल वैदिक नहीं होता। इसके बाद यवनों,मंगोलों,शकों, हूणों के आगमन के बाद भी संस्कृतियों में मेल होता रहा। इस्लाम,मुगल, अंग्रेजों के आगमन के बाद भी संस्कृतियां प्रभावित होती रहीं। इसलिए भारतीय संस्कृति में कभी भी कट्टरता स्वीकार नहीं की जाती है।। यह सभी संस्कृतियों का मिश्रण है।
आज भी हमारे यहां के रीति रिवाज आदिवासियों की संस्कृति से मिलती जुलती है। व्यक्ति के मरने के बाद क्रिया कर्म,दसवीं, तेरहवीं का सम्बन्ध भी वैदिक परंपरा से संबंधित नहीं है। यह अनार्य संस्कृति से प्रभावित है।। आर्यों के देवता इंद्र,वरुण,अग्नि,विष्णु आदि थे। शिव द्रविड़ों के देवता थे। बहुत मतभेदों और संघर्षों के बाद समन्वय स्थापित कर शिव को मूल देवता में शामिल किया गया। इसलिए अभी भी लोग इन्हें शूद्रों का देवता कहते हैं। भूत, बेताल, भभूत, भांग, धतूरा,नागों का माला आदि उसी के द्योतक है लेकिन हकीकत यह भी है कि चालाक आर्यों ने देवी- देवता, धर्म की घुट्टी पिलाकर राजसत्ता और जमीनों पर कब्जा कर लिया गया। अनार्यों की आपसी फूट,समझदारी और ज्ञान के अभाव में इन्हें हमेशा छला जाता रहा है।।