बहुत शीघ्र प्रसन्न होते हैं सूर्यदेव

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खगोल मंडल में स्थित प्रत्यक्ष सूर्य ग्रह को साक्षात भगवान माना जाता है। उनके उदय से पृृथ्वी पर जीवन है। सूर्य के ताप से समुद्र और नदियों का जल वाष्प बनकर उड़ता है और फिर वर्षा के रूप में बरसता है। यही वाष्प पहाड़ों पर जमकर हिम का रूप धारण करती है तथा नदियों के उद्गम का आधार बनती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान  सूर्य विष्णु रूप में समस्त ब्रह्मïाण्ड के पालन पोषण का कार्य कर रहे हैं तथा व्यवहारिक दृष्टि से भी प्रत्यक्ष रूप में साक्षात सूर्य देव कार्य करते हैं। वेंदो में भगवान सूर्य देव ईश्वर का साक्षात स्वरूप और सर्वाधिक शक्तिमान देवता बताए गए हैं एवं नक्षत्र व राशि मंडल के स्वामी भी है। आदि काल से भगवान सूर्य देव की पूजा-आराधना विश्व के सभी भागों में सभी धर्मो, जातियों, में व्यापक स्तर पर होती रही है। आज भी आस्थावान हिन्दू भगवान सूर्यदेव को प्रात:काल अध्र्य देते हैं। अध्र्य देने से अनेक लाभ होते हैं। वेदों, पुराणों व शास्त्रों में योग साधना में सूर्य नमस्कार का वर्णन मिलता है। सर्व शक्ति मान होने के साथ थोड़ी सी पूजा-अर्चना, आराधना एवं उपासना करने से भगवान सूर्य देव प्रसन्न हो जाते हैं कृपा दृष्टि बनाए रखना उसका सहज स्वभाव है। सूर्य देव सर्वानन्द-सिद्घियां अनवरत रूप से प्रदान करते रहते हैं। शास्त्र प्रमाण है कि महर्षि पतंजलि ने सूर्य उपासना कर भगवान साक्षात सूर्य पर कई सूत्र  दिये हैं जो आज पांताजलि सूत्र के नाम से प्रसिद्घ है। जगत स्वामी परमब्रह्मï का साकार रूप होने के कारण सूर्य देव मानव को शीघ्र ही फल देते हैं। अंत में मोक्ष मिल जाता है। यह सभी धर्म शास्त्रों का वचन है।
आज वैज्ञानिक, और खगोल शास्त्री मानते हैं कि पृृथ्वी एवं सभी ग्रहों की उत्पति सूर्य  से हुई है। सूर्य की किरणों के कारण पृथ्वी पर जीवन विधिवत बना हुआ है। जल को वाष्प के रूप में उड़ाकर बादल बनाना  व पृथ्वी पर बरसाना यह सारा कार्य सूर्य देव करते हैं इसलिए  वे साक्षात देवराज इन्द्र एवं वरूण देव भी  है। प्रलय काल में सूर्य देव पृथ्वी के निकट आ जाते हैं। गुरूत्वाकर्षण के कारण ही पृृथ्वी पर प्रलय होती है। सूर्य देव ग्रहों, नक्षत्रों, राशियों, और चांद-सितारों के अधिपति है। मृृत्यु के नियंत्रक यमराज और क्रूर ग्रह शनि देव दोनों सूर्य के पुत्र ही है।  
हस्तरेखा में सूर्य पर्वत कमजोर  हो। हाथ में सूर्य रेखा नहीं हो तो अवश्य ही सूर्य पूजा करनी चाहिये तथा गौमुखी शंख से अध्र्य देने से समस्याओं से मुक्ति मिलती है। सभी राशि वाले जातक सूर्य देव की उपासना कर सकते हैं
द्वापर युग में सभी व्यक्ति सूर्य देव की उपासना करते थे। सूर्यपुत्र कर्ण का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। महाराज कुन्ती भोज की पुत्री कुंती जब बालिका थी। उसने देव भूति मंत्र माध्यम से भगवान सूर्य देव का ध्यान किया तो भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर कर्ण जैसा दिव्य तेजस्वी बालक दिया। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार राम भक्त हनुमान जी को विद्यावान, गुणी, बल और बुद्घि का सागर कहा जाता है। आखिर कौन था हनुमान जी का गुरू? उन्होंने किससे ज्योतिष शास्त्र व तंत्र का ज्ञान प्राप्त किया था? ग्रन्थों में इसका रोचक वर्णन मिलता है। पिता पवन देव की आज्ञा पाकर हनुमान जी भूलोक से उड़कर सूर्य देव के निकट दिन भर रथ के साथ पूर्व से पश्चिम तक उल्टे पैर चल कर शिक्षा ग्रहण कर वापस पृृथ्वी पर लौट आते थे। सूर्य की कृृपा पाने के लिए आदित्य  हृदय स्त्रोत, सूर्य चालीसा का पाठ व दक्षिणावृति, या गौमुखी शंख से अध्र्य चढ़ाना चाहिये। ऐसा करने से जन्म पत्रिका या हस्तरेखा में सूर्य निर्बल होने पर भी लाभकारी होता है।

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